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कंडी मार्ग की कवायद ठंडे बस्ते में, 32 सालों से अधूरा सपना आखिर कब होगा पूरा? - कंडी मार्ग न्यूज

कंडी मार्ग गढ़वाल से कुमाऊं को जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट था. वन मंत्री हरक सिंह रावत हर कीमत पर इसे पूरा करवाना चाहते थे, लेकिन स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड की बैठक में इस प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.

रामनगर
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Published : Aug 30, 2020, 4:23 PM IST

रामनगर: वन मंत्री हरक सिंह रावत के प्रयासों से लोगों को उम्मीद जगी थी कि अब जल्द ही कुमाऊं से गढ़वाल को जोड़ने वाला कंडी मार्ग (कोटद्वार-रामनगर मार्ग) बनेगा, लेकिन समय बीतते के साथ ये कवायद ठंडे बस्ते में जाती हुई दिख रही है. स्थानीय लोगों का कहना है कि सरकार की इच्छा शक्ति की कमी के चलते ये मार्ग आज तक नहीं बन पाया है.

दरअसल, इस मार्ग के बनने से गढ़वाल-कुमाऊं के बीच की दूरी 82 किमी कम हो जाएगी. जिससे न सिर्फ लोगों के समय की बचत होती, बल्कि उनका पैसा की कम लगेगा. यही कारण है कि करीब पिछले 32 सालों से कुमाऊं और गढ़वाल के लोग इस मार्ग को बनाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन आजतक उनकी ये मांग पूरी नहीं हो पाई है. हालांकि, त्रिवेंद्र सरकार के सत्ता में आने के बाद लोगों को कुछ उम्मीद भी जगी थी कि उनका सपना जल्द पूरा होगा. वहीं, कंडी मार्ग वन मंत्री हरक सिंह रावत के ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल है. बाजवूद इसके एक बार फिर लोगों की उम्मीद टूटती हुई नजर आ रही है.

कंडी मार्ग की कवायद ठंडे बस्ते में.

पढ़ें- तीरथ रावत ने संसद में उठाया कंडी मार्ग का मुद्दा, बताई उत्तराखंड के लोगों की परेशानी

कंडी मार्ग को लेकर सालों से संघर्ष कर रहे महेश जोशी की मानें तो इस रोड को बनाने में सरकार में इच्छा शक्ति की कमी है. इस रोड को बनाने के लिए सबसे पहले इस क्षेत्र को कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से बाहर करना होगा. नहीं तो वन्य जीवों की सुरक्षा का हवाला देकर ये रोड कभी भी नहीं बनने दी जाएगी.

वहीं, इस मामले में कॉर्बेट टाइगर रिर्जव के निर्देशक राहुल कुमार का कहना है कि कंडी मार्ग के लिए राज्य सरकार भारतीय वन्यजीव संस्थान से सर्वे कर रही है. सर्वे रिपोर्ट को नेशनल वाइल्डलाइफ बोर्ड के सामने रखा जाएगा. उसके बाद कंडी मार्ग को लेकर कुछ कार्रवाई की जा सकेगी.

बता दें कि कंडी मार्ग का निर्माण न होने से कोटद्वार से रामनगर जाने के लिए प्रदेश के लोगों को उत्तर प्रदेश के नजीबाबाद-नगीना-धामपुर-अफजलगढ़-काशीपुर होकर जाना पड़ता है. इस मार्ग की दूरी 172 किमी है. जबकि, कंडी मार्ग से ये दूरी आधी रह जाएगा. पौड़ी सांसद तीरथ सिंह रावत ने इस मुद्दे को संसद में भी उठाया था. तब उन्होंने सदन को बताया कि उन्हें अपनी लोकसभा के एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाने के लिए यूपी से होकर गुजरना पड़ता है.

कंडी मार्ग क्या है?

लालढांग के जरिए हरिद्वार और पौड़ी के रास्ते कुमाऊं तक जाने वाले कंडी रोड को उत्तराखंड की महत्वपूर्ण सड़क माना जाता है. लंबे समय से इस सड़क के निर्माण की मांग उठती रही है. उत्तराखंड में कंडी मार्ग गढ़वाल से कुमाऊं जाने के लिए सबसे सुगम मार्ग है. यूपी से होकर गुजरने वाला वर्तमान प्रचलित मार्ग नजीबाबाद-रामनगर की अपेक्षा कंडी मार्ग 85 किलोमीटर कम है. लेकिन पहले कॉर्बेट और फिर राजाजी नेशनल पार्क की स्थापना होने के बाद इसका बड़ा हिस्सा पार्क क्षेत्रों में आ गया और ये मार्ग आम आवाजाही के लिए बंद कर दिए गए थे. दशकों से इस मार्ग को पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए खोलने की मांग उठती रही है. कुमाऊं से लेकर गढ़वाल तक आंदोलन भी चले, लेकिन वाइल्ड लाइफ एक्ट और फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट के सख्त प्रावधान इसके आड़े आ गए.

