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Kumbh Corona Test Scam: आरोपितों को HC से झटका, आगे नहीं बढ़ी गिरफ्तारी पर रोक - अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य

नैनीताल हाईकोर्ट ने हरिद्वार कुंभ कोरोना टेस्ट फर्जीवाड़ा मामले में आरोपित मैक्स कॉरपोरेट सर्विसेज के सर्विस पार्टनर शरद पंत और मलिका पंत की गिरफ्तारी पर जो रोक लगा रखी थी, उस आदेश को आगे नहीं बढ़ाया है. हालांकि इस मामले पर 20 अगस्त तक सरकार से जवाब मांगा है.

Nainital High Court
नैनीताल हाईकोर्ट
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Published : Aug 10, 2021, 3:20 PM IST

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट में मंगलवार 10 अगस्त को हरिद्वार कुंभ कोरोना टेस्ट फर्जीवाड़ा मामले में आरोपित मैक्स कॉरपोरेट सर्विसेज के सर्विस पार्टनर शरद पंत और मलिका पंत की तरफ से दायर याचिकाओं पर सुनवाई हुई. याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में कहा कि पुलिस उनको गिरफ्तार करने जा रही है, जबकि उन्होंने आईओ (जांच अधिकारी) को जांच में सम्पूर्ण सहयोग किया.

याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया कि वे अभीतक आईओ के सामने पांच बार पेश हो चुके हैं. अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य 2014 का निर्णय उनके पक्ष में है. उसके बाद भी पुलिस उनको गिरफ्तार करने जा रही है. इसलिए कोर्ट के पूर्व के आदेश को बरकरार रखा जाये. कोर्ट ने मामले को सुनने के बाद उनकी गिरफ्तारी से रोक सम्बन्धित आदेश को आगे न बढ़ाकर सरकार से इसमें 20 अगस्त तक जवाब पेश करने को कहा है.

पढ़ें- Kumbh Corona Test Scam: आरोपियों की संपत्ति हो सकती है कुर्क, SIT का कोर्ट में प्रार्थना-पत्र

मामले में अगली सुनवाई की तिथि 20 अगस्त को नियत की गई है. मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की एकलपीठ में हुई. बता दें कि पिछली सुनवाई में सरकार की तरफ से एक प्रार्थना पत्र देकर कोर्ट से अनुरोध किया था कि पूर्व के आदेश को रिकॉल किया जाये या वापस लिया जाये. क्योंकि जांच में आरोपियों के खिलाफ गंभीर साक्ष्य मिले हैं. पुलिस ने इन गंभीर साक्ष्यों के आधार पर इनके खिलाफ आईपीसी की धारा 467 और लगा दी है, जिसमें सजा सात साल से अधिक है. अब अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य 2014 का निर्णय लागू नहीं होता है.

हालांकि कोर्ट ने सरकार के प्रार्थना पत्र को सुनने के बाद निरस्त कर दिया था. कोर्ट ने जांच अधिकारी को निर्देश दिए थे कि अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य 2014 में पारित दिशा-निर्देशों का पालन करें. मामले के अनुसार शरद पंत व मलिका पंत ने याचिका दायर कर कहा था कि वे मैक्स कॉर्पोरेट सर्विसेस में एक सर्विस प्रोवाइडर है. परीक्षण और डेटा प्रविष्टि के दौरान मैक्स कॉर्पोरेट का कोई कर्मचारी मौजूद नहीं था.

इसके अलावा परीक्षण और डेटा प्रविष्टि का सारा काम स्थानीय स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की प्रत्यक्ष निगरानी में किया गया था. इन अधिकारियों की मौजूदगी में परीक्षण स्टालों ने जो कुछ भी किया था, उसे अपनी मंजूरी दे दी. अगर कोई गलत कार्य कर रहा था तो कुंभ मेले की पूरी अवधि के दौरान अधिकारी चुप क्यों रहे?

पढ़ें- Kumbh Fake Covid Test: राज्य सरकार को झटका, प्रार्थना पत्र निरस्त

कोर्ट ने पूर्व में 2014 के अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के आधार पर इनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाई थी. निर्णय में यह प्रावधान है कि सात साल से कम सजा वाले केसों में गिरफ्तार नहीं करने व जांच में सहयोग करने के दिशा निर्देश दिए गए थे. इन्हीं दिशा निर्देशों के आधार पर कोर्ट ने इनकी गिरफ्तारी पर रोक व जांच में सहयोग करने को कहा था.

