हल्द्वानी: लीगल खनन के नाम पर लगातार पहाड़ों का दोहन किया जा रहा है. जिसका नतीजा है कि आए दिन पहाड़ों पर आपदा और लैंडस्लाइड उत्तराखंड के लिए मुसीबत बनता जा रहा है. लेकिन सरकारी नुमाइंदे हैं कि खनन के नाम पर पहाड़ की धरोहर नदी नालों और पहाड़ों को खोद रहे हैं. उत्तराखंड शासन हल्द्वानी के नंधौर वन्य जीव अभ्यारण के इको सेंसिटिव जोन आरक्षित वन क्षेत्र में आपदा प्रबंधन अधिनियम के अंतर्गत नदी से आरबीएम (उप खनिज) निकालने की अनुमति एक निजी कंपनी को दे दी है.
उत्तराखंड शासन ने नैनीताल के जिलाधिकारी धीराज सिंह गर्ब्याल को दिए आदेश में कहा गया है कि उत्तराखंड रिवर ड्रेजिंग नीति 2021 (Uttarakhand River Dredging Policy 2021) के तहत नंधौर नदी से ड्रेजिंग कार्य के अनुमति दी गई है. कहा गया है कि चैनेलाइजेशन नदी के बहाव को सुव्यवस्थित करने, आसपास के गांव क्षेत्र के बहाव और जनहानि के बचाव आदि के दृष्टिगत नंधौर नदी के ऊपरी क्षेत्र में जमे आरबीएम की निकासी एपीएस इंफ्रा इंजिनियर्स प्राइवेट लिमिटेड कंपनी (APS Infra Engineering Private Limited) के पक्ष में दी गई है. कंपनी द्वारा राष्ट्रीय राजमार्ग 87 का निर्माण कार्य किया जाएगा.
जितनी जरूरत हो, उतनी आरबीएम निकालो: शासन की ओर से जारी आदेश में यह भी कहा गया है कि 6 महीने के भीतर कंपनी को जितनी आवश्यकता हो उतनी मात्रा में आरबीएम (उप खनिज) निकाल सकती है. उत्तराखंड शासन ने नदी से खनन के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय, वाइल्ड लाइफ, केंद्रीय वन मंत्रालय और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एक्ट की अनुमति लिए निजी कंपनी को आरक्षित वन क्षेत्र के नदी से खनन करने की अनुमति दे दी है, जो सरकार के कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो रहे हैं.
खनन कार्य के लिए उत्तराखंड शासन ने 7 फरवरी को शासनादेश जारी किया लेकिन आचार संहिता के चलते खनन की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाई. ऐसे में 24 मार्च को जिलाधिकारी ने डीएफओ को खनन कार्य प्रारंभ कराने की अनुमति पत्र भेजा है. उधर, ऐसे में इको सेंसिटिव जोन से आरबीएम निकालने की अनुमति के आदेश के बाद क्षेत्र में खनन कार्य का विरोध शुरू हो गया है.
जानकारों की मानें तो किसी भी इको सेंसिटिव जोन या आरक्षित वन क्षेत्र में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय, वाइल्ड लाइफ और भारत सरकार की अनुमति के बगैर कोई भी खनन कार्य नहीं हो सकता है. ऐसे में बिना केंद्र सरकार की अनुमति के बगैर आरक्षित वन क्षेत्र में नदी से उप खनिज निकासी कहीं न कहीं सरकार की कार्यप्रणाली के मंशा पर सवाल खड़े कर रही है. जानकारों का कहना है कि रिवर ड्रेजिंग नीति के तहत नदी की सफाई कर उसके मलबे को नदी के दोनों ओर चैनेलाइज कर छोड़ दिया जाता है, जबकि उक्त नदी से आरबीएम निकासी के लिए केंद्र सरकार की अनुमति जरूरी होती है.
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पूरे मामले में डीएफओ बाबू लाल का कहना है कि जिलाधिकारी नैनीताल द्वारा खनन कार्य अनुमति और सहयोग करने के लिए आदेश प्राप्त हुआ है लेकिन खनन कार्य से किसी तरह का कोई वन और पर्यावरण को नुकसान ना पहुंचे इसको भी ध्यान में रखा जाएगा. इसको लेकर उन्होंने जिलाधिकारी नैनीताल को पत्र लिखा है. यहां तक कि इस इको सेंसिटिव जोन और आरक्षित वन क्षेत्र खनन कार्य को लेकर केंद्र सरकार की गाइडलाइन है. केंद्र सरकार के गाइडलाइन के तहत ही खनन हो सकता है. इस तरह के मामला पूर्व में भी एक राज्य में आया था, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने खनन पर रोक लगा दी थी.