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ड्रैगनफ्लाई से डेंगू और मलेरिया होगा छूमंतर, प्रदूषण से घट रही इनकी संख्या

दिल्ली में एक रिसर्च के मुताबिक, डेंगू और मलेरिया से बचाव में ड्रैगनफ्लाई कारगार साबित हो सकता है. लेकिन प्रदूषण के चलते रामनगर में ड्रैगनफ्लाई की संख्या घटती जा रही है.

Dragonfly in Uttarakhand
ड्रैगनफ्लाई से डेंगू और मलेरिया होगा छूमंतर
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Published : Sep 1, 2020, 5:23 PM IST

रामनगर: हर साल डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारी से कई लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं. प्रशासन चाहे जितना फॉगिंग अभियान चला ले, लार्वा कहीं न कहीं पनप ही जाता हैं. लेकिन इन मच्छरों को दूर भगाने का सबसे कारगर उपाय है ड्रैगनफ्लाई. ड्रैगनफ्लाई एक दिन में 100 मच्छरों या लार्वा खाने की क्षमता रखता है. ऐसे में मच्छरों से होने वाली बीमारियों को दूर रखने के लिए ड्रैगनफ्लाई कारगार साबित हो रहे हैं.

रिचर्स के मुताबिक, ड्रैगनफ्लाई से काफी हद तक डेंगू और मलेरिया पर काबू पाया जा सकता है. ड्रैगनफ्लाई अपने पैदा होने से मरने तक मच्छरों के लार्वा और मच्छरों को खाकर ही जीवित रहता है, ऐसे में डेंगू-मलेरिया से काफी राहत मिल सकती है.

ड्रैगनफ्लाई से डेंगू और मलेरिया होगा छूमंतर.

रामनगर में पर्यावरणविद् नाजनीन सिद्दीकी का कहना है कि ड्रैगनफ्लाई डेंगू एवं मलेरिया जैसी बीमारियों की रोकथाम में काफी फायदेमंद हो सकती है. ऐसे में हमारा प्रयास है कि ड्रैगनफ्लाई की संख्या बढ़ाई जाए. ताकि लोगों को डेंगू और मलेरिया से बचाया जा सके.

ये भी पढ़ें: उत्तराखंड: कॉन्स्टेबल से दारोगा बनने का रास्ता साफ, सितंबर अंत तक होगा प्रमोशन

ड्रैगनफ्लाई को बच्चे 'हेलीकॉप्टर' के नाम से भी जानते हैं. इसकी मौजूदगी वातावरण के स्वस्थ होने का प्रतीक मानी जाती है. यह मच्छरों को बढ़ने से रोकती है. ड्रैगनफ्लाई झील, गमलों आदि के आसपास नजर आती है और मच्छरों का लार्वा खाती है, जिससे मच्छरों की आबादी नियंत्रित होती है.

ड्रैगनफ्लाई पर किताब लिखने वाली नाजनीन सिद्दीकी का कहना है कि पूरे विश्व में ड्रैगनफ्लाई की 6,000 प्रजातियां मौजूद हैं और भारत में 493 प्रजातियां पाई जाती है. नाजनीन सिद्दीकी के मुताबिक, कॉर्बेट क्षेत्र में ड्रैगनफ्लाई की 46 प्रजाति मौजूद है. ये सभी नदी, तालाब और साफ पानी के किनारे रहना पसंद करती हैं. लेकिन बढ़ते प्रदूषण के कारण ड्रैगनफ्लाई की संख्या घटती जा रही है.

रामनगर: हर साल डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारी से कई लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं. प्रशासन चाहे जितना फॉगिंग अभियान चला ले, लार्वा कहीं न कहीं पनप ही जाता हैं. लेकिन इन मच्छरों को दूर भगाने का सबसे कारगर उपाय है ड्रैगनफ्लाई. ड्रैगनफ्लाई एक दिन में 100 मच्छरों या लार्वा खाने की क्षमता रखता है. ऐसे में मच्छरों से होने वाली बीमारियों को दूर रखने के लिए ड्रैगनफ्लाई कारगार साबित हो रहे हैं.

रिचर्स के मुताबिक, ड्रैगनफ्लाई से काफी हद तक डेंगू और मलेरिया पर काबू पाया जा सकता है. ड्रैगनफ्लाई अपने पैदा होने से मरने तक मच्छरों के लार्वा और मच्छरों को खाकर ही जीवित रहता है, ऐसे में डेंगू-मलेरिया से काफी राहत मिल सकती है.

ड्रैगनफ्लाई से डेंगू और मलेरिया होगा छूमंतर.

रामनगर में पर्यावरणविद् नाजनीन सिद्दीकी का कहना है कि ड्रैगनफ्लाई डेंगू एवं मलेरिया जैसी बीमारियों की रोकथाम में काफी फायदेमंद हो सकती है. ऐसे में हमारा प्रयास है कि ड्रैगनफ्लाई की संख्या बढ़ाई जाए. ताकि लोगों को डेंगू और मलेरिया से बचाया जा सके.

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ड्रैगनफ्लाई को बच्चे 'हेलीकॉप्टर' के नाम से भी जानते हैं. इसकी मौजूदगी वातावरण के स्वस्थ होने का प्रतीक मानी जाती है. यह मच्छरों को बढ़ने से रोकती है. ड्रैगनफ्लाई झील, गमलों आदि के आसपास नजर आती है और मच्छरों का लार्वा खाती है, जिससे मच्छरों की आबादी नियंत्रित होती है.

ड्रैगनफ्लाई पर किताब लिखने वाली नाजनीन सिद्दीकी का कहना है कि पूरे विश्व में ड्रैगनफ्लाई की 6,000 प्रजातियां मौजूद हैं और भारत में 493 प्रजातियां पाई जाती है. नाजनीन सिद्दीकी के मुताबिक, कॉर्बेट क्षेत्र में ड्रैगनफ्लाई की 46 प्रजाति मौजूद है. ये सभी नदी, तालाब और साफ पानी के किनारे रहना पसंद करती हैं. लेकिन बढ़ते प्रदूषण के कारण ड्रैगनफ्लाई की संख्या घटती जा रही है.

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