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उत्तराखंड में प्लास्टिक कचरे के मामले में HC ने जताई नाराजगी, सरकार को दिए ये निर्देश

Uttarakhand Plastic Waste मुसीबत बन गया है. मामले में नैनीताल हाईकोर्ट की ओर से पूरे प्रदेश में केदारनाथ की तर्ज पर प्लास्टिक बोतलों पर क्यूआर कोड लागू करने के निर्देश दिए जा चुके हैं, लेकिन मामले को सरकार गंभीर नहीं है. यही वजह है कि अब कोर्ट ने 15 दिन के भीतर सरकार को राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की नियमावली को शासनादेश जारी कर लागू करने को कहा. वहीं, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी इसरा पूरा ड्राफ्ट बनाकर सरकार को सौंपने को कहा है.

Nainital High Court
नैनीताल हाईकोर्ट
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Sep 26, 2023, 10:02 PM IST

नैनीतालः उत्तराखंड में प्लास्टिक कचरे पर पूरी तरह से रोक लगाने को लेकर दायर जनहित याचिका पर नैनीताल हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. मामले में मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने प्रदेश में फैले प्लास्टिक कचरे पर नाराजगी व्यक्त की. कोर्ट ने इसके समाधान के लिए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को अपनी नियमावली का 15 दिन के भीतर ड्राफ्ट तैयार कर सरकार को सौंपने को कहा है. वहीं, सरकार को भी 15 दिन के भीतर नोटिफिकेशन जारी कर उसे कड़ाई से लागू करने के निर्देश दिए हैं.

दरअसल, नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को उस नियमावली को पूरे प्रदेश में लागू करने को कहा है. जिसमें केदरानाथ यात्रा में प्लास्टिक बोतलों पर क्यूआर कोड लगाने फिर वापसी में खाली बोतल या अन्य प्लास्टिक पैक्ड सामग्री लौटाने पर विक्रेता की ओर से कुछ रुपए दिए जाने से जुड़ा है.

हाईकोर्ट ने इस व्यवस्था को सिर्फ केदारनाथ आदि तक सीमित न रखकर पूरे प्रदेश में लागू करने के लिए ड्राफ्ट तैयार करने को कहा है. इतना ही नहीं कोर्ट ने कूड़ा वाहनों में जीओ टैगिंग की सुविधा एक महीने के भीतर उपलब्ध कराने को कहा है. ताकि, उनकी समय-समय पर मॉनिटरिंग की जा सके.
ये भी पढ़ेंः प्लास्टिक वेस्ट मामले पर HC नाराज, कहा- केदारनाथ की तर्ज पर पूरे राज्य में हो कूड़ा निस्तारण, प्रोडक्ट पर लगे QR कोड

बता दें कि अल्मोड़ा के हवलबाग निवासी जितेंद्र यादव ने नैनीताल हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है. जिसमें उन्होंने कहा है कि राज्य सरकार ने साल 2013 में प्लास्टिक यूज और उसके निस्तारण को लेकर नियमावली बनाई थी, लेकिन इन नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है. साल 2018 में केंद्र सरकार ने प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स बनाए थे. जिसमें उत्पादनकर्ता, परिवहनकर्ता और विक्रेताओं को जिम्मेदारी दी गई थी कि वे जितना प्लास्टिक निर्मित माल बेचेंगे, उतना ही खाली प्लास्टिक को वापस ले जाएंगे.

अगर वे वापस नहीं ले जाते हैं तो संबंधित नगर निगम, नगर पालिका समेत अन्य फंड देंगे. ताकि, वो इसका निस्तारण कर सकें, लेकिन उत्तराखंड में इसका उल्लंघन किया जा रहा है. पर्वतीय क्षेत्रों में प्लास्टिक के ढेर लगे हुए हैं. इसका निस्तारण भी नहीं किया जा रहा है. वहीं, नैनीताल हाईकोर्ट मामले की अगली सुनवाई 13 अक्टूबर को करेगा.

नैनीतालः उत्तराखंड में प्लास्टिक कचरे पर पूरी तरह से रोक लगाने को लेकर दायर जनहित याचिका पर नैनीताल हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. मामले में मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने प्रदेश में फैले प्लास्टिक कचरे पर नाराजगी व्यक्त की. कोर्ट ने इसके समाधान के लिए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को अपनी नियमावली का 15 दिन के भीतर ड्राफ्ट तैयार कर सरकार को सौंपने को कहा है. वहीं, सरकार को भी 15 दिन के भीतर नोटिफिकेशन जारी कर उसे कड़ाई से लागू करने के निर्देश दिए हैं.

दरअसल, नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को उस नियमावली को पूरे प्रदेश में लागू करने को कहा है. जिसमें केदरानाथ यात्रा में प्लास्टिक बोतलों पर क्यूआर कोड लगाने फिर वापसी में खाली बोतल या अन्य प्लास्टिक पैक्ड सामग्री लौटाने पर विक्रेता की ओर से कुछ रुपए दिए जाने से जुड़ा है.

हाईकोर्ट ने इस व्यवस्था को सिर्फ केदारनाथ आदि तक सीमित न रखकर पूरे प्रदेश में लागू करने के लिए ड्राफ्ट तैयार करने को कहा है. इतना ही नहीं कोर्ट ने कूड़ा वाहनों में जीओ टैगिंग की सुविधा एक महीने के भीतर उपलब्ध कराने को कहा है. ताकि, उनकी समय-समय पर मॉनिटरिंग की जा सके.
ये भी पढ़ेंः प्लास्टिक वेस्ट मामले पर HC नाराज, कहा- केदारनाथ की तर्ज पर पूरे राज्य में हो कूड़ा निस्तारण, प्रोडक्ट पर लगे QR कोड

बता दें कि अल्मोड़ा के हवलबाग निवासी जितेंद्र यादव ने नैनीताल हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है. जिसमें उन्होंने कहा है कि राज्य सरकार ने साल 2013 में प्लास्टिक यूज और उसके निस्तारण को लेकर नियमावली बनाई थी, लेकिन इन नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है. साल 2018 में केंद्र सरकार ने प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स बनाए थे. जिसमें उत्पादनकर्ता, परिवहनकर्ता और विक्रेताओं को जिम्मेदारी दी गई थी कि वे जितना प्लास्टिक निर्मित माल बेचेंगे, उतना ही खाली प्लास्टिक को वापस ले जाएंगे.

अगर वे वापस नहीं ले जाते हैं तो संबंधित नगर निगम, नगर पालिका समेत अन्य फंड देंगे. ताकि, वो इसका निस्तारण कर सकें, लेकिन उत्तराखंड में इसका उल्लंघन किया जा रहा है. पर्वतीय क्षेत्रों में प्लास्टिक के ढेर लगे हुए हैं. इसका निस्तारण भी नहीं किया जा रहा है. वहीं, नैनीताल हाईकोर्ट मामले की अगली सुनवाई 13 अक्टूबर को करेगा.

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