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Bhai Dooj Puja 2021: कुमाऊं में दूतिया त्यार के नाम से प्रचलित है भाई दूज, जानें शुभ मुहूर्त - Dutiya in Kumaon

देशभर में भाई-बहन के प्यार का प्रतीक भाई दूज का पर्व आज है. भाई दूज के मौके पर बहनें भाइयों का तिलक कर उनकी लंबी उम्र की कामना करती है. तो वहीं भाई बहनों को रक्षा के वचन के साथ गिफ्ट देते है. कुमाऊं में बहन च्युडे़ और दूभ से भाइयों की पूजा करती है.

bhai dooj
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Published : Nov 6, 2021, 7:23 AM IST

Updated : Nov 6, 2021, 8:13 AM IST

हल्द्वानी: दीपावली के दो दिन बाद मनाया जाने वाला पर्व आमतौर पर भाई दूज के नाम से जाना जाता है. लेकिन उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में इस पर्व को यम द्वितीया यानी (दुतिया त्यार) के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि यम देवता यमराज इस दिन अपने बहन गंगा के घर गए थे जहां अपने बहन के घर उन्होंने भोजन किया था. कहा जाता है कि यम देवता यमराज और गंगा भाई-बहन है और सूर्य के पुत्र हैं. मान्यता है कि इस दिन जो भी व्यक्ति मां गंगा में श्रद्धा से स्नान करता है, उसको किसी भी तरह का डर भय नहीं रहता है.

कुमाऊं में दूतिया त्यार के नाम से प्रचलित है भाई दूज.

मान्यता है कि यम द्वितीया के दिन सुबह घर में पूजा इत्यादि के बाद घर की सबसे बड़ी बुजुर्ग महिला च्युड़ा और दूभ को सबसे पहले देवताओं को अर्पित करती है. जिसके बाद परिवार के सभी सदस्यों के सर पर च्युड़ा और दूभ चढ़ाया जाता है जो परिवार के सुख शांति के प्रतीक है. च्युड़ा चढ़ाने के साथ च्युड़ा खाने का भी विशेष महत्व है.

ज्योतिषाचार्य डॉ नवीन चंद्र जोशी ने बताया कि भाई दूज के त्योहार को यम द्वितीया भी कहते हैं. इस दिन बहन अपने भाई को तिलक करती है और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं और इस दिन बहन के घर भाई को जाकर भोजन करना शुभ माना जाता है. ऐसे में भाई की अकाल मृत्यु नहीं होती है. कार्तिक शुक्ल द्वितीया को मनाए जाने वाली इस पवित्र त्योहार को भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक पर्व माना जाता है. भाई दूज के पूजन के लिए विशेष महत्व दोपहर 1 से लेकर 3:20 बजे तक रहेगा.

पढ़ें: केदारनाथ के गर्भगृह से LIVE प्रसारण पर भड़की कांग्रेस, गोदियाल बोले- PM ने तोड़ी मर्यादा

पौराणिक मान्यता के अनुसार भाई दूज के दिन भगवान श्री कृष्ण नरकासुर राक्षस का वध कर द्वारिका लौटे थे. उस दिन भगवान कृष्ण की बहन सुभद्रा ने फूल फल मिठाई और अनेकों दीये जलाकर भगवान श्री कृष्ण का स्वागत किया था. सुभद्रा ने भगवान श्री कृष्ण के मस्तक पर तिलक लगाकर उनकी विधवाओं की कामना की थी. भाई दूज के दिन जो बहने अपने भाइयों को तिलक करती है उन्हें तिलक से पहले भोजन नहीं करना चाहिए. तिलक लगाने के बाद भाई के साथ भोजन ग्रहण करना उत्तम माना जाता है.

