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खतरे में 'हिमालयन वियाग्रा', IUCN ने संकट ग्रस्त प्रजातियों की रेड लिस्ट में किया शामिल

कीड़ा जड़ी की जानकारी 15वीं शताब्दी में तिब्बत के ग्रंथों में मिली थी. इसमें कीड़ा जड़ी को सभी बीमारियों के इलाज लिए उपयोगी बताया गया था.

हिमालयन वियाग्रा
हिमालयन वियाग्रा
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Published : Jul 14, 2020, 4:11 PM IST

Updated : Jul 15, 2020, 10:37 AM IST

हल्द्वानी: हिमालयन वियाग्रा के नाम से प्रसिद्ध कीड़ा जड़ी को आईयूसीएन (अंतरराष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण संघ) ने संकट ग्रस्त प्रजातियों की रेड लिस्ट में शामिल किया है. आईयूसीएन के मुताबिक कीड़ा जड़ी विलुप्ती की कगार पर है. इसी खतरे को देखते हुए आईयूसीएन ने रेड लिस्ट में डाला है.

20 लाख रुपए किलो तक बिकती है कीड़ा जड़ी

आईयूसीएन ने उच्च हिमालई क्षेत्रों में पाई जाने वाली यार्सागुंबा जड़ी (कीड़ा जड़ी) के संरक्षण के लिए वन विभाग को निर्देशित भी किया है. ताकि इसकों विलुप्त होने से बचाया जा सके. कीड़ा जड़ी की एशियाई देशों में काफी मांग है. सिंगापुर, चाइना और हॉन्गकांग जैसे देशों में बड़ी मात्रा में इसकी सप्लाई की जाती है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत 20 लाख रुपए प्रति किलो तक है.

खतरे में 'हिमालयन वियाग्रा'.

भारत और नेपाल के उच्च हिमालई क्षेत्रों पाई जाती है कीड़ा जड़ी

भारत और नेपाल के उच्च हिमालई क्षेत्रों में इसका बड़े स्तर पर कारोबार किया जाता है. दुनिया का सबसे बड़ा फंगस कीड़ा (जड़ी) कई गंभीर बीमारियों के काम आता है. कैंसर सहित कई रोग में कारगर साबित हो चुकी कीड़ा जड़ी करीब 3600 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले इलाकों में ही मिलती है. कीड़ा जड़ी भारत के अलावा नेपाल, चीन और भूटान के हिमालय और तिब्बत के पठार इलाकों में भी पाई जाती है.

पढ़ें- चीन पर होगी एक और चोट, कीड़ा जड़ी के निर्यात पर लगेगी रोक

उत्तराखंड में इन जिलों मिलती है कीड़ा जड़ी

कीड़ा जड़ी उत्तराखंड के पिथौरागढ़, चमोली और बागेश्वर जिले के उच्च हिमालई क्षेत्रों में पाई जाती है. मई से जुलाई माह के बीच पहाड़ों पर बर्फ पिघलने के दौरान बर्फ से निकलने वाले इस फंगस का स्थानीय लोग बड़े स्तर पर कारोबार करते हैं. इसकी से उनकी आजीविका चलाती है.

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खतरे में 'हिमालयन वियाग्रा'

पढ़ें- अब कीड़ा जड़ी को बाजार में उपलब्ध करवाएगा सहकारी संघ, जल्द खुलेंगे सेंटर

उत्पादन में 30 से 40 प्रतिशत कमी आई

आईयूसीएन के शोधकर्ता बताते हैं कि कीड़ा जड़ी की उपलब्धता में तेजी से कमी देखी जा रही है. पिछले 10 सालों में इसकी गिरावट 30 से 40 प्रतिशत देखी गई है. बताया जा रहा कि जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ उच्च हिमालई क्षेत्रों में इंसानी दखल कीड़ा जड़ी की विलुप्ती का कारण बनता जा रहा है. यह प्रजाति अब संकट ग्रस्त प्रजातियों में शामिल किया गया है.

वन अनुसंधान केंद्र के निदेशक संजीव चतुर्वेदी के मुताबिक कीड़ा जड़ी की लगातार घटती उपलब्धता के बाद (आईयूसीएन) ने संकट ग्रस्त प्रजातियों में शामिल कर रेड लिस्ट में डाल दिया है. ऐसे में अब इसके संरक्षण संवर्धन के लिए राज्य सरकार विभाग के साथ कार्य योजना तैयारी कर रही है. ताकि विलुप्त हो रही इस फंगस को बचाया जा सके.

तिब्बत के ग्रंथों में भी कीड़ा-जड़ी से जुड़ी जानकारियां

कीड़ा-जड़ी की जानकारी 15वीं शताब्दी में तिब्बत के ग्रंथों में मिली थी. इसमें कीड़ा-जड़ी को सभी बीमारियों के इलाज लिए उपयोगी बताया गया था. इसके बाद धीरे-धीरे कीड़ा जड़ी का क्रेज चीन में बढ़ने लगा. चीन में इसका प्रयोग थकान दूर करने और सेक्स पावर बढ़ाने वाली दवा के रूप में किया जाता रहा है. 1990 में चीन के एथलीटों ने जबरदस्त परफॉर्मेंस दिया था. जिसके बाद उनके कोच ने दावा किया था कि कीड़ा जड़ी खाने की वजह से ही एथलीटों की परफॉर्मेंस बढ़ गई थी. इसके बाद धीरे-धीरे कीड़ा जड़ी का इस्तेमाल मेडिसिन के रूप में किया जा रहा है.

