हल्द्वानी: महाशिवरात्रि का पर्व 01 मार्च को है. इस बार महाशिवरात्रि घनिष्ठा नक्षत्र में पड़ रही है. आदिकाल से धार्मिक मान्यता है कि महाशिवरात्रि भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की रात्रि मनाया जाता है. इस दिन भगवान शिव की आराधना करने से सभी मनोकामनाएं और मनवांछित फल की प्राप्ति होती है. इस दिन जप और तप का महत्व माना जाता है. महाशिवरात्रि पर चारों प्रहर पूजा का विशेष महत्व होता है.
ज्योतिषाचार्य डॉ. नवीन चंद्र जोशी के मुताबिक, इस बार ग्रह नक्षत्रों के शुभ संयोग इस महाशिवरात्रि को खास बना रहे हैं. सूर्योदय के बाद से शिव पूजन के साथ-साथ शिव जलाभिषेक कर भगवान शिव को प्रसन्न करने का विशेष योग बन रहा हैं. महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा अर्चना सहस्त्र जन्म के पापों का तिरोहण करने अनंत पुण्य फल देने वाली है.
महाशिवरात्रि के दिन रात्रि के चार पहर पूजा का विशेष महत्व है. मंगलवार शाम 6:20 से रात्रि 9:27 तक पहला प्रहर, जबकि दूसरा प्रहर 9:27 से रात्रि 12:33, महाशिवरात्रि का तीसरा पहर की पूजा 2 मार्च को रात्रि 12:33 से सुबह 3:40 तक रहेगा, जबकि चौथा पहर 2 मार्च बुधवार सुबह 3:40 से 6:45 तक रहेगा. परायण का मुहूर्त बुधवार सुबह 6:45 पर समाप्त होगा.
ज्योतिषाचार्य डॉ. नवीन चंद्र जोशी के मुताबिक, आदिकाल से शिव आराधना सर्वश्रेष्ठ आराधना के रूप में मानी जाती हैं. देवताओं और ऋषि-मुनियों ने भी भगवान शिव की आराधना कर मनवांछित फल की प्राप्ति की थी. ऐसे में महाशिवरात्रि के मौके पर विशेष रूप से रात्रि पूजा का विशेष महत्व माना जाता है, जहां भगवान शिव की आराधना कर मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं. महाशिवरात्रि में चार पहर में पूजा किया जाता है. प्रत्येक पहर की पूजा में 'ऊँ नमः शिवाय' का जाप करते रहना चाहिए.
पूजन की विधि: उपवास के अवधि में रुद्राभिषेक से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं. पूजा का संकल्प लेते हुए भगवान शिव को भांग, धतूरा, बेर, चंदन ,फल, फूल, अर्पित करें और दूध दही से अभिषेक करें. साथ ही मां पार्वती के लिए सुहागिन महिलाएं सुहाग की प्रतीक चूड़ियां बिंदी सिंदूर आदि वस्तु को अर्पित कर सकती हैं.
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ज्योतिषाचार्य के मुताबिक, भगवान शिव को अभिषेक के दौरान स्टील या एल्युमिनियम के बर्तन से शिवलिंग पर जलाभिषेक से परहेज करना चाहिए. शिवलिंग पर सोने चांदी या तांबे के बर्तन से जलाभिषेक करने चाहिए. संभव हो तो गंगा जल भगवान शिव को समर्पित करें. भगवान शिव पर ठंडी चीजों कि चढ़ाने की परंपरा है.
मान्यता है कि समुद्र मंथन से निकले विष को भगवान शिव ने पी लिया था. उन्होंने विष को गले से नीचे नहीं जाने दिया, जिसकी वजह से भगवान शिव का गला नीला हो गया और उनका नाम नीलकंठ पड़ गया. विष में अत्यधिक गर्मी थी उसका असर कम करने और शीतलता देने के लिए भगवान शिव को ठंडा जल चढ़ाने की मान्यता है.