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गूगल ने अपने की-बोर्ड में कुमाऊंनी और गढ़वाली भाषा को किया शामिल

गूगल ने अपने की-बोर्ड में कुमाऊंनी और गढ़वाली भाषा को शामिल किया है. इससे अब फोन या सोशल मीडिया में कुमाउंनी और गढ़वाली भाषा टाइपिंग और आसान हो जाएगी.

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गूगल ने की-बोर्ड में शामिल की कुमाऊंनी और गढ़वाली भाषा
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Published : Dec 3, 2020, 9:48 PM IST

हल्द्वानी: गूगल ने अपने की-बोर्ड में अन्य भाषाओं के साथ-साथ अब कुमाऊंनी और गढ़वाली भाषा को भी जगह दी है. ऐसे में कुमाऊंनी और गढ़वाली भाषा के प्रयोग करने वाले साहित्यकार और लेखकों के अलावा सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने वाले लोगों को कुमाऊंनी और गढ़वाली में टाइपिंग में आसानी होगी. साथ ही इससे गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा को भी बढ़ावा मिलेगा. यही नहीं गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा के की-बोर्ड में शामिल हो जाने से यहां के लोग भाषाओं को प्रसारित करने में भी मदद मिलेगी. इससे नई पीढ़ी का भी अपनी भाषा-बोली के प्रति लगाव बढ़ेगा.

उत्तराखंड में मुख्य रूप से गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा बोली जाती है, मगर दोनों भाषा लिपि भाषा नहीं हैं.कुमाऊंनी और गढ़वाली भाषा में कई साहित्य और पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन होता आया है. बहुत से साहित्यकार हैं जो कुमाऊंनी और गढ़वाली में अपने लेख भी लिखते हैं. ऐसे में इन को गूगग की-बोर्ड में इन भाषाओं के शामिल होने का सबसे ज्यादा फायदा मिलेगा.

पढ़ें- CM ने रुड़की में कोविड सेंटर का किया निरीक्षण, बाइपास निर्माण कार्य का भी लिया जायजा

ऐसे में अगर अब आप अपने मोबाइल से कुमाऊंनी और गढ़वाली भाषा बोली में टाइप करेंगे तो शुद्ध वाक्य के साथ कुमाऊंनी और गढ़वाली भाषा की टाइपिंग हो सकेगी. बताया जा रहा है कि गूगल ने कुमाऊंनी और गढ़वाली बोले जाने वाली भाषा के शब्दों को गूगल की-बोर्ड में फिट कर दिया है.

पढ़ें- हरिद्वार: CM त्रिवेंद्र ने की मां गंगा की पूजा अर्चना, लिया आशीर्वाद

एमबीपीजी कॉलेज के हिंदी के प्रोफेसर संतोष मिश्रा के मुताबिक, कुमाऊंनी और गढ़वाली भाषा को गूगल द्वारा मोबाइल की-बोर्ड में शब्द फिट हो जाने से इसका सबसे ज्यादा फायदा साहित्य प्रेमियों और लेखकों के अलावा कवियों को भी मिलेगा. इससे युवा पीढ़ी अपनी भाषा को लेकर ज्यादा जागरूक हो सकेगी.

हल्द्वानी: गूगल ने अपने की-बोर्ड में अन्य भाषाओं के साथ-साथ अब कुमाऊंनी और गढ़वाली भाषा को भी जगह दी है. ऐसे में कुमाऊंनी और गढ़वाली भाषा के प्रयोग करने वाले साहित्यकार और लेखकों के अलावा सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने वाले लोगों को कुमाऊंनी और गढ़वाली में टाइपिंग में आसानी होगी. साथ ही इससे गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा को भी बढ़ावा मिलेगा. यही नहीं गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा के की-बोर्ड में शामिल हो जाने से यहां के लोग भाषाओं को प्रसारित करने में भी मदद मिलेगी. इससे नई पीढ़ी का भी अपनी भाषा-बोली के प्रति लगाव बढ़ेगा.

उत्तराखंड में मुख्य रूप से गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा बोली जाती है, मगर दोनों भाषा लिपि भाषा नहीं हैं.कुमाऊंनी और गढ़वाली भाषा में कई साहित्य और पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन होता आया है. बहुत से साहित्यकार हैं जो कुमाऊंनी और गढ़वाली में अपने लेख भी लिखते हैं. ऐसे में इन को गूगग की-बोर्ड में इन भाषाओं के शामिल होने का सबसे ज्यादा फायदा मिलेगा.

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ऐसे में अगर अब आप अपने मोबाइल से कुमाऊंनी और गढ़वाली भाषा बोली में टाइप करेंगे तो शुद्ध वाक्य के साथ कुमाऊंनी और गढ़वाली भाषा की टाइपिंग हो सकेगी. बताया जा रहा है कि गूगल ने कुमाऊंनी और गढ़वाली बोले जाने वाली भाषा के शब्दों को गूगल की-बोर्ड में फिट कर दिया है.

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एमबीपीजी कॉलेज के हिंदी के प्रोफेसर संतोष मिश्रा के मुताबिक, कुमाऊंनी और गढ़वाली भाषा को गूगल द्वारा मोबाइल की-बोर्ड में शब्द फिट हो जाने से इसका सबसे ज्यादा फायदा साहित्य प्रेमियों और लेखकों के अलावा कवियों को भी मिलेगा. इससे युवा पीढ़ी अपनी भाषा को लेकर ज्यादा जागरूक हो सकेगी.

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