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मां नंदा सुनंदा की मूर्ति निर्माण के लिए लाया गया कदली वृक्ष - 119th Festival of Maa Nanda Sunanda Devi

मां नंदा सुनंदा की मूर्ति निर्माण के लिए ज्योलिकोट के सड़ीयाताल गांव से कदली यानी केले के पेड़ को नैनीताल लाया गया. केले के पेड़ों को लाने से पहले गांव में पूरे रीति रिवाज के अनुसार मुख्य पुजारी पंडित भगवती प्रसाद जोशी के नेतृत्व में पूजा पाठ की.

नैनीताल लाया गया कदली वृक्ष
नैनीताल लाया गया कदली वृक्ष
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Published : Sep 12, 2021, 9:18 PM IST

नैनीताल: मां नंदा सुनंदा देवी का 119वां महोत्सव बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. नंदा सुनंदा की मूर्ति निर्माण के लिए ज्योलिकोट के सड़ीयाताल गांव से कदली यानी केले के पेड़ को नैनीताल लाया गया. केले के पेड़ों को लाने से पहले गांव में पूरे रीति रिवाज के अनुसार मुख्य पुजारी पंडित भगवती प्रसाद जोशी के नेतृत्व में पूजा पाठ की.

जिसके बाद इन दोनों पेड़ों को मां वैष्णो देवी मंदिर लाया गया, जहां पंडित दिनेश जोशी ने वृक्षों की पूजा की. इस दौरान महिलाओं ने पारंपरिक परिधान पहनकर वृक्ष का स्वागत किया. राम सेवक सभा द्वारा कदली वृक्ष को सूखा ताल क्षेत्र में ले जाया गया. जहां स्थानीय महिलाओं ने कदली वृक्ष का रीति रिवाज अनुसार पूजा पाठ की. इसके बाद कदली वृक्ष को नैना देवी मंदिर लाया गया.

जहां मां नंदा देवी मंदिर की परिक्रमा करने के बाद वृक्षों को मूर्ति निर्माण के लिए रख दिया गया है. अब इन वृक्षों से मां नंदा सुनंदा की प्रतिमाओं का निर्माण किया जाएगा. जिस स्थान से कदली वृक्ष लाए गए, वहां पर किया गया 21 पौधों का रोपण किया गया. जिसमें हरड़, बहेड़ा, पीपल, बट, इत्यादि शामिल है.

मां नंदा सुनंदा की मूर्ति निर्माण के लिए लाया गया कदली वृक्ष.

19 वर्ष पूर्व भी ज्योलोकोट के साडियातल गांव से कदली वृक्ष लाया गया था. रामसेवक सभा द्वारा कदली वृक्ष लाने के लिए पूर्व में भीमताल के जलाल गांव का चयन किया गया था. लेकिन किसी कारणवश कदली वृक्ष लाने के स्थान को बदलना पड़ा. जिसके बाद राम सेवक सभा द्वारा ज्योलिकोट के साडियातल गांव का चयन कदली वृक्ष के लिए किया गया. जहां से आज मूर्ति निर्माण के लिए दो कदली वृक्षों को नैनीताल लाया गया.

ये भी पढ़ें: आज से होगा पौराणिक नंदा देवी महोत्सव का आगाज, सीमित संख्या में जुटेंगे लोग

गांव प्रधान हरगोविंद सिंह रावत ने बताया साल 2003 में पहली बार कदली वृक्ष के लिए उनके गांव का चयन रामसेवक सभा द्वारा किया गया था, जिसके बाद से उनके गांव में निरंतर विकास हुआ. गांव के युवाओं को तेजी से रोजगार मिला और गांव में किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं आई. संयोगवश एक बार फिर से मां की मूर्ति निर्माण के लिए कदली वृक्ष के लिए राम सेवक सभा द्वारा उनके गांव का चयन किया, जिससे गांव के लोग काफी खुश हैं. ग्रामीणों ने मिलकर इस भव्य आयोजन को सफल बनाया.

स्थानीय निवासी मनमोहन सिंह बिष्ट बताया जहां से आज कदली वृक्ष नैनीताल ले जाया जा रहा है, उस स्थान का नाम पूर्व में डरानी हुआ करता था. पहले ग्रामीण दिन के समय यहां आने से डरते थे. इस क्षेत्र में भयानक जंगल, बड़े-बड़े पत्थर हुआ करते थे. एक बार फिर से 45 साल पहले वह अपने परिजनों के साथ क्षेत्र में आए, जहां उन्हें प्राकृतिक शिवलिंग एवं गुफा देखने को मिला. यहां शिव के लिंग पर प्राकृतिक रूप से पानी गिर रहा था.

जिसके बाद उन्होंने इस स्थान को साफ किया. इस क्षेत्र में शिव मंदिर का निर्माण किया गया. जिसे प्रक्तेश्वर महादेव कहा जाता है. ग्रामीणों द्वारा इस स्थान पर मां के मंदिर का भी निर्माण किया गया. जहां अब पर्व के मौके पर लोग आते हैं.