एसआईटी ने शिकंजा कसना शुरू किया: बता दें कि इस मामले की जांच कर रही एसआईटी (स्पेशल टास्क फोर्स) ने सोमवार को आरोपी शरद पंत व मलिका पंत की संपत्ति कुर्की करने के लिए कोर्ट में प्रार्थना पत्र दाखिल किया था. उसके साथ ही गैर जमानती वारंट के लिए भी कोर्ट में अर्जी दाखिल की जा रही है. इसके बाद कोर्ट से अनुमति मिलने के बाद एसआइटी अगली कार्रवाई करेगी.

क्या है मामला: हरिद्वार कुंभ मेले में कोरोना जांच के लिए सरकार के 10 कंपनियों को अधिकृत किया था. इसमें से एक मैक्स कॉरपोरेट सर्विसेज थी. मैक्स कॉरपोरेट सर्विसेज की दो लैब (दिल्ली की लालचंदानी और हिसार की नलवा) ने हरिद्वार कुंभ मेले में कोरोना जांच की थी. इन दोनों लैब की करीब एक लाख जांच संदेह के घेरे में हैं.

पढ़ें- कोरोना टेस्ट फर्जीवाड़े में एसआईटी ने बढ़ाई धारा, जानें क्या है धारा 467

इस मामले में हरिद्वार के तत्कालीन जिलाधिकारी सी. रविशंकर के आदेश पर हरिद्वार सीएमओ ने मैक्स कॉरपोरेट सर्विसेज, दिल्ली की लालचंदानी और हिसार की नलवा लैब के खिलाफ शहर कोतवाली में मुकदमा दर्ज कराया था. हरिद्वार एसएसपी ने इस मामले की जांच के लिए एक एसआईटी का गठन भी किया था, जो इस मामले की जांच कर रही है.

ऐसे आया था सच सामने: दरअसल, पंजाब के एक व्यक्ति के पास फोन गया था कि उनकी कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आई है. लेकिन हैरानी की बात ये थी कि जिस व्यक्ति के पास हरिद्वार से कोरोना निगेटिव रिपोर्ट का फोन गया था, वो हरिद्वार ही नहीं आया था. ऐसे में उसने हरिद्वार में मामले की शिकायत की. लेकिन वहीं के प्रशासन ने इसे गंभीरता से नहीं लिया.

इसके बाद उस व्यक्ति ने आईसीएमआर को पत्र लिखा. आईसीएमआर ने उत्तराखंड के स्वास्थ्य सचिव को मामले की जांच कराने के लिए कहा. स्वास्थ्य सचिव ने जांच कराई तो सामने आया कि एक टेस्ट के लिए सैकड़ों नंबर का इस्तेमाल किया गया है. वहीं कई टेस्ट में एक ही आधार नंबर लिखा गया है. इसके अलावा एक ही घर से सैकड़ों सैंपल लेने की बात भी सामने आई, जो नामुमकिन लगता है. इसके बाद इस मामले में तूल पकड़ा.

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट में मंगलवार 10 अगस्त को हरिद्वार कुंभ कोरोना टेस्ट फर्जीवाड़ा मामले में आरोपित मैक्स कॉरपोरेट सर्विसेज के सर्विस पार्टनर शरद पंत और मलिका पंत की तरफ से दायर याचिकाओं पर सुनवाई हुई. याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में कहा कि पुलिस उनको गिरफ्तार करने जा रही है, जबकि उन्होंने आईओ (जांच अधिकारी) को जांच में सम्पूर्ण सहयोग किया.

याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया कि वे अभीतक आईओ के सामने पांच बार पेश हो चुके हैं. अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य 2014 का निर्णय उनके पक्ष में है. उसके बाद भी पुलिस उनको गिरफ्तार करने जा रही है. इसलिए कोर्ट के पूर्व के आदेश को बरकरार रखा जाये. कोर्ट ने मामले को सुनने के बाद उनकी गिरफ्तारी से रोक सम्बन्धित आदेश को आगे न बढ़ाकर सरकार से इसमें 20 अगस्त तक जवाब पेश करने को कहा है.

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मामले में अगली सुनवाई की तिथि 20 अगस्त को नियत की गई है. मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की एकलपीठ में हुई. बता दें कि पिछली सुनवाई में सरकार की तरफ से एक प्रार्थना पत्र देकर कोर्ट से अनुरोध किया था कि पूर्व के आदेश को रिकॉल किया जाये या वापस लिया जाये. क्योंकि जांच में आरोपियों के खिलाफ गंभीर साक्ष्य मिले हैं. पुलिस ने इन गंभीर साक्ष्यों के आधार पर इनके खिलाफ आईपीसी की धारा 467 और लगा दी है, जिसमें सजा सात साल से अधिक है. अब अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य 2014 का निर्णय लागू नहीं होता है.

