पौड़ी: कोट ब्लॉक के बनेलस्यूं पट्टी स्थित डांडा नागराजा मेला धूमधाम के साथ मनाया गया. मेले के वार्षिक आयोजन में क्षेत्र के आस-पास के दर्जनों गांवों से हजारों श्रद्धालुओं ने अपने अराध्यदेव के दर्शन कर राज्य के खुशहाली की कामना करते हुए अमनचैन को लेकर प्रार्थना की. हर साल बैसाख के मौके पर 15 अप्रैल को पौड़ी जिले के कोट ब्लॉक में डांडा नागराजा मेले का भव्य आयोजन किया जाता है.
इस मेले को लेकर श्रीडांडा नागराजा मंदिर समिति और क्षेत्रीय लोगों द्वारा करीब एक से डेढ़ महीने पहले से ही तैयारियां शुरू की जाती हैं. हर साल की तरह इस बार भी मेले को धूमधाम के साथ मनाया गया है. विभिन्न क्षेत्रों के लोगों ने पहुंचकर नागदेवता का विधिवत पूजा अर्चना करते हुए भोग लगाया. मुख्यालय पौड़ी से करीब 50 किलोमीटर दूर कोट ब्लॉक के बनेलस्युं पट्टी स्थित डांडानागराजा मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है. जहां सच्चे मन से प्रार्थना करने वाले भक्तों की मुराद डांडा नागराजा पूरा करते हैं.
डांडा नागराजा मंदिर की महिमा: माना जाता है कि डांडा नागराजा मंदिर के पास बसे लसेरा गांव की एक गाय रोजाना जंगल में एक शिला यानी पत्थर को दूध से नहलाकर वापस घर लौट जाया करती. जब गौ पालक शाम को दूध निकालने जाते तो गाय के थन खाली रहते थे. इस बात का पता लगाने वह स्वयं ही जंगल जाकर गाय पर नजर रखने लगा. इसके बाद गाय अपनी दिनचर्या की तरह ही उसी शिला के पास पहुंची. यह नजारा देखने के लिए पहले ही गौ पालक छिपा हुआ था.
ये भी पढ़ें: डांडा नागराजा मंदिर में अनोखे रूप में पूजे जाते हैं भगवान श्रीकृष्ण, जानिए वजह?
जब उसने भी यह नजारा देखा तो वह आश्चर्यचकित रह गया. जब उसने गाय को शिला पर दूध से नहलाते देखा तो यह देखकर गौ पालन ने गुस्से में आकर उस शिला पर डंडे से प्रहार किया. इसके बाद उसी शिला से एक नाग प्रकट हो गया. यह देखकर गौ पालक के होश उड़ गए. उसने तत्काल ही क्षमा याचना करते हुए माफी मांगी और इसके बाद नाग धरती में कहीं आलोप हो गए. मान्यता है कि तब से यहां पर नाग देवता की पूजा शुरू हो गई, जो आज भी निरंतर जारी है.
भगवान श्रीकृष्ण ही नागरूप में विराजमान हैं: स्थानीय लोगों का मानना है कि भगवान श्रीकृष्ण ही नागरूप में यहां पर विराजमान हैं और भगवान भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं. मान्यता है कि श्रीडांडा नागराजा मंदिर में जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से कुछ भी मांगता है तो नागदेवता उसकी मुराद अवश्य पूरी करते हैं. इच्छा पूरी होने के बाद श्रद्धालु मंदिर में घंटा चढ़ाते हैं और भगवान को दूध और प्रसाद के रूप में गुड़ की भेली चढ़ाई जाती है. हर साल बैसाख माह में यहां पर भव्य वार्षिक पूजन और भंडारे का आयोजन किया जाता है.