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ग्लोबल वार्मिंग से लगातार घट रही औषधीय पौधों की गुणवत्ता, गढ़वाल विवि की रिसर्च में हुआ खुलासा

ग्लोबल वार्मिंग (global warming) के खतरे को भांपते हुए यदि समय रहते हमने अपनी प्रकृति को बचाने के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठाया तो वो दिन दूर नहीं, जब इसके भयकर परिणाम हमें भुगतने पड़ेंगे. ये बात ऐसे ही नहीं कही जा रही है, बल्कि गढ़वाल विवि के उच्च शिखरीय पादप कार्यिकी शोध केंद्र (HAPPRC) के अध्ययन में इस तरह के कुछ परिणाम सामने आए हैं, जो हमें भविष्य के लिए आगाह कर रहे हैं.

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Published : Nov 25, 2022, 4:41 PM IST

Updated : Nov 30, 2022, 1:58 PM IST

श्रीनगर: उत्तराखंड की वन संपदा और जैव विविधता की पूरी दुनिया में अपनी अलग ही पहचान है, लेकिन जैव विविधता से भरे इस प्रदेश में पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंच रहा है. गढ़वाल विवि के उच्च शिखरीय पादप कार्यिकी शोध केंद्र (HAPPRC) के अध्ययन में ये बात सामने आई है, इसका बड़ा कारण ग्लोबल वार्मिंग (global warming) है.

दरअसल, गढ़वाल विवि का उच्च शिखरीय पादप कार्यिकी शोध केंद्र (HAPPRC) इन दिनों तुंगनाथ घाटी में औषधीय पादपों पर (medicinal plants quality) 2030 में पड़ने वाले ग्लोबल वार्मिंग के एडवांस एफेक्ट का अध्धयन कर रहा है, जिसमें वैज्ञानिकों को पता चला कि 2030 में ग्लोबल वार्मिंग के चलते औषधीय पादपों की ग्रोथ तो नॉर्मल होगी, लेकिन उनके अंदर पाए जाने वाले औषधीय गुण खत्म हो जाएंगे. इसका बड़ा कारण एल्पाइन प्लांट्स पर कार्बन उत्सर्जन का बढ़ना है.

ग्लोबल वार्मिंग से लगातार घट रही औषधीय पौधों की गुणवत्ता
पढ़ें- खतरे में है उच्च हिमालयी जैव विविधता, शोध में हुआ चौंकाने वाला खुलासा

HAPPRC ने 11 हजार फीट की ऊंचाई पर तुंगनाथ एल्पाइन रीजन में तीन ओपन चेंबर बनाये. इन ओपन ओपन चेंबर में वैज्ञानिकों ने अल्पाइन रीजन में पाए जाने वाले औषधीय पादपों को लगाया है, जिसमें अतीस, मीठा, चोरू और जटामासी जैसे पौधे शामिल हैं. सभी पौधे ओपन चेंबर में होने के कारण इनमें रोजाना दिन के समय 600 पीपीएम कार्बन डाई आक्साइड छोड़ी जा रही है. रात्रि के समय इस प्रोसेस को सामान्य कर दिया जा रहा है. जब इसके नतीजे आए तो उसमें वैज्ञानिकों ने पाया कि बढ़ते हुए कार्बन उत्सर्जन के कारण पौधों की ग्रोथ तो बढ़ी, लेकिन उनका औषधीय गुणवत्ता प्रभावित हुई है.

HAPPRC विभाग के रिसर्च एसोसिएट सुदीप सेमवाल ने बताया कि वर्तमान समय में ग्लोबली 400 पीपीएम कार्बन उत्सर्जन है, जो हर साल 2 पीपीएम की रफ्तार से बढ़ रहा है. जिसको देखते हुए उन्होंने तुंगनाथ घाटी में तीन ओपन चेंबर बनाये गए, जहां इन पौधों पर 50 गुना अधिक कार्बन डाइऑक्साइड को अप्राकृतिक तरीके से छोड़ा गया, ये प्रक्रिया सीयूईटी सिलेंडर की मदद से फूली ऑटोमैटिक थी. जिसके डाटा का हर दिन अध्ययन किया जाता था. अध्ययन में पाया गया कि कार्बन उत्सर्जन पौधों की नेचुरल और आंतरिक गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है, जो बाहर से एकदम सामान्य प्रतीत हो रहा था. वहीं, पौधे की ग्रोथ नॉर्मली हो रही थी, लेकिन वह इसकी मेडिसनल क्वॉलिटी को इफेक्ट कर रहा था.