हल्द्वानी: हिमालयन वियाग्रा के नाम से प्रसिद्ध कीड़ा जड़ी को आईयूसीएन (अंतरराष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण संघ) ने संकट ग्रस्त प्रजातियों की रेड लिस्ट में शामिल किया है. आईयूसीएन के मुताबिक कीड़ा जड़ी विलुप्ती की कगार पर है. इसी खतरे को देखते हुए आईयूसीएन ने रेड लिस्ट में डाला है.

20 लाख रुपए किलो तक बिकती है कीड़ा जड़ी

आईयूसीएन ने उच्च हिमालई क्षेत्रों में पाई जाने वाली यार्सागुंबा जड़ी (कीड़ा जड़ी) के संरक्षण के लिए वन विभाग को निर्देशित भी किया है. ताकि इसकों विलुप्त होने से बचाया जा सके. कीड़ा जड़ी की एशियाई देशों में काफी मांग है. सिंगापुर, चाइना और हॉन्गकांग जैसे देशों में बड़ी मात्रा में इसकी सप्लाई की जाती है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत 20 लाख रुपए प्रति किलो तक है.

खतरे में 'हिमालयन वियाग्रा'.

भारत और नेपाल के उच्च हिमालई क्षेत्रों पाई जाती है कीड़ा जड़ी

भारत और नेपाल के उच्च हिमालई क्षेत्रों में इसका बड़े स्तर पर कारोबार किया जाता है. दुनिया का सबसे बड़ा फंगस कीड़ा (जड़ी) कई गंभीर बीमारियों के काम आता है. कैंसर सहित कई रोग में कारगर साबित हो चुकी कीड़ा जड़ी करीब 3600 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले इलाकों में ही मिलती है. कीड़ा जड़ी भारत के अलावा नेपाल, चीन और भूटान के हिमालय और तिब्बत के पठार इलाकों में भी पाई जाती है.

पढ़ें- चीन पर होगी एक और चोट, कीड़ा जड़ी के निर्यात पर लगेगी रोक

उत्तराखंड में इन जिलों मिलती है कीड़ा जड़ी

कीड़ा जड़ी उत्तराखंड के पिथौरागढ़, चमोली और बागेश्वर जिले के उच्च हिमालई क्षेत्रों में पाई जाती है. मई से जुलाई माह के बीच पहाड़ों पर बर्फ पिघलने के दौरान बर्फ से निकलने वाले इस फंगस का स्थानीय लोग बड़े स्तर पर कारोबार करते हैं. इसकी से उनकी आजीविका चलाती है.

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खतरे में 'हिमालयन वियाग्रा'

पढ़ें- अब कीड़ा जड़ी को बाजार में उपलब्ध करवाएगा सहकारी संघ, जल्द खुलेंगे सेंटर

उत्पादन में 30 से 40 प्रतिशत कमी आई

आईयूसीएन के शोधकर्ता बताते हैं कि कीड़ा जड़ी की उपलब्धता में तेजी से कमी देखी जा रही है. पिछले 10 सालों में इसकी गिरावट 30 से 40 प्रतिशत देखी गई है. बताया जा रहा कि जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ उच्च हिमालई क्षेत्रों में इंसानी दखल कीड़ा जड़ी की विलुप्ती का कारण बनता जा रहा है. यह प्रजाति अब संकट ग्रस्त प्रजातियों में शामिल किया गया है.

वन अनुसंधान केंद्र के निदेशक संजीव चतुर्वेदी के मुताबिक कीड़ा जड़ी की लगातार घटती उपलब्धता के बाद (आईयूसीएन) ने संकट ग्रस्त प्रजातियों में शामिल कर रेड लिस्ट में डाल दिया है. ऐसे में अब इसके संरक्षण संवर्धन के लिए राज्य सरकार विभाग के साथ कार्य योजना तैयारी कर रही है. ताकि विलुप्त हो रही इस फंगस को बचाया जा सके.

तिब्बत के ग्रंथों में भी कीड़ा-जड़ी से जुड़ी जानकारियां

कीड़ा-जड़ी की जानकारी 15वीं शताब्दी में तिब्बत के ग्रंथों में मिली थी. इसमें कीड़ा-जड़ी को सभी बीमारियों के इलाज लिए उपयोगी बताया गया था. इसके बाद धीरे-धीरे कीड़ा जड़ी का क्रेज चीन में बढ़ने लगा. चीन में इसका प्रयोग थकान दूर करने और सेक्स पावर बढ़ाने वाली दवा के रूप में किया जाता रहा है. 1990 में चीन के एथलीटों ने जबरदस्त परफॉर्मेंस दिया था. जिसके बाद उनके कोच ने दावा किया था कि कीड़ा जड़ी खाने की वजह से ही एथलीटों की परफॉर्मेंस बढ़ गई थी. इसके बाद धीरे-धीरे कीड़ा जड़ी का इस्तेमाल मेडिसिन के रूप में किया जा रहा है.

Last Updated : Jul 15, 2020, 10:37 AM IST
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