पौड़ी: उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में लोक वाद्य यंत्रों की लोक प्रियता धीरे-धीरे कम होती जा रही है, ऐसा इस लिए है कि न तो इसके संरक्षण के लिए राज्य सरकार की कोई ठोस कदम उठा रही है और न ही नई पीढ़ी को इसके प्रति जागरुक कर रही है. वहीं, लोगों में भी वाद्य यंत्रों के प्रति रुझान कम होने लगा है. ऐसे में वादकों से सामने रोज रोजी का संकट खड़ा हो गया है.
वहीं, जो लोग ढोल, दमाऊं, हुड़का, डफली और मशकबीन जैसे वाद्य यंत्रों को बजाते हैं, उनके सामने आर्थिक संकट खड़ा होगा गया है. वहीं, इन वादकों को जीवन यापन करने के लिए काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. उधर, इन वादकों ने राज्य सरकार से मांग की है कि उन्हें 60 वर्ष के बाद पेंशन देने की जो बात कही गई है वो उन्हें दी जानी चाहिए, जिससे ये लोग अपना जीवनयापन ठीक तरह से कर सकें.
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लोक वादक भक्ति शाह का कहना है कि सतपुली के विद्यालय में लोक वाद्य यंत्रों की मदद से गढ़वाली और संस्कृत भाषा में प्रार्थना कराने की जो शुरुआत की गई है, वो बहुत ही सराहनीय पहल है. इस तरह की पहल प्रदेश के प्रत्येक विद्यालयों द्वारा होनी चाहिए, जिससे छात्र-छात्राओं को इन वाद्य यंत्रों रूबरू किया जा सके, जिससे लोक वाद्य यंत्रों के प्रति युवाओं की रुचि बढ़ेगी और इसका संरक्षण भी किया जा सकेगा.