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कालाढूंगी में पूर्व सैनिकों ने धूमधाम से मनाया विजय दिवस

कालाढूंगी में पूर्व सैनिकों ने धूमधाम से विजय दिवस मनाया. 16 दिसंबर 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में अपने प्राणों की आहूति देने वाले सैनिकों की शौर्यगाथा को याद कर उनके परिजनों को सम्मानित किया गया.

Celebration of vijay diwas in kaladungi  भारतीय सेना न्यूज
कालाढूंगी में विजय दिवस का आयोजन
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Published : Dec 16, 2019, 5:50 PM IST

कालाढूंगी: 16 दिसंबर 1971 का वो दिन जब उत्तराखंड के वीर सैनिकों के अदम्य साहस का परिचय पूरी दुनिया को हुआ था. जिसके बाद से हर साल 16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसी उपलक्ष्य पर कालाढूंगी के पूर्व सैनिकों ने रामलीला मैदान में विजय दिवस मनाया. जिसमें भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध के दौरान अपने प्राणों की आहूति देने वाले सैनिकों की शौर्यगाथा को याद कर उनके परिजनों को सम्मानित किया.

धूमधाम से मनाया गया विजय दिवस.

बता दें कि 16 दिसंबर 1971, यही वो दिन था जब 13 दिन की जंग के बाद पाकिस्तान के 93,000 हजार सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था. जिसके बाद नए देश बांग्लादेश का जन्म हुआ. देश की रक्षा के लिए देवभूमि के रणबांकुरों के अदम्य साहस के आगे दुश्मनों ने हमेशा मुंह की खाई. तभी से 16 दिसंबर को वीरता दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस युद्ध के बाद भारतीय सैनिकों की युद्ध कुशलता को भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में विजय दिवस के रूप में लिखा गया.

ये भी पढ़े: सरकार की योजनाओं से वंचित भेड़-बकरी पालक, खानाबदोश जीवन जीने को मजबूर

साल 1962, 1965, और 1971 कि लड़ाई अपनी सहभागिता के लिए जाने वाले स्वर्गीय राम सिंह सामंत के पुत्र गंगा सिंह सामंत ने बताया कि वो 20 वर्ष भारतीय सेना में सेवा देकर अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं. उन्होंने बताया कि 16 दिसंबर का दिन भारतीय सेना के लिए ही नहीं पूरे भारतवर्ष के लिए गौरवपूर्ण है. इस युद्ध में पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था. वो पल वाकई ऐतिहासिक था. जिसे भारत के लोग हर साल बड़े ही हर्ष के साथ मानते हैं.

कालाढूंगी: 16 दिसंबर 1971 का वो दिन जब उत्तराखंड के वीर सैनिकों के अदम्य साहस का परिचय पूरी दुनिया को हुआ था. जिसके बाद से हर साल 16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसी उपलक्ष्य पर कालाढूंगी के पूर्व सैनिकों ने रामलीला मैदान में विजय दिवस मनाया. जिसमें भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध के दौरान अपने प्राणों की आहूति देने वाले सैनिकों की शौर्यगाथा को याद कर उनके परिजनों को सम्मानित किया.

धूमधाम से मनाया गया विजय दिवस.

बता दें कि 16 दिसंबर 1971, यही वो दिन था जब 13 दिन की जंग के बाद पाकिस्तान के 93,000 हजार सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था. जिसके बाद नए देश बांग्लादेश का जन्म हुआ. देश की रक्षा के लिए देवभूमि के रणबांकुरों के अदम्य साहस के आगे दुश्मनों ने हमेशा मुंह की खाई. तभी से 16 दिसंबर को वीरता दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस युद्ध के बाद भारतीय सैनिकों की युद्ध कुशलता को भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में विजय दिवस के रूप में लिखा गया.

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साल 1962, 1965, और 1971 कि लड़ाई अपनी सहभागिता के लिए जाने वाले स्वर्गीय राम सिंह सामंत के पुत्र गंगा सिंह सामंत ने बताया कि वो 20 वर्ष भारतीय सेना में सेवा देकर अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं. उन्होंने बताया कि 16 दिसंबर का दिन भारतीय सेना के लिए ही नहीं पूरे भारतवर्ष के लिए गौरवपूर्ण है. इस युद्ध में पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था. वो पल वाकई ऐतिहासिक था. जिसे भारत के लोग हर साल बड़े ही हर्ष के साथ मानते हैं.

Intro:16 दिसंबर 1971 का दिन उत्तराखंड के सैनिकों के अदम्य साहस के रूप मैं विजय दिवस के नाम से मनाया जाता है। 1971 कि लड़ाई दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ी लड़ाई मानी गई जिसके चलते 1971 मैं भारत से अलग होकर नए देश बांग्लादेश के रूप मैं उत्पन्न हुआ।Body:16 दिसंबर 1971, यही वो दिन था जब 13 दिन की जंग के बाद पाकिस्तानी सेना ने भारत के सामने घुटने टेक दिये थे और नए देश बांग्लादेश का जन्म हुआ था. देश की रक्षा के लिए देवभूमि के रणबांकुरों के अदम्य साहस के आगे दुश्मनों ने हमेशा मुंह की खाई. तब से 16 दिसंबर को वीरता दिवस के रूप में मनाया जाता है। 1971 मैं हुए भारत पाकिस्तान के बीच हुए इस युद्ध मैं भारत के सैनिकों के अदम्य वीरतापूर्ण युद्ध कौशल के आगे पाकिस्तानी सैनिकों ने घुटने टेक दिए जिसके परिरामस्वरूप पाकिस्तान के 93000 हजार सैनिको ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इस युद्ध के बाद भारतीय सैनिकों की युद्ध कुशलता को भारत के इतिहास मैं स्वर्णिम अक्षरों मैं विजय दिवस के रूप मैं लिखा गया।
16 दिसंबर विजय दिवस को कालाढुंगी के रामलीला मैदान बड़े धूमधाम के साथ मनाया गया जिसमें भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध के दौरान अपने प्राणों की आहुति देने वाले सैनिको की शौर्यगाथा को याद कर उनके परिजनों को सम्मानित किया गया। कालाढुंगी मैं पूर्व सैनिकों ने कार्यक्रम का आयोजन किया।Conclusion:स्वर्गीय राम सिंह सामंत जिन्होंने 1962, 1965, और 1971 कि लड़ाई अपनी सहभागिता की और उनके पुत्र गंगा सिंह सामंत ने बताया जो 20 वर्ष की सेवा देकर भारतीय सेना से सेवानिवृत्त हो गए है उन्होंने बताया कि 16 दिसम्बर का दिन भारतीय सेना के लिए ही नही पूरे भारतवर्ष के लिए गौरवपूर्ण बताया जिस युद्ध मैं पाकिस्तान के 93 हजार सैनिको ने आत्मसमर्पण किया वो पल वाकई ऐतिहासिक था जिसको भारतीय लोग प्रतिवर्ष बड़े हर्ष के साथ इसको मानते है।
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