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सतपाल महाराज के हाईकोर्ट शिफ्ट करने वाले बयान पर भड़के वकील, कही ये बात - Lawyers furious over Satpal Maharaj

कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज के उत्तराखंड हाईकोर्ट को नैनीताल से मैदानी क्षेत्र में शिफ्ट करने वाले बयान का क्रांतिकारी अधिवक्ता मंच ने विरोध किया.

LAWYER ON SATPAL MAHARAJ
सतपाल महाराज के बयान पर भड़के अधिवक्ता
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Published : Dec 16, 2021, 7:16 PM IST

नैनीताल: क्रांतिकारी अधिवक्ता मंच (krantikari adhivakta manch) ने पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज (Tourism Minister Satpal Maharaj) के हाईकोर्ट नैनीताल (High Court Nainital) से मैदानी क्षेत्र में शिफ्ट किए जाने के बयान की कड़ी आलोचना की है. उन्होंने कहा पर्वतीय क्षेत्र से एक के बाद बड़े संस्थान मैदानी क्षेत्र में शिफ्ट हो रहे हैं. उससे पर्वतीय राज्य की अवधारणा खत्म होते जा रही है. इसलिये केंद्र सरकार राज्य पुनर्गठन विधेयक 2000 (States Reorganization Bill 2000) पर पुनर्विचार कर राज्य को केंद्र शासित प्रदेश घोषित करें या फिर इसे पुनः पूर्ववर्ती राज्य में मिला दिया जाए.

नैनीताल हाईकोर्ट बार एसोसिएशन (Nainital High Court Bar Association) के सभा कक्ष में क्रांतिकारी अधिवक्ता मंच ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस दौरान मंच संयोजक और हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष एमसी पंत ने सतपाल महाराज के बयान की भर्त्सना की. उन्होंने कहा इससे हाईकोर्ट के नये व मध्यम वर्गीय अधिवक्ताओं की वकालत को अस्थिर करने की मंशा भी परिलक्षित हो रही है. मंच का मानना है कि उत्तराखंड में पिछले 21 वर्षों के दौरान राजनीतिक दलों के नेताओं और अधिकारियों के गठजोड़ ने राज्य की अवधारणा और राज्य बनाने के उद्देश्य को ही समाप्त कर दिया है.

बेरोजगारी और पलायन (unemployment and migration) पहले से भी अधिक बढ़ गये हैं. ठेकेदारी पर युवाओं को बंधुआ मजदूर (bonded labour) बनाया गया है. आज आईटी का युग है और हाईब्रिड मोड से कोर्ट में सुनवाई संभव है तो हाई कोर्ट शिफ्ट करने का प्रलाप की जगह तकनीक के जरिए प्रत्येक वादकारी को उसके घर पर सुलभ न्याय की व्यवस्था कराने का प्रयास होना चाहिए. नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (National Law University) की स्थापना को जिस प्रकार से राजनीतिक अखाड़े का खेल बनाया गया है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है.

ये भी पढ़ें: शादी के लिए HC की शरण में गए समलैंगिक युवक, कोर्ट ने पुलिस प्रोटेक्शन का दिया आदेश

एम्स की शाखा और हाईकोर्ट को भी मैदानी जिलों में प्रस्तावित किया जा रहा है. नेशनल लॉ युनिवर्सिटी की स्थापना जो कि भवाली में प्रस्तावित थी, उसको भी यहां से देहरादून स्थानांतरित कर दिया गया. 21 वर्षों में उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश से उसकी परिसंपत्तियों का उचित बंटवारा न होने से राज्य को अपना उचित हिस्सा नहीं मिल पाया है. उपनल के नाम पर छद्म नियोजन व नाम मात्र का वेतन देकर बिना किसी सेवा सुरक्षा के अधिकारियों द्वारा युवाओं का उत्पीड़न किया जा रहा है.

एमसी पंत ने कहा कोई भी राजनैतिक दल उत्तराखंड के आधारभूत मुद्दों को नहीं उठा रहा है. सशक्त भू-कानून (strong land laws) नहीं मिल पाया है. ऐसी दशा में क्रांतिकारी अधिवक्ता मंच अपनी संवैधानिक दायित्व व कर्तव्यों को समझकर इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम (Uttar Pradesh Reorganization Act) पर पुनर्विचार करते हुए उत्तराखंड को केंद्र शासित प्रदेश की स्थापना के लिए प्रयास किया जाए. साथ ही उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम की वैधता व प्रासंगिता पर पुनर्विचार किया जाए.

