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चमोली आपदा: कई पीड़ितों को नहीं मिला मुआवजा, HC ने सरकार से भरण-पोषण देने को कहा - रैणी गांव की आपदा समाचार

नैनीताल हाईकोर्ट में चमोली के रैणी गांव में इसी साल फरवरी में आई आपदा को लेकर दायर की गई जनहित याचिका पर सुनवाई हुई. उच्च न्यायालय ने सरकार से पीड़ितों को भरण-पोषण देने को कहा.

नैनीताल हाईकोर्ट
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Published : Aug 11, 2021, 3:50 PM IST

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने चमोली के रैणी गांव में फरवरी 2021 को आई आपदा को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए हैं कि जिन लोगों को मुआवजा नहीं दिया गया है, उनके व उनके परिवार वालों को भरण-पोषण दिया जाए. मामले की अगली सुनवाई के लिए 8 सितम्बर की तिथि नियत की है.

मामले की सुनवाई मुख्य न्यायधीश आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खण्डपीठ में हुई. मामले के अनुसार अल्मोड़ा निवासी राज्य आंदोलनकारी पीसी तिवारी ने जनहित याचिका दायर की थी. याचिका में उन्होंने कहा था कि चमोली के रैणी गांव में फरवरी 2021 को ग्लेशियर फटने से आपदा आ गयी थी. इससे वहां से स्थानीय लोग और हाइड्रोपावर परियोजना में कार्य कर रहे लोग प्रभावित हो गए थे.

कई श्रमिक और स्थानीय लोगों की इस आपदा में बहने से मौत हो गयी थी. सरकार ने आपदा पीड़ितों को अभी तक मुआवजा नहीं दिया है. सरकार के पास इस आपदा में कितने लोग प्रभावित हुए, कितने लोगों की मौत हुई है, कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है.

पढ़ें- ग्लोबल वार्मिंग पर IIT के वैज्ञानिकों का शोध, जल विद्युत परियोजनाओं को बताया वजह

वहीं पीसी तिवारी ने कोर्ट को बताया कि ऋषि गंगा हाइड्रोपावर कंपनी ने भी अपने श्रमिकों को मुआवजा देने में ढिलाई की है. याचिकाकर्ता का कहना है कि उत्तराखंड पहाड़ी क्षेत्र वाला राज्य है. इसके बाद भी सरकार के पास इन क्षेत्रों में होने वाली घटनाओं की जानकारी देने वाला कोई संयंत्र स्थापित नहीं है, जिससे इस तरह की घटनाओं का पूर्व से अनुमान लगाया जा सके.

इन क्षेत्रों में कार्य करने वाले श्रमिकों को सरकार या हाइड्रोपावर कंपनियों द्वारा सुरक्षा देने के नाम पर एक हेलमेट व एक जैकेट ही उपलब्ध कराई जाती है. याचिकाकर्ता का कहना है कि राज्य सरकार द्वारा अब तक उच्च हिमालयी क्षेत्रों की मॉनिटरिंग के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है. 2014 में रवि चोपड़ा की कमेटी द्वारा अपनी रिपोर्ट में बताया गया था कि उत्तराखंड में आपदा से निपटने के मामले में कई अनियमितताएं हैं. राज्य सरकार द्वारा 2014 से इन अनियमितताओं की तरफ कभी ध्यान नहीं दिया गया. जिस वजह से चमोली के रैणी गांव में इतनी बड़ी आपदा आई.

सरकार का 5,600 मीटर से अधिक उच्च हिमालयी क्षेत्रों में स्थापित रिमोट सेंसिंग संयंत्र भी कार्य नहीं कर रहा है. इस कारण बदल फटने व आपदा जैसी घटनाओं का पता नहीं लग पा रहा है. याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि उच्च न्यायालय ने पूर्व में अपने निर्णय में सरकार को निर्देश दिए थे कि इन क्षेत्रों में होने वाली हलचलों व घटनाओं की अर्ली जानकारी हेतु अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाया जाय. परन्तु अभी तक सरकार इस पर चुप बैठी है. बता दें कि इस आपदा में दो से ज्यादा लोग मारे गए थे. कई के तो शव भी नहीं मिले थे, जिन्हें बाद में सरकार ने शासनादेश जारी कर मृत घोषित कर दिया था.