साडियातल निवासी जया बिष्ट कहती हैं कि संयोग से आज 19 साल बाद उनके गांव में फिर से कदली वृक्ष मां की प्रतिमाओं के निर्माण के लिए ले जाया जा रहा है. उन्हें विश्वास है कि इस बार गांव में कोई अच्छा काम होगा. क्योंकि जब-जब गांव या क्षेत्र से मां की प्रतिमाओं के लिए कदली वृक्ष ले जाया गया तो गांव के लिए कोई न कोई अच्छा कार्य जरूर होता है.

नैनीताल: मां नंदा सुनंदा देवी का 119वां महोत्सव बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. नंदा सुनंदा की मूर्ति निर्माण के लिए ज्योलिकोट के सड़ीयाताल गांव से कदली यानी केले के पेड़ को नैनीताल लाया गया. केले के पेड़ों को लाने से पहले गांव में पूरे रीति रिवाज के अनुसार मुख्य पुजारी पंडित भगवती प्रसाद जोशी के नेतृत्व में पूजा पाठ की.

जिसके बाद इन दोनों पेड़ों को मां वैष्णो देवी मंदिर लाया गया, जहां पंडित दिनेश जोशी ने वृक्षों की पूजा की. इस दौरान महिलाओं ने पारंपरिक परिधान पहनकर वृक्ष का स्वागत किया. राम सेवक सभा द्वारा कदली वृक्ष को सूखा ताल क्षेत्र में ले जाया गया. जहां स्थानीय महिलाओं ने कदली वृक्ष का रीति रिवाज अनुसार पूजा पाठ की. इसके बाद कदली वृक्ष को नैना देवी मंदिर लाया गया.

जहां मां नंदा देवी मंदिर की परिक्रमा करने के बाद वृक्षों को मूर्ति निर्माण के लिए रख दिया गया है. अब इन वृक्षों से मां नंदा सुनंदा की प्रतिमाओं का निर्माण किया जाएगा. जिस स्थान से कदली वृक्ष लाए गए, वहां पर किया गया 21 पौधों का रोपण किया गया. जिसमें हरड़, बहेड़ा, पीपल, बट, इत्यादि शामिल है.

मां नंदा सुनंदा की मूर्ति निर्माण के लिए लाया गया कदली वृक्ष.

19 वर्ष पूर्व भी ज्योलोकोट के साडियातल गांव से कदली वृक्ष लाया गया था. रामसेवक सभा द्वारा कदली वृक्ष लाने के लिए पूर्व में भीमताल के जलाल गांव का चयन किया गया था. लेकिन किसी कारणवश कदली वृक्ष लाने के स्थान को बदलना पड़ा. जिसके बाद राम सेवक सभा द्वारा ज्योलिकोट के साडियातल गांव का चयन कदली वृक्ष के लिए किया गया. जहां से आज मूर्ति निर्माण के लिए दो कदली वृक्षों को नैनीताल लाया गया.

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गांव प्रधान हरगोविंद सिंह रावत ने बताया साल 2003 में पहली बार कदली वृक्ष के लिए उनके गांव का चयन रामसेवक सभा द्वारा किया गया था, जिसके बाद से उनके गांव में निरंतर विकास हुआ. गांव के युवाओं को तेजी से रोजगार मिला और गांव में किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं आई. संयोगवश एक बार फिर से मां की मूर्ति निर्माण के लिए कदली वृक्ष के लिए राम सेवक सभा द्वारा उनके गांव का चयन किया, जिससे गांव के लोग काफी खुश हैं. ग्रामीणों ने मिलकर इस भव्य आयोजन को सफल बनाया.

स्थानीय निवासी मनमोहन सिंह बिष्ट बताया जहां से आज कदली वृक्ष नैनीताल ले जाया जा रहा है, उस स्थान का नाम पूर्व में डरानी हुआ करता था. पहले ग्रामीण दिन के समय यहां आने से डरते थे. इस क्षेत्र में भयानक जंगल, बड़े-बड़े पत्थर हुआ करते थे. एक बार फिर से 45 साल पहले वह अपने परिजनों के साथ क्षेत्र में आए, जहां उन्हें प्राकृतिक शिवलिंग एवं गुफा देखने को मिला. यहां शिव के लिंग पर प्राकृतिक रूप से पानी गिर रहा था.

जिसके बाद उन्होंने इस स्थान को साफ किया. इस क्षेत्र में शिव मंदिर का निर्माण किया गया. जिसे प्रक्तेश्वर महादेव कहा जाता है. ग्रामीणों द्वारा इस स्थान पर मां के मंदिर का भी निर्माण किया गया. जहां अब पर्व के मौके पर लोग आते हैं.

साडियातल निवासी जया बिष्ट कहती हैं कि संयोग से आज 19 साल बाद उनके गांव में फिर से कदली वृक्ष मां की प्रतिमाओं के निर्माण के लिए ले जाया जा रहा है. उन्हें विश्वास है कि इस बार गांव में कोई अच्छा काम होगा. क्योंकि जब-जब गांव या क्षेत्र से मां की प्रतिमाओं के लिए कदली वृक्ष ले जाया गया तो गांव के लिए कोई न कोई अच्छा कार्य जरूर होता है.

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