इस दिन ओखल पूजन का भी विशेष महत्व: कुमाऊं मंडल में भाई दूज के दिन ओखल पूजन का भी विशेष महत्व है. ओखल में च्युड़ा कूट, भुनी भांग और सोयाबीन मिलाकर भी खाया जाता है. जो सर्दियों में इसका सेवन गर्माहट देता है. च्युड़ा बनाने से पहले वह खोजने का भी महत्व है. ओखल की पूजा का मतलब है कि उसमें कुटा हुआ अनाज पूरे परिवार को साल भर खाने को मिलेगा और परिवार में किसी तरह की अनाज की कमी नहीं होगी.

हल्द्वानी: दीपावली के दो दिन बाद मनाया जाने वाला पर्व आमतौर पर भाई दूज के नाम से जाना जाता है. लेकिन उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में इस पर्व को यम द्वितीया यानी (दुतिया त्यार) के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि यम देवता यमराज इस दिन अपने बहन गंगा के घर गए थे जहां अपने बहन के घर उन्होंने भोजन किया था. कहा जाता है कि यम देवता यमराज और गंगा भाई-बहन है और सूर्य के पुत्र हैं. मान्यता है कि इस दिन जो भी व्यक्ति मां गंगा में श्रद्धा से स्नान करता है, उसको किसी भी तरह का डर भय नहीं रहता है.

कुमाऊं में दूतिया त्यार के नाम से प्रचलित है भाई दूज.

मान्यता है कि यम द्वितीया के दिन सुबह घर में पूजा इत्यादि के बाद घर की सबसे बड़ी बुजुर्ग महिला च्युड़ा और दूभ को सबसे पहले देवताओं को अर्पित करती है. जिसके बाद परिवार के सभी सदस्यों के सर पर च्युड़ा और दूभ चढ़ाया जाता है जो परिवार के सुख शांति के प्रतीक है. च्युड़ा चढ़ाने के साथ च्युड़ा खाने का भी विशेष महत्व है.

ज्योतिषाचार्य डॉ नवीन चंद्र जोशी ने बताया कि भाई दूज के त्योहार को यम द्वितीया भी कहते हैं. इस दिन बहन अपने भाई को तिलक करती है और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं और इस दिन बहन के घर भाई को जाकर भोजन करना शुभ माना जाता है. ऐसे में भाई की अकाल मृत्यु नहीं होती है. कार्तिक शुक्ल द्वितीया को मनाए जाने वाली इस पवित्र त्योहार को भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक पर्व माना जाता है. भाई दूज के पूजन के लिए विशेष महत्व दोपहर 1 से लेकर 3:20 बजे तक रहेगा.

पढ़ें: केदारनाथ के गर्भगृह से LIVE प्रसारण पर भड़की कांग्रेस, गोदियाल बोले- PM ने तोड़ी मर्यादा

पौराणिक मान्यता के अनुसार भाई दूज के दिन भगवान श्री कृष्ण नरकासुर राक्षस का वध कर द्वारिका लौटे थे. उस दिन भगवान कृष्ण की बहन सुभद्रा ने फूल फल मिठाई और अनेकों दीये जलाकर भगवान श्री कृष्ण का स्वागत किया था. सुभद्रा ने भगवान श्री कृष्ण के मस्तक पर तिलक लगाकर उनकी विधवाओं की कामना की थी. भाई दूज के दिन जो बहने अपने भाइयों को तिलक करती है उन्हें तिलक से पहले भोजन नहीं करना चाहिए. तिलक लगाने के बाद भाई के साथ भोजन ग्रहण करना उत्तम माना जाता है.

इस दिन ओखल पूजन का भी विशेष महत्व: कुमाऊं मंडल में भाई दूज के दिन ओखल पूजन का भी विशेष महत्व है. ओखल में च्युड़ा कूट, भुनी भांग और सोयाबीन मिलाकर भी खाया जाता है. जो सर्दियों में इसका सेवन गर्माहट देता है. च्युड़ा बनाने से पहले वह खोजने का भी महत्व है. ओखल की पूजा का मतलब है कि उसमें कुटा हुआ अनाज पूरे परिवार को साल भर खाने को मिलेगा और परिवार में किसी तरह की अनाज की कमी नहीं होगी.

Last Updated : Nov 6, 2021, 8:13 AM IST
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