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उत्तराखंड HC में 51 शक्तिपीठों के मामले में हुई सुनवाई, कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से मांगा जवाब

उच्च न्यायालय (Uttarakhand high court) में जनहित याचिका दायर कर कहा गया है कि उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में स्थित 51 शक्ति पीठों का वैज्ञानिक और पौराणिक महत्व है. ये शक्तिपीठ पर्यावरण के संतुलन को बनाये रखने के लिए भी आवश्यक है. जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण श्रीनगर में स्थित धारी देवी मंदिर के विस्थापन के समय देखने को मिला. जब धारी देवी मंदिर को विस्थापित किया गया तो उसके एक घंटे के भीतर केदारनाथ में भीषण त्रासदी आ गई.

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उत्तराखंड के 51 शक्तिपीठों के मामले में सुनवाई
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Published : Apr 27, 2022, 7:12 PM IST

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट (Uttarakhand high court) ने हिमालयी क्षेत्रों में स्थित 51 शक्तिपीठों (51 Shaktipeeths) में हो रही छेड़छाड़ रोकने व इनके संरक्षण के लिए दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. इस मामले को सुनने के बाद कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश संजय कुमार मिश्रा व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने आरर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को पक्षकार मानते हुए केंद्र व राज्य सरकार सहित संस्कृति मंत्रालय को नोटिस जारी कर 6 सप्ताह में शपथ-पत्र पेश करने को कहा है. ऐसे में अब इस मामले की अगली सुनवाई 8 जून को नियत की गई है.

इस मामले के अनुसार देहरादून निवासी प्रभु नारायण ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में स्थित 51 शक्तिपीठों का वैज्ञानिक और पौराणिक महत्व है. ये शक्तिपीठ पर्यावरण के संतुलन को बनाये रखने के लिए भी आवश्यक है. जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण श्रीनगर में स्थित धारी देवी मंदिर (Dhari Devi Temple) के विस्थापन के समय देखने को मिला. जब धारी देवी मंदिर को विस्थापित किया गया तो उसके एक घंटे के भीतर केदारनाथ में भीषण त्रासदी (Kedarnath Disaster) आ गई. धारी देवी शक्तिपीठ के बारे में पूरी जानकारी जुटाए बगैर ही उसे मूल स्थान से विस्थापित किया गया.

पढ़ें- रुद्रप्रयाग: आवासीय क्षेत्रों तक पहुंची वनाग्नि, तापमान में 0.9 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि

प्रभु नारायण का कहना है कि मां धारी देवी शक्ति में एक विशिष्ट भंवर है. यह ऊर्जा का एक घूमता केंद्र है. यह प्राकृतिक या प्राथमिक ऊर्जा का बिंदु है जो पृथ्वी के विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र को बनाता है. ऊर्जा भंवर दुनिया भर में कहीं भी पाया जा सकता है. उच्च पवित्रता के ये स्थल पृथ्वी के चुंबकीय पोर्टल्स की भूमिका निभाते हैं. ऐसी साइटों पर वैज्ञानिक जांच की जरूरत है. इसके साथ ही उन्होंने कई वैज्ञानिक दावे किए हैं.

उनका कहना है कि धारी देवी शक्ति पीठ ने हिमालय के केदारखंड क्षेत्र में प्रलय को दिखाया था. वह पीजोइलेक्ट्रिसिटी थी जोकि एक विद्युत आवेश है. जो कुछ ठोस पदार्थों जैसे कि क्वार्ट्ज क्रिस्टल, कुछ सिरेमिक और जैविक पदार्थों जैसे हड्डी, डीएनए और विभिन्न प्रोटीनों में लागू यांत्रिक तनाव के जवाब में जमा होता है. जब श्रीनगर के पास स्थित धारी देवी की प्रतिमा को अलकनंदा नदी से हटाया गया था तो वहां पर से भी ऊर्जा निकली. उसके कुछ ही घंटे बाद केदारनाथ जैसी भीषण आपदा हुई.