रामनगर: वन मंत्री हरक सिंह रावत के प्रयासों से लोगों को उम्मीद जगी थी कि अब जल्द ही कुमाऊं से गढ़वाल को जोड़ने वाला कंडी मार्ग (कोटद्वार-रामनगर मार्ग) बनेगा, लेकिन समय बीतते के साथ ये कवायद ठंडे बस्ते में जाती हुई दिख रही है. स्थानीय लोगों का कहना है कि सरकार की इच्छा शक्ति की कमी के चलते ये मार्ग आज तक नहीं बन पाया है.

दरअसल, इस मार्ग के बनने से गढ़वाल-कुमाऊं के बीच की दूरी 82 किमी कम हो जाएगी. जिससे न सिर्फ लोगों के समय की बचत होती, बल्कि उनका पैसा की कम लगेगा. यही कारण है कि करीब पिछले 32 सालों से कुमाऊं और गढ़वाल के लोग इस मार्ग को बनाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन आजतक उनकी ये मांग पूरी नहीं हो पाई है. हालांकि, त्रिवेंद्र सरकार के सत्ता में आने के बाद लोगों को कुछ उम्मीद भी जगी थी कि उनका सपना जल्द पूरा होगा. वहीं, कंडी मार्ग वन मंत्री हरक सिंह रावत के ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल है. बाजवूद इसके एक बार फिर लोगों की उम्मीद टूटती हुई नजर आ रही है.

कंडी मार्ग की कवायद ठंडे बस्ते में.

पढ़ें- तीरथ रावत ने संसद में उठाया कंडी मार्ग का मुद्दा, बताई उत्तराखंड के लोगों की परेशानी

कंडी मार्ग को लेकर सालों से संघर्ष कर रहे महेश जोशी की मानें तो इस रोड को बनाने में सरकार में इच्छा शक्ति की कमी है. इस रोड को बनाने के लिए सबसे पहले इस क्षेत्र को कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से बाहर करना होगा. नहीं तो वन्य जीवों की सुरक्षा का हवाला देकर ये रोड कभी भी नहीं बनने दी जाएगी.

वहीं, इस मामले में कॉर्बेट टाइगर रिर्जव के निर्देशक राहुल कुमार का कहना है कि कंडी मार्ग के लिए राज्य सरकार भारतीय वन्यजीव संस्थान से सर्वे कर रही है. सर्वे रिपोर्ट को नेशनल वाइल्डलाइफ बोर्ड के सामने रखा जाएगा. उसके बाद कंडी मार्ग को लेकर कुछ कार्रवाई की जा सकेगी.

बता दें कि कंडी मार्ग का निर्माण न होने से कोटद्वार से रामनगर जाने के लिए प्रदेश के लोगों को उत्तर प्रदेश के नजीबाबाद-नगीना-धामपुर-अफजलगढ़-काशीपुर होकर जाना पड़ता है. इस मार्ग की दूरी 172 किमी है. जबकि, कंडी मार्ग से ये दूरी आधी रह जाएगा. पौड़ी सांसद तीरथ सिंह रावत ने इस मुद्दे को संसद में भी उठाया था. तब उन्होंने सदन को बताया कि उन्हें अपनी लोकसभा के एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाने के लिए यूपी से होकर गुजरना पड़ता है.

कंडी मार्ग क्या है?

लालढांग के जरिए हरिद्वार और पौड़ी के रास्ते कुमाऊं तक जाने वाले कंडी रोड को उत्तराखंड की महत्वपूर्ण सड़क माना जाता है. लंबे समय से इस सड़क के निर्माण की मांग उठती रही है. उत्तराखंड में कंडी मार्ग गढ़वाल से कुमाऊं जाने के लिए सबसे सुगम मार्ग है. यूपी से होकर गुजरने वाला वर्तमान प्रचलित मार्ग नजीबाबाद-रामनगर की अपेक्षा कंडी मार्ग 85 किलोमीटर कम है. लेकिन पहले कॉर्बेट और फिर राजाजी नेशनल पार्क की स्थापना होने के बाद इसका बड़ा हिस्सा पार्क क्षेत्रों में आ गया और ये मार्ग आम आवाजाही के लिए बंद कर दिए गए थे. दशकों से इस मार्ग को पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए खोलने की मांग उठती रही है. कुमाऊं से लेकर गढ़वाल तक आंदोलन भी चले, लेकिन वाइल्ड लाइफ एक्ट और फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट के सख्त प्रावधान इसके आड़े आ गए.

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