हल्द्वानी: हर साल 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसकी शुरुआत आज से 19 साल पहले अंतर्राष्ट्रीय श्रम संघ द्वारा की गई थी. उद्देश्य यही था कि विश्व का कोई कोना ऐसा न हो जहां बच्चों को उनके सपने की बलि चढ़ाकर मजदूरी करनी पड़ी. सालों से इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं कि बाल मजदूरी को रोक कर इन बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ा जाए.
इस साल का थीम 'कोरोना वायरस से बच्चों को बचाना'
हर साल इसके लिए एक थीम रखी जाती है. इस साल विश्व बाल श्रम निषेध दिवस की थीम 'कोरोना वायरस से बच्चों को बचाना' है. लेकिन बाल मजदूरी के मामले लगातार सामने आते रहे हैं. बाल श्रम कराना सबसे बड़ा अपराध माना जाता है, बावजूद इसके इस पर पूर्ण रूप से पाबंदी नहीं लगाई जा सकी है. बात अगर उत्तराखंड की करें तो यहां भी बाल श्रम की लगातार शिकायतें सामने आते रहती हैं.
इस साल मामलों में आई भारी कमी
इस साल श्रम विभाग ने पूरे प्रदेश से बाल श्रम के 32 मामले चिह्नित कर उनको बाल मजदूरी से मुक्त कराया है. 29 बाल श्रम के मामलों में आरोपियों के खिलाफ मुकदमे भी दर्ज किए गए. कई अन्य मामलों में कारण बताओ नोटिस भी जारी किया है.
सबसे ज्यादा मामले उधम सिंह नगर में
पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा बाल श्रम के मामले उधम सिंह नगर और नैनीताल जनपद में मिले. श्रम आयुक्त उत्तराखंड दीप्ति सिंह के मुताबिक बाल श्रम रोकने के लिए श्रम विभाग द्वारा समय-समय पर चेकिंग अभियान चलाया जाता है. इस दौरान जिन बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त कराया गया है, उनको समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए विभाग द्वारा प्रयास किए जाते हैं. उन्हें शिक्षा मुहैय्या कराई जाती है.
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श्रमायुक्त के मुताबिक बाल श्रम कराना कानूनी अपराध है. 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी कराना और 14 साल से 18 साल के बच्चों से खतरनाक उद्योग और कारखानों में काम कराना अपराध की श्रेणी में आता है. अगर किसी के द्वारा बाल श्रम कराने की सूचना मिलती है तो विभाग द्वारा छापेमारी कर उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाती है.
अप्रैल 2020 से मार्च 2021 के बीच आंकड़ों की बात करें तो बाल मजदूरी के मामले में उधम सिंह नगर पहले नंबर पर है. यहां इस साल 13 बाल मजदूरी के मामले सामने आए. नैनीताल जनपद में 11, देहरादून में 6, टिहरी गढ़वाल और हरिद्वार में 1-1 मामले सामने आए हैं.
पिछले साल आए थे 152 मामले
बात पिछले वर्ष 2019-20 की करें तो 152 बाल श्रम के मामले सामने आए थे. इसमें 69 के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था. इस साल बाल मजदूरी के संख्या में कमी देखी गई है. क्योंकि पिछले साल कोविड के चलते बहुत से प्रतिष्ठान बंद रहे. इसके अलावा कार्यालय बंद होने के चलते विभाग द्वारा बाल मजदूरी को लेकर भी कार्रवाई नहीं की गई, जिसका नतीजा रहा कि इस साल बाल मजदूरी के आंकड़ों में कमी आई है.