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने चमोली के रैणी गांव में फरवरी 2021 को आई आपदा को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए हैं कि जिन लोगों को मुआवजा नहीं दिया गया है, उनके व उनके परिवार वालों को भरण-पोषण दिया जाए. मामले की अगली सुनवाई के लिए 8 सितम्बर की तिथि नियत की है.

मामले की सुनवाई मुख्य न्यायधीश आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खण्डपीठ में हुई. मामले के अनुसार अल्मोड़ा निवासी राज्य आंदोलनकारी पीसी तिवारी ने जनहित याचिका दायर की थी. याचिका में उन्होंने कहा था कि चमोली के रैणी गांव में फरवरी 2021 को ग्लेशियर फटने से आपदा आ गयी थी. इससे वहां से स्थानीय लोग और हाइड्रोपावर परियोजना में कार्य कर रहे लोग प्रभावित हो गए थे.

कई श्रमिक और स्थानीय लोगों की इस आपदा में बहने से मौत हो गयी थी. सरकार ने आपदा पीड़ितों को अभी तक मुआवजा नहीं दिया है. सरकार के पास इस आपदा में कितने लोग प्रभावित हुए, कितने लोगों की मौत हुई है, कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है.

पढ़ें- ग्लोबल वार्मिंग पर IIT के वैज्ञानिकों का शोध, जल विद्युत परियोजनाओं को बताया वजह

वहीं पीसी तिवारी ने कोर्ट को बताया कि ऋषि गंगा हाइड्रोपावर कंपनी ने भी अपने श्रमिकों को मुआवजा देने में ढिलाई की है. याचिकाकर्ता का कहना है कि उत्तराखंड पहाड़ी क्षेत्र वाला राज्य है. इसके बाद भी सरकार के पास इन क्षेत्रों में होने वाली घटनाओं की जानकारी देने वाला कोई संयंत्र स्थापित नहीं है, जिससे इस तरह की घटनाओं का पूर्व से अनुमान लगाया जा सके.

इन क्षेत्रों में कार्य करने वाले श्रमिकों को सरकार या हाइड्रोपावर कंपनियों द्वारा सुरक्षा देने के नाम पर एक हेलमेट व एक जैकेट ही उपलब्ध कराई जाती है. याचिकाकर्ता का कहना है कि राज्य सरकार द्वारा अब तक उच्च हिमालयी क्षेत्रों की मॉनिटरिंग के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है. 2014 में रवि चोपड़ा की कमेटी द्वारा अपनी रिपोर्ट में बताया गया था कि उत्तराखंड में आपदा से निपटने के मामले में कई अनियमितताएं हैं. राज्य सरकार द्वारा 2014 से इन अनियमितताओं की तरफ कभी ध्यान नहीं दिया गया. जिस वजह से चमोली के रैणी गांव में इतनी बड़ी आपदा आई.

सरकार का 5,600 मीटर से अधिक उच्च हिमालयी क्षेत्रों में स्थापित रिमोट सेंसिंग संयंत्र भी कार्य नहीं कर रहा है. इस कारण बदल फटने व आपदा जैसी घटनाओं का पता नहीं लग पा रहा है. याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि उच्च न्यायालय ने पूर्व में अपने निर्णय में सरकार को निर्देश दिए थे कि इन क्षेत्रों में होने वाली हलचलों व घटनाओं की अर्ली जानकारी हेतु अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाया जाय. परन्तु अभी तक सरकार इस पर चुप बैठी है. बता दें कि इस आपदा में दो से ज्यादा लोग मारे गए थे. कई के तो शव भी नहीं मिले थे, जिन्हें बाद में सरकार ने शासनादेश जारी कर मृत घोषित कर दिया था.

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