हल्द्वानी: शास्त्रीय रागों पर आधारित कुमाऊं की प्रसिद्ध पारंपरिक होली गीतों का गायन पौष के प्रथम रविवार से बैठक की शुरुआत कर दिया गया है. हिमालय संगीत शोध समिति द्वारा होली संगीत की कार्यशाला का उद्घाटन रविवार शाम वरिष्ठ होल्यार भुवन चंद्र जोशी, रंगकर्मी अनिल घिल्डियाल, आचार्य धीरज उप्रेती और आचार्य मनोज पांडे द्वारा किया गया.
संस्थान के जेके पुरम मुखानी स्थित सभागार में होली बैठकी में परम्परागत होली के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कलाकारों ने सुन्दर प्रस्तुतियां दीं. पौष के पहले रविवार से आध्यात्मिक होली से इसकी शुरुआत होती है. होली गायन का दूसरा चरण वसंत पंचमी, तीसरा चरण महाशिवरात्रि और चतुर्थ चरण रंगभरी एकादशी से शुरू होता है. होली गायन का शुभारम्भ करते हुए मनोज पांडे ने प्रस्तुति दी.
‘भव भंजन गुन गाउं, मैं अपने राम को रिझाउं’. राजू पांडे ने निर्वाण होली के गीत को इस प्रकार प्रस्तुत किया- ‘वन को चले दोनों भाई, उन्हें समझाओ री माई’. पंकज जोशी ने क्रम को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुति दी- ‘मालिक सीता राम काहे को हो विचारे’. शुभम मठपाल ने अगली प्रस्तुति इस प्रकार दी- ‘क्या जिन्दगी का ठिकाना, फिरत मन काहे भुलाना’. कार्तिक जोशी ने अपनी प्रस्तुति में श्याम का वर्णन किया- ‘जित देखूं तित श्याम, श्याम ही बदरा श्याम ही कजरा’.
निर्वाण होली के शुभारम्भ अवसर पर कौशल जोशी, दीपक आर्या, भुवन शर्मा की प्रस्तुतियों के साथ ही आचार्य धीरज उप्रेती की कर्णप्रिय तबला संगत और कलाकारों की समूह प्रस्तुतियां हुई. इस अवसर पर पूरन तिवारी, अनुपम जोशी, भुवनेश कुमार, शिव शरन जोशी, लक्ष्मण सिंह, गीता उप्रेती, मानसी मेहता, कनिका जोशी, आशुतोष उप्रेती, नीरज उप्रेती, जगदीश चन्द्र जोशी, उत्कर्ष उप्रेती आदि उपस्थित थे.
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