ETV Bharat / state

अनोखा है उत्तराखंड का लोकपर्व सातू-आठू, जानें क्या हैं मान्यताएं, कैसे मनाएं त्योहार - Uttarakhand Satu-Aatu festival 2021

कोरोना संकट के बीच कुमाऊं में सातू-आठू पर्व 29 और 30 अगस्त को मनाया जाएगा. इस पर्व में शिव-पार्वती की उपासना का विशेष महत्व माना जाता है.

Haldwani News
सातू-आठू पर्व
author img

By

Published : Aug 28, 2021, 6:11 PM IST

Updated : Aug 29, 2021, 5:00 AM IST

हल्द्वानी: देवभूमि में कई ऐसे पर्व हैं, जिनका लोग सालभर बेसब्री से इंतजार करते हैं. उन्हीं में से एक सातू-आठू पर्व भी है. जो कुमाऊं में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस बार यह पर्व 29 और 30 अगस्त को मनाया जाएगा. जिसको लेकर लोगों में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है. लेकिन लोगों को कोरोना की वजह से सोशल-डिस्टेंसिंग का भी पालन करना होगा.

ज्योतिषाचार्य नवीन चंद्र जोशी के मुताबिक इस साल सातू-आठू पर्व 29 और 30 अगस्त को मनाया जाएगा. इस दिन मां गौरा और भगवान महेश की पूजा का विशेष महत्व होता है. सप्तमी के दिन खेतों से मौसमी फसल के पौधों के अलावा घास फूस से मां गौरा की आकृति बनाई जाती है और उन्हें खूब सजाया जाता है. जिसके बाद मां गौरा को सुंदर टोकरी या डलिया में रख कर मंदिर या घर में पूजा की जाती है. जबकी अष्टमी को भगवान शिव की मूर्ति बनाई जाती है और दोनों दिन महिलाएं उपवास रखती हैं.

अनोखा है उत्तराखंड का लोकपर्व सातू-आठू.

पढ़ें-धामी कैबिनेट बैठक: पंतनगर विवि को केंद्रीय दर्जा देने के लिए भेजेंगे प्रस्ताव, जानें 10 बडे़ फैसले

अष्टमी के दिन अंकुरित अनाज का प्रसाद बनाया जाता है, जिसे लोगों में वितरित किया जाता है और इस दिन घर या मंदिर में स्थापित मां गौरी व भगवान महेश की मूर्ति को विसर्जन किया जाता है. ये पर्व भाद्रमाह की सप्तमी अष्टमी को मनाया जाता है. मान्यता है कि सप्तमी को मां गौरा अपने मायके से रूठ कर मायके आती हैं और उन्हें लेने अष्टमी को भगवान महेश आते हैं.

हर्षोल्लास से मनाया जाता है पर्व: महिलाएं सातू-आठू पूजा में दो दिन का उपवास रखती हैं और इस पर्व को बेहद हर्षोल्लास से मानती हैं. अष्टमी की सुबह भगवान महेश और मां गौरा को बिरुड़ चढ़ाए जाते हैं. महिलाएं सुंदर गीत गाते हुए मां गौरा को विदा करती हैं. इसके बाद मां गौरा भगवान महेश की मूर्ति को स्थानीय मंदिर में विसर्जित किया जाता हैं.महिलाएं इस पर्व में शिव-पार्वती के जीवन पर आधारित लोक गीतों पर नाचती-गाती और कीर्तन भजन करती हैं.

हल्द्वानी: देवभूमि में कई ऐसे पर्व हैं, जिनका लोग सालभर बेसब्री से इंतजार करते हैं. उन्हीं में से एक सातू-आठू पर्व भी है. जो कुमाऊं में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस बार यह पर्व 29 और 30 अगस्त को मनाया जाएगा. जिसको लेकर लोगों में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है. लेकिन लोगों को कोरोना की वजह से सोशल-डिस्टेंसिंग का भी पालन करना होगा.

ज्योतिषाचार्य नवीन चंद्र जोशी के मुताबिक इस साल सातू-आठू पर्व 29 और 30 अगस्त को मनाया जाएगा. इस दिन मां गौरा और भगवान महेश की पूजा का विशेष महत्व होता है. सप्तमी के दिन खेतों से मौसमी फसल के पौधों के अलावा घास फूस से मां गौरा की आकृति बनाई जाती है और उन्हें खूब सजाया जाता है. जिसके बाद मां गौरा को सुंदर टोकरी या डलिया में रख कर मंदिर या घर में पूजा की जाती है. जबकी अष्टमी को भगवान शिव की मूर्ति बनाई जाती है और दोनों दिन महिलाएं उपवास रखती हैं.

अनोखा है उत्तराखंड का लोकपर्व सातू-आठू.

पढ़ें-धामी कैबिनेट बैठक: पंतनगर विवि को केंद्रीय दर्जा देने के लिए भेजेंगे प्रस्ताव, जानें 10 बडे़ फैसले

अष्टमी के दिन अंकुरित अनाज का प्रसाद बनाया जाता है, जिसे लोगों में वितरित किया जाता है और इस दिन घर या मंदिर में स्थापित मां गौरी व भगवान महेश की मूर्ति को विसर्जन किया जाता है. ये पर्व भाद्रमाह की सप्तमी अष्टमी को मनाया जाता है. मान्यता है कि सप्तमी को मां गौरा अपने मायके से रूठ कर मायके आती हैं और उन्हें लेने अष्टमी को भगवान महेश आते हैं.

हर्षोल्लास से मनाया जाता है पर्व: महिलाएं सातू-आठू पूजा में दो दिन का उपवास रखती हैं और इस पर्व को बेहद हर्षोल्लास से मानती हैं. अष्टमी की सुबह भगवान महेश और मां गौरा को बिरुड़ चढ़ाए जाते हैं. महिलाएं सुंदर गीत गाते हुए मां गौरा को विदा करती हैं. इसके बाद मां गौरा भगवान महेश की मूर्ति को स्थानीय मंदिर में विसर्जित किया जाता हैं.महिलाएं इस पर्व में शिव-पार्वती के जीवन पर आधारित लोक गीतों पर नाचती-गाती और कीर्तन भजन करती हैं.

Last Updated : Aug 29, 2021, 5:00 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.