हल्द्वानी: हर साल भादो माह के शुक्लपक्ष की अष्टमी को श्री राधाअष्टमी (Radha Ashtami) के रूप में मनाया जाता है. जिसका हिन्दू धर्म में खास महत्व है. शास्त्रों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण (Krishna) के जन्मदिन भादो कृष्णपक्ष अष्टमी से पन्द्रह दिन बाद शुक्लपक्ष की अष्टमी को दोपहर अभिजित मुहूर्त में श्रीराधा (Shri Radha) जी राजा वृषभानु की यज्ञ भूमि से प्रकट हुई थीं. इसलिए इस दिन श्रीराधाष्टमी पर्व मनाया जाता है.
पौराणिक मान्यता: हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधाष्टमी (Radhashtami festival 2022) का व्रत रखा जाता है. मान्यता है कि राधाष्टमी के दिन ही राधा रानी का जन्म हुआ था. इसलिए इस दिन को राधा अष्टमी के नाम से जाना जाता है. कुमाऊं मंडल में इस दिन को नंदा अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है. इस मौके पर मां नंदा सुनंदा की पूजा भी की जाती है.
व्रत रखने से सौभाग्य की होती है प्राप्ति: मान्यता है कि भगवान कृष्ण का जन्म भादो माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था. वहीं राधा का जन्म भादो माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को हुआ था. शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान कृष्ण व राधा रानी की विधि-विधान से पूजा करने से सभी पापों से मुक्ति व जीवन में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है और महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
पढ़ें- यहां दूर होता है सर्प दोष, हरिद्वार में तक्षक नाग के मंदिर आइए
जानिए शुभ मुहूर्त: ज्योतिषाचार्य डॉ. नवीन चंद्र जोशी के मुताबिक भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 3 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 25 मिनट पर शुरू होगी. जिसका समापन 4 सितंबर को सुबह 10 बजकर 40 मिनट पर होगा. उदयातिथि 4 सितंबर को राधाष्टमी व्रत रखा जाएगा. जबकि पूजा का शुभ मुहूर्त शुभ समय सुबह 4 बजकर 36 मिनट से सूर्योदय तक रहेगा.
राधाष्टमी व्रत पूजा विधि: राधाष्टमी (radhashtami fast 4 september) के दिन सुबह नित्य कर्मों से निपटकर स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें. जिसके बाद व्रत का संकल्प लें. घर के पूजा स्थल की ठीक से साफ-सफाई करके वहां एक कलश में जल भरकर रखें. पूजा के लिए मिट्टी के कलश का प्रयोग करें. लकड़ी की चौकी या किसी आसन पर भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की मूर्ति की स्थापना करें और विधि-विधान के साथ दोनों की पूजा करें. जिससे भगवान कृष्ण और राधा रानी प्रसन्न हो सकें. भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी को चंदन, अक्षत, फूल और फल चढ़ाएं. इसके बाद धूप-दीप से आरती करें. आरती के बाद राधा-कृष्ण के मंत्रों का जाप करें.
पढ़ें-देवभूमि के इस मंदिर से शुरू हुई शिवलिंग की पूजा, महादेव की रही है तपोभूमि
कुमाऊं में नंदा देवी की होती है पूजा: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान कृष्ण की पूजा बिना राधारानी के अधूरी मानी जाती है. राधा अष्टमी को कुमाऊं अंचल में मां नंदा अष्टमी (Kumaon maa Nanda Devi) के नाम से जाना जाता है. नंदा अष्टमी के मौके पर मां नंदा सुनंदा की मूर्ति की स्थापना की जाती है. पूरे कुमाऊं अंचल में जगह-जगह मां नंदा सुनंदा की आराधना की जाती है. जगह-जगह भव्य मेला के साथ-साथ मां नंदा सुनंदा की डोला यात्रा भी निकाली जाती है.