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हल्द्वानी: पूरे शबाब पर होली, आप भी देखिए खड़ी और बैठकी होली के अनोखे रंग - पहाड़ के रीति रिवाज

कहते हैं कि जब फागुन चढ़ता है तो सारे मतभेद खत्म हो जाते हैं, सिर्फ प्रेम का रंग ही शेष रह जाता है और सब उसी रंग में सराबोर हो जाते हैं. जी हां हम बात कर रहे हैं कुमाऊं की जहां इन दिनों होली पूरे शबाब पर है.

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कुमाउंनी होली
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Published : Mar 6, 2020, 8:08 PM IST

Updated : Mar 6, 2020, 9:55 PM IST

हल्द्वानी: कुमाऊं का प्रवेश द्वार हल्द्वानी जहां उत्तराखंड के विभिन्न सांस्कृतिक क्षेत्र के लोग यहां बसते हैं. यहां रंगारंग होली की शुरुआत बसंत पंचमी से ही हो जाती है. महिलाओं की कुमाउंनी होली का यहां अपना विशेष महत्व है, जो समाज को एकजुटता का संदेश देते हुए प्रेमभाव में बांधने का काम करती है. रंगों के इस पर्व में सारे गिले-शिकवे छोड़ महिलाएं, पुरुष और बच्चे एक रंग में प्रेमभाव से होली खेलते नजर आते हैं. खासकर कुमाऊं की महिला होल्यार पूरे साल होली का इंतजार करती है. इसमें महिलाओं को खुलकर होली का आनंद लेने का अवसर मिलता है.

महिलाएं अलग-अलग टोलियां बनाकर घर-घर जाकर होली की मधुर गीतों पर जमकर आनंद लेती है. यही नहीं होली में अलग-अलग भाषाओं और विधाओं की कला का भी प्रदर्शन होता है. सभी सांस्कृतिक क्षेत्र के लोगों की होली एक रंग में दिखती है. पुरुषों और महिलाओं की बैठकी और खड़ी होली भी पूरे शबाब पर है. जगह-जगह पर हो रहे खड़ी और बैठकी होली में पहाड़ी संस्कृति देखने को मिल रहा है.

कुमाऊंनी होली

ये भी पढ़े: बारिश और कड़ाके की ठंड के बाद भी होली रंग महोत्सव की धूम, दिखी कुमाउंनी खड़ी होली की झलक

बात अगर कुमाऊं की बैठकी और खड़ी होली की करें तो इसमें रास और रंग के स्वांग की मस्ती भी है, जो लोगों को सालों से मनोरंजन करते आ रहे हैं. कुमाऊं की पहाड़ी होली को जीवंत रखने वाली महिला होल्यारों का कहना है कि अपनी संस्कृति को बचाने के लिए युवा पीढ़ी को आगे आना चाहिए और पहाड़ी रीति रिवाज के अनुसार होली खेलनी चाहिए. बसंत पंचमी से रसिक होली गायन की शुरुआत हो जाती है, जबकि आज अमली एकादशी के मौके पर होली के रंग की शुरुआत की जाती है.

हल्द्वानी: कुमाऊं का प्रवेश द्वार हल्द्वानी जहां उत्तराखंड के विभिन्न सांस्कृतिक क्षेत्र के लोग यहां बसते हैं. यहां रंगारंग होली की शुरुआत बसंत पंचमी से ही हो जाती है. महिलाओं की कुमाउंनी होली का यहां अपना विशेष महत्व है, जो समाज को एकजुटता का संदेश देते हुए प्रेमभाव में बांधने का काम करती है. रंगों के इस पर्व में सारे गिले-शिकवे छोड़ महिलाएं, पुरुष और बच्चे एक रंग में प्रेमभाव से होली खेलते नजर आते हैं. खासकर कुमाऊं की महिला होल्यार पूरे साल होली का इंतजार करती है. इसमें महिलाओं को खुलकर होली का आनंद लेने का अवसर मिलता है.

महिलाएं अलग-अलग टोलियां बनाकर घर-घर जाकर होली की मधुर गीतों पर जमकर आनंद लेती है. यही नहीं होली में अलग-अलग भाषाओं और विधाओं की कला का भी प्रदर्शन होता है. सभी सांस्कृतिक क्षेत्र के लोगों की होली एक रंग में दिखती है. पुरुषों और महिलाओं की बैठकी और खड़ी होली भी पूरे शबाब पर है. जगह-जगह पर हो रहे खड़ी और बैठकी होली में पहाड़ी संस्कृति देखने को मिल रहा है.

कुमाऊंनी होली

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बात अगर कुमाऊं की बैठकी और खड़ी होली की करें तो इसमें रास और रंग के स्वांग की मस्ती भी है, जो लोगों को सालों से मनोरंजन करते आ रहे हैं. कुमाऊं की पहाड़ी होली को जीवंत रखने वाली महिला होल्यारों का कहना है कि अपनी संस्कृति को बचाने के लिए युवा पीढ़ी को आगे आना चाहिए और पहाड़ी रीति रिवाज के अनुसार होली खेलनी चाहिए. बसंत पंचमी से रसिक होली गायन की शुरुआत हो जाती है, जबकि आज अमली एकादशी के मौके पर होली के रंग की शुरुआत की जाती है.

Last Updated : Mar 6, 2020, 9:55 PM IST
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