हल्द्वानी: पहाड़ की कामधेनु बद्री गाय अब पहाड़ के पशुपालकों के लिए नई उम्मीद बन गई है. दूध की उत्पादन क्षमता कम होने के चलते पहाड़ के पशुपालकों का इस पहाड़ी गाय पालन से मोहभंग हो गया था. लेकिन अब सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं और पशुपालन विभाग के प्रयासों से बद्री गाय की नस्ल में सुधार हुआ है. जहां दूध का उत्पादन क्षमता में भी वृद्धि हुई है, यही नहीं पशुपालन विभाग पहाड़ के पशुपालकों को बद्री गाय पालने के लिए प्रोत्साहित भी कर रहा है, जिससे पहाड़ की कामधेनु इस गाय के दूध की पहचान पूरे देश दुनिया में बने.
बद्री गाय से पशुपालकों का मोहभंग: अपर निदेशक पशुपालन विभाग कुमाऊं मंडल बीसी कांडपाल ने बताया कि पहाड़ के पशुपालकों का बद्री गाय से मोहभंग हो रहा था. लेकिन अब सरकार के प्रयासों से पशुपालन विभाग ने इस गाय की दूध उत्पादन क्षमता में वृद्धि का प्रयास किया है. उन्होंने बताया कि आमतौर पर देखा गया है कि बद्री गाय की दूध उत्पादन क्षमता 1 लीटर से लेकर 2 लीटर रोजाना की है. लेकिन अब तीसरी पीढ़ी की नस्ल में दूध की उत्पादन क्षमता 4 लीटर तक पहुंच गयी है.
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सुधारी गई बद्री गाय की नस्ल: बीसी कांडपाल ने बताया कि बद्री गाय के लिए उत्तराखंड सरकार द्वारा चंपावत में पशु फार्म तैयार किया गया है. यहां फार्म के अंदर बद्री गाय की नस्ल ब्रीडिंग कराई गई, जिसके बाद बद्री गाय की नस्ल में सुधार हुआ है. वर्तमान समय में 4 किलो 200 ग्राम प्रतिदिन बद्री गाय की दूध उत्पादन क्षमता बढ़ी है. उन्होंने बताया कि उत्तराखंड के पशुपालकों को इस नस्ल की गाय को अधिक से अधिक पालने के लिए प्रोत्साहित भी किया जा रहा है जिससे कि बद्री गाय का संवर्धन किया जा सके. जिसके लिए पर्वतीय क्षेत्रों के पशुपालकों को बद्री गाय के अच्छे नस्ल के सेक्स ऑडिट सीमन भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं, जहां 90% बद्री गाय की बछिया पैदा हो रही हैं. दावा किया जाता है कि आम गायों की तुलना में इस गाय का दूध अधिक पौष्टिक होता है और इसका दूध कई बीमारियों के लिए रामबाण इलाज भी है. वहीं दूध से बने घी में ए-2 प्रोटीन और दूसरे पोषक तत्व अधिक मिलते हैं. इसलिए घी की मार्केट में भी डिमांड बढ़ी है. मार्केट में बद्री गाय के दूध और घी की कीमत अधिक है.
कामधेनु गाय का दर्जा: बद्री देशी गाय उत्तराखंड की एक देशी गाय की प्रजाति है, जिसे कामधेनु गाय का दर्जा मिला है. यह गाय हिमालय में देशी जड़ी बूटियों और झाड़ियों को चरती है. इसलिए इसके दूध का उच्च औषधीय महत्व है. जानकार बताते हैं कि बद्री गायों में रोग प्रतिरोधी क्षमता अधिक होने के चलते यह गाय शायद ही कभी बीमारी होती है. बद्री गाय उत्तराखंड की पहली पंजीकृत मवेशी नस्ल है, जिसे राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (NBAGR) द्वारा प्रमाणित किया गया है. साल 2019 की गणना के अनुसार उत्तराखंड में बद्री गाय की संख्या करीब 988,000 थी. बद्री गायों की संख्या में अधिक वृद्धि हो, इसके लिए सरकार कई तरह की योजनाएं भी चला रही है. जिससे कि पहाड़ के पशुपालक बद्री गाय पालन से अपनी आर्थिक स्थिति को भी मजबूत कर सकें.