श्रीनगर: उत्तराखंड की वन संपदा और जैव विविधता की पूरी दुनिया में अपनी अलग ही पहचान है, लेकिन जैव विविधता से भरे इस प्रदेश में पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंच रहा है. गढ़वाल विवि के उच्च शिखरीय पादप कार्यिकी शोध केंद्र (HAPPRC) के अध्ययन में ये बात सामने आई है, इसका बड़ा कारण ग्लोबल वार्मिंग (global warming) है.

दरअसल, गढ़वाल विवि का उच्च शिखरीय पादप कार्यिकी शोध केंद्र (HAPPRC) इन दिनों तुंगनाथ घाटी में औषधीय पादपों पर (medicinal plants quality) 2030 में पड़ने वाले ग्लोबल वार्मिंग के एडवांस एफेक्ट का अध्धयन कर रहा है, जिसमें वैज्ञानिकों को पता चला कि 2030 में ग्लोबल वार्मिंग के चलते औषधीय पादपों की ग्रोथ तो नॉर्मल होगी, लेकिन उनके अंदर पाए जाने वाले औषधीय गुण खत्म हो जाएंगे. इसका बड़ा कारण एल्पाइन प्लांट्स पर कार्बन उत्सर्जन का बढ़ना है.

ग्लोबल वार्मिंग से लगातार घट रही औषधीय पौधों की गुणवत्ता
पढ़ें- खतरे में है उच्च हिमालयी जैव विविधता, शोध में हुआ चौंकाने वाला खुलासा

HAPPRC ने 11 हजार फीट की ऊंचाई पर तुंगनाथ एल्पाइन रीजन में तीन ओपन चेंबर बनाये. इन ओपन ओपन चेंबर में वैज्ञानिकों ने अल्पाइन रीजन में पाए जाने वाले औषधीय पादपों को लगाया है, जिसमें अतीस, मीठा, चोरू और जटामासी जैसे पौधे शामिल हैं. सभी पौधे ओपन चेंबर में होने के कारण इनमें रोजाना दिन के समय 600 पीपीएम कार्बन डाई आक्साइड छोड़ी जा रही है. रात्रि के समय इस प्रोसेस को सामान्य कर दिया जा रहा है. जब इसके नतीजे आए तो उसमें वैज्ञानिकों ने पाया कि बढ़ते हुए कार्बन उत्सर्जन के कारण पौधों की ग्रोथ तो बढ़ी, लेकिन उनका औषधीय गुणवत्ता प्रभावित हुई है.

HAPPRC विभाग के रिसर्च एसोसिएट सुदीप सेमवाल ने बताया कि वर्तमान समय में ग्लोबली 400 पीपीएम कार्बन उत्सर्जन है, जो हर साल 2 पीपीएम की रफ्तार से बढ़ रहा है. जिसको देखते हुए उन्होंने तुंगनाथ घाटी में तीन ओपन चेंबर बनाये गए, जहां इन पौधों पर 50 गुना अधिक कार्बन डाइऑक्साइड को अप्राकृतिक तरीके से छोड़ा गया, ये प्रक्रिया सीयूईटी सिलेंडर की मदद से फूली ऑटोमैटिक थी. जिसके डाटा का हर दिन अध्ययन किया जाता था. अध्ययन में पाया गया कि कार्बन उत्सर्जन पौधों की नेचुरल और आंतरिक गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है, जो बाहर से एकदम सामान्य प्रतीत हो रहा था. वहीं, पौधे की ग्रोथ नॉर्मली हो रही थी, लेकिन वह इसकी मेडिसनल क्वॉलिटी को इफेक्ट कर रहा था.

Last Updated : Nov 30, 2022, 1:58 PM IST
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