हालांकि कोर्ट ने सरकार के प्रार्थना पत्र को सुनने के बाद निरस्त कर दिया था. कोर्ट ने जांच अधिकारी को निर्देश दिए थे कि अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य 2014 में पारित दिशा-निर्देशों का पालन करें. मामले के अनुसार शरद पंत व मलिका पंत ने याचिका दायर कर कहा था कि वे मैक्स कॉर्पोरेट सर्विसेस में एक सर्विस प्रोवाइडर है. परीक्षण और डेटा प्रविष्टि के दौरान मैक्स कॉर्पोरेट का कोई कर्मचारी मौजूद नहीं था.

इसके अलावा परीक्षण और डेटा प्रविष्टि का सारा काम स्थानीय स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की प्रत्यक्ष निगरानी में किया गया था. इन अधिकारियों की मौजूदगी में परीक्षण स्टालों ने जो कुछ भी किया था, उसे अपनी मंजूरी दे दी. अगर कोई गलत कार्य कर रहा था तो कुंभ मेले की पूरी अवधि के दौरान अधिकारी चुप क्यों रहे?

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कोर्ट ने पूर्व में 2014 के अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के आधार पर इनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाई थी. निर्णय में यह प्रावधान है कि सात साल से कम सजा वाले केसों में गिरफ्तार नहीं करने व जांच में सहयोग करने के दिशा निर्देश दिए गए थे. इन्हीं दिशा निर्देशों के आधार पर कोर्ट ने इनकी गिरफ्तारी पर रोक व जांच में सहयोग करने को कहा था.

एसआईटी ने शिकंजा कसना शुरू किया: बता दें कि इस मामले की जांच कर रही एसआईटी (स्पेशल टास्क फोर्स) ने सोमवार को आरोपी शरद पंत व मलिका पंत की संपत्ति कुर्की करने के लिए कोर्ट में प्रार्थना पत्र दाखिल किया था. उसके साथ ही गैर जमानती वारंट के लिए भी कोर्ट में अर्जी दाखिल की जा रही है. इसके बाद कोर्ट से अनुमति मिलने के बाद एसआइटी अगली कार्रवाई करेगी.

क्या है मामला: हरिद्वार कुंभ मेले में कोरोना जांच के लिए सरकार के 10 कंपनियों को अधिकृत किया था. इसमें से एक मैक्स कॉरपोरेट सर्विसेज थी. मैक्स कॉरपोरेट सर्विसेज की दो लैब (दिल्ली की लालचंदानी और हिसार की नलवा) ने हरिद्वार कुंभ मेले में कोरोना जांच की थी. इन दोनों लैब की करीब एक लाख जांच संदेह के घेरे में हैं.

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इस मामले में हरिद्वार के तत्कालीन जिलाधिकारी सी. रविशंकर के आदेश पर हरिद्वार सीएमओ ने मैक्स कॉरपोरेट सर्विसेज, दिल्ली की लालचंदानी और हिसार की नलवा लैब के खिलाफ शहर कोतवाली में मुकदमा दर्ज कराया था. हरिद्वार एसएसपी ने इस मामले की जांच के लिए एक एसआईटी का गठन भी किया था, जो इस मामले की जांच कर रही है.

ऐसे आया था सच सामने: दरअसल, पंजाब के एक व्यक्ति के पास फोन गया था कि उनकी कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आई है. लेकिन हैरानी की बात ये थी कि जिस व्यक्ति के पास हरिद्वार से कोरोना निगेटिव रिपोर्ट का फोन गया था, वो हरिद्वार ही नहीं आया था. ऐसे में उसने हरिद्वार में मामले की शिकायत की. लेकिन वहीं के प्रशासन ने इसे गंभीरता से नहीं लिया.

इसके बाद उस व्यक्ति ने आईसीएमआर को पत्र लिखा. आईसीएमआर ने उत्तराखंड के स्वास्थ्य सचिव को मामले की जांच कराने के लिए कहा. स्वास्थ्य सचिव ने जांच कराई तो सामने आया कि एक टेस्ट के लिए सैकड़ों नंबर का इस्तेमाल किया गया है. वहीं कई टेस्ट में एक ही आधार नंबर लिखा गया है. इसके अलावा एक ही घर से सैकड़ों सैंपल लेने की बात भी सामने आई, जो नामुमकिन लगता है. इसके बाद इस मामले में तूल पकड़ा.

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