नैनीताल: नेशनल हॉकर फडरेशन ऑफ इंडिया (National Hawker Federation of India) द्वारा बिना सर्वे किए स्ट्रीट वेंडरों को हटाने के खिलाफ दायर याचिका (Petition filed against removal of street vendors) पर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सुनवाई की (Uttarakhand High Court hearing).
मामले में मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खण्डपीठ ने सुनवाई की. कोर्ट ने सरकार और अन्य पक्षकारों से तीन सप्ताह के भीतर जवाब पेश करने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई तीन सप्ताह बाद होगी.
बता दें कि नेशनल हॉकर फेडरेशन ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर (PIL filed in High Court) किया. जिसमें कहा गया कि उत्तराखंड में लगभग 10,187 स्ट्रीट वेंडर हैं. सरकार ने स्ट्रीट वेंडर एक्ट 2014 का पालन अभी तक नहीं किया है. जिसमें कहा गया है कि स्ट्रीट वेंडरों के लिए एक निर्धारत जगह होगी. उसे संबंधित कॉर्पोरेशन द्वारा लाइसेंस दिया जाएगा. उनको हटाने से पूर्व समाचार पत्रों में विज्ञप्ति जारी करनी होगी.
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जिस जगह पर स्ट्रीट वेंडरों के लिए जगह निर्धारित होगी. वहां पर ये लोग अपने पास लाइसेंस, आधारकार्ड और राशनकार्ड रखेंगे. जिससे इनकी आसानी से पहचान हो सके. सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में अपने एक निर्णय में कहा था कि सभी राज्य अपने यहां स्ट्रीट वेंडरों का चार माह के भीतर सर्वे कर एक स्ट्रीट टाउन वेंडर कमेटी का गठन करें. जिसमें संबंधित कॉर्पोरेशन, पुलिस प्रशासन, व्यापार मंडल और जानकार लोग शामिल होंगे, लेकिन अभी तक न तो उत्तराखंड में इसका सर्वे हुआ न वेंडिग जोन घोषित हुआ और न ही कमेटी का गठन हुआ.
जिसका नतीजा आये दिन इन लोगों का सामना जब्त किया जा रहा है. जनहित याचिका में यह भी कहा गया कि सामान जब्त करने और उसे तोड़ने का अधिकार इनको नहीं है. जबकि जब्त खाने का सामना एक दिन में और अन्य सामान तीन दिन के भीतर वापस करने का भी प्रावधान है. याचिका में सामान उसी दिन वापस कराने या फिर इसका मुआवजा देने की मांग की गई है.