वहीं, इस आपदा में हजारों लोग मारे गए. इसलिए याचिकाकर्ता का कहना है कि उत्तराखंड के 51 शक्तिपीठों के संरक्षण के लिए वैज्ञानिक व धार्मिक कमीशन की स्थापना की जाय ताकि पर्यावरण संतुलन के साथ ही 51 शक्तिपीठों को संरक्षित किया जा सके क्योंकि, इनका धार्मिक के साथ-साथ वैज्ञानिक महत्व भी है. ऐसे में कोर्ट की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई के बाद आरर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को पक्षकार मानते हुए केंद्र व राज्य सरकार सहित संस्कृति मंत्रालय को नोटिस जारी कर 6 सप्ताह में शपथ-पत्र पेश करने को कहा है.

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट (Uttarakhand high court) ने हिमालयी क्षेत्रों में स्थित 51 शक्तिपीठों (51 Shaktipeeths) में हो रही छेड़छाड़ रोकने व इनके संरक्षण के लिए दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. इस मामले को सुनने के बाद कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश संजय कुमार मिश्रा व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने आरर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को पक्षकार मानते हुए केंद्र व राज्य सरकार सहित संस्कृति मंत्रालय को नोटिस जारी कर 6 सप्ताह में शपथ-पत्र पेश करने को कहा है. ऐसे में अब इस मामले की अगली सुनवाई 8 जून को नियत की गई है.

इस मामले के अनुसार देहरादून निवासी प्रभु नारायण ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में स्थित 51 शक्तिपीठों का वैज्ञानिक और पौराणिक महत्व है. ये शक्तिपीठ पर्यावरण के संतुलन को बनाये रखने के लिए भी आवश्यक है. जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण श्रीनगर में स्थित धारी देवी मंदिर (Dhari Devi Temple) के विस्थापन के समय देखने को मिला. जब धारी देवी मंदिर को विस्थापित किया गया तो उसके एक घंटे के भीतर केदारनाथ में भीषण त्रासदी (Kedarnath Disaster) आ गई. धारी देवी शक्तिपीठ के बारे में पूरी जानकारी जुटाए बगैर ही उसे मूल स्थान से विस्थापित किया गया.

पढ़ें- रुद्रप्रयाग: आवासीय क्षेत्रों तक पहुंची वनाग्नि, तापमान में 0.9 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि

प्रभु नारायण का कहना है कि मां धारी देवी शक्ति में एक विशिष्ट भंवर है. यह ऊर्जा का एक घूमता केंद्र है. यह प्राकृतिक या प्राथमिक ऊर्जा का बिंदु है जो पृथ्वी के विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र को बनाता है. ऊर्जा भंवर दुनिया भर में कहीं भी पाया जा सकता है. उच्च पवित्रता के ये स्थल पृथ्वी के चुंबकीय पोर्टल्स की भूमिका निभाते हैं. ऐसी साइटों पर वैज्ञानिक जांच की जरूरत है. इसके साथ ही उन्होंने कई वैज्ञानिक दावे किए हैं.

उनका कहना है कि धारी देवी शक्ति पीठ ने हिमालय के केदारखंड क्षेत्र में प्रलय को दिखाया था. वह पीजोइलेक्ट्रिसिटी थी जोकि एक विद्युत आवेश है. जो कुछ ठोस पदार्थों जैसे कि क्वार्ट्ज क्रिस्टल, कुछ सिरेमिक और जैविक पदार्थों जैसे हड्डी, डीएनए और विभिन्न प्रोटीनों में लागू यांत्रिक तनाव के जवाब में जमा होता है. जब श्रीनगर के पास स्थित धारी देवी की प्रतिमा को अलकनंदा नदी से हटाया गया था तो वहां पर से भी ऊर्जा निकली. उसके कुछ ही घंटे बाद केदारनाथ जैसी भीषण आपदा हुई.

वहीं, इस आपदा में हजारों लोग मारे गए. इसलिए याचिकाकर्ता का कहना है कि उत्तराखंड के 51 शक्तिपीठों के संरक्षण के लिए वैज्ञानिक व धार्मिक कमीशन की स्थापना की जाय ताकि पर्यावरण संतुलन के साथ ही 51 शक्तिपीठों को संरक्षित किया जा सके क्योंकि, इनका धार्मिक के साथ-साथ वैज्ञानिक महत्व भी है. ऐसे में कोर्ट की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई के बाद आरर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को पक्षकार मानते हुए केंद्र व राज्य सरकार सहित संस्कृति मंत्रालय को नोटिस जारी कर 6 सप्ताह में शपथ-पत्र पेश करने को कहा है.

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