हल्द्वानी: किसान अब पारंपरिक खेती के साथ आजीविका के लिए नए संसाधनों को जुटा रहे हैं. कुमाऊं मंडल के करीब 2800 किसान पारंपरिक खेती के साथ ही शहतूत के पेड़ लगाकर रेशम कीट पालन कर अपनी आर्थिकी को मजबूत कर रहे हैं. जहां रेशम विभाग भी इन किसानों को प्रोत्साहित कर रहा है.
फायदे की खेती: भारत के अनेक हिस्सों में शहतूत की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. शहतूत की खेती करना काफी मुनाफे का सौदा है. रेशम के कीट पाले जा सकते हैं, जो नेचुरल रेशम का उत्पादन करते हैं. इसके अलावा शहतूत की खेती का एक और सबसे बड़ा फायदा किसानों को मिलता है. इसके पेड़ विकसित होने पर महंगी लकड़ी बेचकर किसान इनसे अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं. किसान शहतूत की लकड़ी से टोकरी के साथ-साथ कई तरह के वस्तु तैयार कर सकते हैं. किसान शहतूत की खेती करना चाहते हैं तो उनके लिए इन दिनों पौध रोपने का बेहतर समय है.
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विभाग कर रहा किसानों को प्रोत्साहित: उपनिदेशक रेशम विभाग कुमाऊं मंडल हेमचंद्र ने बताया कि उत्तराखंड के किसान अपनी पारंपरिक खेती के साथ-साथ खेतों को मेढ़ पर रेशम का पेड़ लगाकर रेशम कीट पालन कर अपने आर्थिक स्थिति को मजबूत कर सकते हैं. उत्तराखंड में रेशम उत्पादन का साल में दो बार मौसम अनुकूल रहता है. जहां किसान रेशम का उत्पादन कर सकता है.उन्होंने बताया कि किसान बरसात के मौसम में रेशम के पौधे को अपने खेत या उसके मेड़ों पर लगा सकते हैं. इसके बाद सितंबर और मार्च का महीना रेशम उत्पादन के लिए अनुकूल माना जाता है.
निशुल्क दिए जा रहे शहतूत के पेड़: रेशम उत्पादन के अनुकूल मौसम को देखते हुए विभाग द्वारा रेशम उत्पादन से जुड़े किसानों के लिए कई तरह की योजनाएं चला रही है. जिसमें किसानों को निशुल्क शहतूत के पेड़ और रेशम के कीड़े उपलब्ध कराए जा रहे हैं. किसान अपने 1 एकड़ जमीन के पेड़ों पर करीब 300 पौधे लगा सकता हैं. उन्होंने बताया कि रेशम की खेती का काम केवल एक महीने का होता है. किसान 21 दिन तक रेशम के कीड़ों को पालन करेंगे.जिसके बाद वह उनसे तैयार रेशम के कोए को विभाग को उपलब्ध कर सकते हैं. जहां किसानों को उनके कोए का उचित मूल्य दिया जाता है. उन्होंने बताया कि कुमाऊं मंडल में 40 रेशम सेंटर हैं. जिसके माध्यम से किसानों को रेशम के कीट उपलब्ध कराए जाते हैं.
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वर्तमान समय में 303 गांव में रेशम कीट पालन किया जा रहा है, वहीं 2719 किसान रेशम उत्पादन से जुड़े हुए हैं.किसानों को रेशम उत्पादन के लिए प्रशिक्षण भी दिया जाता है. जिससे कि किसान ज्यादा से ज्यादा रेशम उत्पादन के क्षेत्र में जुड़ अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर सके.