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कुमाऊं में बैठकी होली की धूम, तीन माह तक बरसेंगे रागों के रंग

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Published : Dec 20, 2021, 8:54 AM IST

Updated : Dec 20, 2021, 8:59 AM IST

कुमाऊं में पौष के पहले रविवार से विभिन्न स्थानों पर होली का आगाज हो गया है.कुमाऊं में करीब ढाई महीने पहले होली (Kumaon Holi) की शुरूआत हो जाती है और ये परंपरा अतीत से चली आ रही है.

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कुमाऊं में बैठकी होली की धूम

नैनीताल: कुमाऊं में पौष के पहले रविवार से विभिन्न स्थानों पर होली के रंग चढ़ गए. नैनीताल में बैठकी होली में शास्त्रीय रागों पर आधारित होली का गायन किया गया. वहीं राग व तालों पर गाई जाने वाली होली भक्ति निर्वाण आध्यात्म व प्रभु आराधना खुद में समेटे हुए है. बैठकी होली का लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं और बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं. माघ व फागुन मास में बैठकी होली अपने पूरे रंग में आ जाएगी. वहीं नैनीताल की बैठकी होली में मुस्लिम समुदाय के लोग भी भाग लेकर भाई-चारे का संदेश देते हैं.

कुमाऊं में होली (Kumaon Holi) का आगाज हो गया है. कुमाऊं में करीब ढाई महीने पहले होली की शुरूआत हो जाती है. होली की यह अनोखी परंपरा कुमाऊं में सदियों से चली आ रही है.पौष माह के पहले रविवार के साथ ही होली गायन की शुरूआत हो गई है. इस अनूठी परंपरा में होली तीन चरणों में मनाई जाती है. बैठकी होली के माध्यम से पहले चरण में विरह की होली गाई जाती है और बसंत पंचमी से होली गायन में श्रृंगार रस घुल जाता है. इसके बाद महा शिवरात्री से होली के टीके तक राधा-कृष्ण और छेड़खानी-ठिठोली युक्त होली गायन चलता है.

कुमाऊं में बैठकी होली की धूम.

पढ़ें-फिर सामने आया हरीश रावत का दर्द, भाजपा के बहाने अपनों को बनाया निशाना

अंत में होली अपने पूरे रंग में पहुंच जाती है और रंगों के साथ खुलकर मनाई जाती है. नैनीताल में भी होली गायन शुरू हो गया है और लोग बढ़-चढ़ कर भाग ले रहे हैं.कुमाऊं में होली गायन की परंपरा काफी समृद्ध है, जो अतीत से चली आ रही है. माना जाता है कि बैठकी होली गायन की शुरूआत 16वीं सदी में चंद राजा कल्याण चंद के शासन काल से शुरू हुई थी.बैठकी होली में अलग-अलग समय पर अलग-अलग राग गाए जाते हैं. इनमें राग धमार, राग काफी, राग जंगला काफी, राग परज, राग भैरवी, राग बागेश्री, राग सहाना, राग विहाग, राग खम्माज, राग पीलू, राग झिझोटी, राग देश, रागह धमार आदि मुख्य हैं.

होली गायन में महिलाएं भी उमंग और उत्साह के साथ प्रतिभाग करती हैं.नैनीताल में पिछले 40 सालों से होली की अनूठी परंपरा को मुस्लिम समुदाय के लोग भी निभाते आ रहे हैं. मुस्लिम होलियारों का मानना है कि होली जैसे त्योहार को धर्म और समुदाय से जोड़ता गलत है, जबकि होली समाज को जोड़ती आई है.करीब डेढ़ साल पहले रामपुर के उस्ताद अमानत हुसैन ने कुमाऊं में होली गीतों की शुरूआत की थी और तब से लेकर आज तक कुमाऊं में बैठकी और खड़ी होली इसी अंदाज में मनाई जाती है.

नैनीताल: कुमाऊं में पौष के पहले रविवार से विभिन्न स्थानों पर होली के रंग चढ़ गए. नैनीताल में बैठकी होली में शास्त्रीय रागों पर आधारित होली का गायन किया गया. वहीं राग व तालों पर गाई जाने वाली होली भक्ति निर्वाण आध्यात्म व प्रभु आराधना खुद में समेटे हुए है. बैठकी होली का लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं और बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं. माघ व फागुन मास में बैठकी होली अपने पूरे रंग में आ जाएगी. वहीं नैनीताल की बैठकी होली में मुस्लिम समुदाय के लोग भी भाग लेकर भाई-चारे का संदेश देते हैं.

कुमाऊं में होली (Kumaon Holi) का आगाज हो गया है. कुमाऊं में करीब ढाई महीने पहले होली की शुरूआत हो जाती है. होली की यह अनोखी परंपरा कुमाऊं में सदियों से चली आ रही है.पौष माह के पहले रविवार के साथ ही होली गायन की शुरूआत हो गई है. इस अनूठी परंपरा में होली तीन चरणों में मनाई जाती है. बैठकी होली के माध्यम से पहले चरण में विरह की होली गाई जाती है और बसंत पंचमी से होली गायन में श्रृंगार रस घुल जाता है. इसके बाद महा शिवरात्री से होली के टीके तक राधा-कृष्ण और छेड़खानी-ठिठोली युक्त होली गायन चलता है.

कुमाऊं में बैठकी होली की धूम.

पढ़ें-फिर सामने आया हरीश रावत का दर्द, भाजपा के बहाने अपनों को बनाया निशाना

अंत में होली अपने पूरे रंग में पहुंच जाती है और रंगों के साथ खुलकर मनाई जाती है. नैनीताल में भी होली गायन शुरू हो गया है और लोग बढ़-चढ़ कर भाग ले रहे हैं.कुमाऊं में होली गायन की परंपरा काफी समृद्ध है, जो अतीत से चली आ रही है. माना जाता है कि बैठकी होली गायन की शुरूआत 16वीं सदी में चंद राजा कल्याण चंद के शासन काल से शुरू हुई थी.बैठकी होली में अलग-अलग समय पर अलग-अलग राग गाए जाते हैं. इनमें राग धमार, राग काफी, राग जंगला काफी, राग परज, राग भैरवी, राग बागेश्री, राग सहाना, राग विहाग, राग खम्माज, राग पीलू, राग झिझोटी, राग देश, रागह धमार आदि मुख्य हैं.

होली गायन में महिलाएं भी उमंग और उत्साह के साथ प्रतिभाग करती हैं.नैनीताल में पिछले 40 सालों से होली की अनूठी परंपरा को मुस्लिम समुदाय के लोग भी निभाते आ रहे हैं. मुस्लिम होलियारों का मानना है कि होली जैसे त्योहार को धर्म और समुदाय से जोड़ता गलत है, जबकि होली समाज को जोड़ती आई है.करीब डेढ़ साल पहले रामपुर के उस्ताद अमानत हुसैन ने कुमाऊं में होली गीतों की शुरूआत की थी और तब से लेकर आज तक कुमाऊं में बैठकी और खड़ी होली इसी अंदाज में मनाई जाती है.

Last Updated : Dec 20, 2021, 8:59 AM IST
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