उन्होंने कहा इस संबंध में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य संबंधितों को ज्ञापन भेजे जाएंगे. उन्होंने दावा किया कि 95 फीसदी से अधिक अधिवक्ता हाईकोर्ट नैनीताल में ही रखने के पक्षधर हैं. केवल 5 फीसदी अधिवक्ता ही इसे अन्यत्र शिफ्ट करने की मांग कर रहे हैं.

नैनीताल: क्रांतिकारी अधिवक्ता मंच (krantikari adhivakta manch) ने पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज (Tourism Minister Satpal Maharaj) के हाईकोर्ट नैनीताल (High Court Nainital) से मैदानी क्षेत्र में शिफ्ट किए जाने के बयान की कड़ी आलोचना की है. उन्होंने कहा पर्वतीय क्षेत्र से एक के बाद बड़े संस्थान मैदानी क्षेत्र में शिफ्ट हो रहे हैं. उससे पर्वतीय राज्य की अवधारणा खत्म होते जा रही है. इसलिये केंद्र सरकार राज्य पुनर्गठन विधेयक 2000 (States Reorganization Bill 2000) पर पुनर्विचार कर राज्य को केंद्र शासित प्रदेश घोषित करें या फिर इसे पुनः पूर्ववर्ती राज्य में मिला दिया जाए.

नैनीताल हाईकोर्ट बार एसोसिएशन (Nainital High Court Bar Association) के सभा कक्ष में क्रांतिकारी अधिवक्ता मंच ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस दौरान मंच संयोजक और हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष एमसी पंत ने सतपाल महाराज के बयान की भर्त्सना की. उन्होंने कहा इससे हाईकोर्ट के नये व मध्यम वर्गीय अधिवक्ताओं की वकालत को अस्थिर करने की मंशा भी परिलक्षित हो रही है. मंच का मानना है कि उत्तराखंड में पिछले 21 वर्षों के दौरान राजनीतिक दलों के नेताओं और अधिकारियों के गठजोड़ ने राज्य की अवधारणा और राज्य बनाने के उद्देश्य को ही समाप्त कर दिया है.

बेरोजगारी और पलायन (unemployment and migration) पहले से भी अधिक बढ़ गये हैं. ठेकेदारी पर युवाओं को बंधुआ मजदूर (bonded labour) बनाया गया है. आज आईटी का युग है और हाईब्रिड मोड से कोर्ट में सुनवाई संभव है तो हाई कोर्ट शिफ्ट करने का प्रलाप की जगह तकनीक के जरिए प्रत्येक वादकारी को उसके घर पर सुलभ न्याय की व्यवस्था कराने का प्रयास होना चाहिए. नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (National Law University) की स्थापना को जिस प्रकार से राजनीतिक अखाड़े का खेल बनाया गया है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है.

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एम्स की शाखा और हाईकोर्ट को भी मैदानी जिलों में प्रस्तावित किया जा रहा है. नेशनल लॉ युनिवर्सिटी की स्थापना जो कि भवाली में प्रस्तावित थी, उसको भी यहां से देहरादून स्थानांतरित कर दिया गया. 21 वर्षों में उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश से उसकी परिसंपत्तियों का उचित बंटवारा न होने से राज्य को अपना उचित हिस्सा नहीं मिल पाया है. उपनल के नाम पर छद्म नियोजन व नाम मात्र का वेतन देकर बिना किसी सेवा सुरक्षा के अधिकारियों द्वारा युवाओं का उत्पीड़न किया जा रहा है.

एमसी पंत ने कहा कोई भी राजनैतिक दल उत्तराखंड के आधारभूत मुद्दों को नहीं उठा रहा है. सशक्त भू-कानून (strong land laws) नहीं मिल पाया है. ऐसी दशा में क्रांतिकारी अधिवक्ता मंच अपनी संवैधानिक दायित्व व कर्तव्यों को समझकर इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम (Uttar Pradesh Reorganization Act) पर पुनर्विचार करते हुए उत्तराखंड को केंद्र शासित प्रदेश की स्थापना के लिए प्रयास किया जाए. साथ ही उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम की वैधता व प्रासंगिता पर पुनर्विचार किया जाए.

उन्होंने कहा इस संबंध में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य संबंधितों को ज्ञापन भेजे जाएंगे. उन्होंने दावा किया कि 95 फीसदी से अधिक अधिवक्ता हाईकोर्ट नैनीताल में ही रखने के पक्षधर हैं. केवल 5 फीसदी अधिवक्ता ही इसे अन्यत्र शिफ्ट करने की मांग कर रहे हैं.

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