नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नैनीताल के मेट्रोपोल स्थित शत्रु संपत्ति से हटाए गए 134 अतिक्रमणकारियों में से 57 अतिक्रमणकारियों को पुनर्वासित किए जाने के मामले पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल व न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की खंडपीठ ने सुनवाई के बाद उनकी याचिका को खारिज करते हुए उनसे कहा है कि अगर उनका कोई हित प्रभावित हुआ है तो वे अपना पक्ष उचित फोरम में रख सकते हैं.
मामले के अनुसार शत्रु संपत्ति से हटाए गए सुशीला देवी सहित 56 अतिक्रमणकारियों ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कहा है कि जिला प्रशासन ने पिछले साल 22 जुलाई को मेट्रोपोल शत्रु संपत्ति से 134 अतिक्रमणकारियों को बेदखल कर दिया था. प्रशासन के बेदखल करने के बाद 57 लोग निराश्रित हो गए हैं. उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण उनके पास रहने के लिए आवास तक नहीं है.
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इसलिए सरकार उनको पुनर्वासित करें. मामले के सुनवाई के बाद कोर्ट ने उनको कोई राहत नहीं देते हुए कहा कि अगर वे इससे प्रभावित हैं तो वे अपना पक्ष उचित फोरम में रख सकते हैं. जबकि याचिका में हल्द्वानी के वनभूलपुरा बस्ती का हवाला भी दिया, जिसका मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है, उसका लाभ उन्हें दिया जाए. जिसको कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया.
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जानिए क्या होती है शत्रु संपत्ति: आपको हम आसान भाषा में समझाते हैं कि शत्रु संपत्ति क्या होती है. बता दें कि 15 अगस्त 1947 में भारत, पाकिस्तान के अलग होने, 1962 में चीन, 1965 और 1971 भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद भारत छोड़कर पाकिस्तान या चीन चले गए नागरिकों को भारत सरकार शत्रु मानती है. साल 1968 में भारत सरकार ने शत्रु संपत्ति अधिनियम लागू किया. जिसके तहत शत्रु संपत्ति की देखरेख एक कस्टोडियन को दी गई. केंद्र सरकार में इसके लिए कस्टोडियन ऑफ एनिमी प्रॉपर्टी विभाग भी है, जिसे शत्रु संपत्तियों को अधिग्रहित करने का अधिकार है.