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बीजेपी के पिछले चुनावी घोषणा-पत्र में लोकायुक्त की बातें हवा, 3336 शिकायतें अबतक लंबित

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Published : Oct 13, 2021, 2:06 PM IST

उत्तराखंड में भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए वर्ष 2011 में लोकायुक्त अधिनियम पास किया गया था, लेकिन प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियां लगातार सत्ता पर राज कर रही हैं. 2017 में भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में जल्द लोकायुक्त लाने की भी बात कहीं थी, लेकिन सत्ता में आने के बाद भाजपा सरकार ने फिर से लोकायुक्त बिल को संशोधन कर विपक्ष के बिना सहमति के बिल को प्रवर समिति की आख्या सहित सदन के पटल पर रख दिया. जो आज भी विचाराधीन है.

उत्तराखंड लोकायुक्त
उत्तराखंड लोकायुक्त

हल्द्वानी: भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए उत्तराखंड में लोकायुक्त को लेकर वर्ष 2011 में लोकायुक्त अधिनियम पास किया गया था, अधिनियम को राष्ट्रपति से मंजूरी भी मिल गई थी. लेकिन प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियां लगातार सत्ता पर राज कर रही हैं. 180 दिन के भीतर लोकायुक्त गठन करने की बात करने वाली पार्टियां लोकायुक्त की गठन तक नहीं कर पाई. 2017 में भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में जल्द लोकायुक्त लाने की भी बात कहीं थी, लेकिन सत्ता में आने के बाद भाजपा सरकार ने फिर से लोकायुक्त बिल को संशोधन कर विपक्ष के बिना सहमति के बिल को प्रवर समिति की आख्या सहित सदन के पटल पर रख दिया. जो आज भी विचाराधीन है.

लोकायुक्त कार्यालय देहरादून (Lokayukta Uttarakhand) से आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक, वर्ष 2010 से जुलाई 2021 तक लोकायुक्त के पास 3336 शिकायती पत्र प्राप्त हुए हैं. जिसमें वर्ष 2010 में 403, 2011 में 721, 2012 में 769, 2013 में 503, 2014 में 422, 2015 में 181, 2016 में 97, 2017 में 86, 2018 में 54, 2019 में 67,2020 में 24 और 2021 जुलाई तक 11 शिकायत के मामले सामने आए हैं. ऐसे में अबतक कुल 3336 शिकायतें लंबित है.

बीजेपी के चुनावी घोषणा-पत्र में लोकायु्क्त की बातें हवा.

आरटीआई कार्यकर्ता रविशंकर जोशी ने बताया कि जिस तरह से लोकायुक्त में शिकायतें आनी शुरू हुई थी. इससे साफ जाहिर हो रहा है कि प्रदेश में कितने भ्रष्टाचार के मामले उजागर हो सकते हैं. लेकिन लोकायुक्त नहीं मिलने के चलते लोगों ने शिकायत दर्ज कराना भी छोड़ दिया. जिसका नतीजा है कि इस साल मात्र 11 लोग ही लोकायुक्त में शिकायत दर्ज करा पाए हैं.

उन्होंने कहा कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियों ने बारी-बारी से सत्ता में राज किया. लेकिन लोकायुक्त की बात करने वाली पार्टियों की सरकार जब बनती है तो लोकायुक्त को भूल जाते हैं. वर्ष 2017 के बीजेपी के घोषणापत्र में लोकायुक्त नियुक्ति की बात कही गई थी लेकिन तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार में लोकायुक्त विधेयक 2017 को प्रवर समिति की आख्या सहित सदन के पटल पर रखा गया जो आज भी विचाराधीन है.

पढ़ें: CM धामी बोले- खटीमा के एक सिपाही का बेटा, अब सम्पूर्ण उत्तराखण्ड का बेटा है

आरटीआई कार्यकर्ता रविशंकर जोशी का कहना है कि लोकायुक्त आने से भ्रष्टाचार का उजागर होगा ऐसे में दोनों पार्टियां भ्रष्टाचार में डूबी हुई है और नहीं चाहती है कि उत्तराखंड में लोकायुक्त लागू हो. इसको लेकर वह हाईकोर्ट में भी याचिका दायर कर चुके हैं जहां हाईकोर्ट ने सरकार से 4 हफ्ते के अंदर जवाब भी मांगा है.

हल्द्वानी: भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए उत्तराखंड में लोकायुक्त को लेकर वर्ष 2011 में लोकायुक्त अधिनियम पास किया गया था, अधिनियम को राष्ट्रपति से मंजूरी भी मिल गई थी. लेकिन प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियां लगातार सत्ता पर राज कर रही हैं. 180 दिन के भीतर लोकायुक्त गठन करने की बात करने वाली पार्टियां लोकायुक्त की गठन तक नहीं कर पाई. 2017 में भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में जल्द लोकायुक्त लाने की भी बात कहीं थी, लेकिन सत्ता में आने के बाद भाजपा सरकार ने फिर से लोकायुक्त बिल को संशोधन कर विपक्ष के बिना सहमति के बिल को प्रवर समिति की आख्या सहित सदन के पटल पर रख दिया. जो आज भी विचाराधीन है.

लोकायुक्त कार्यालय देहरादून (Lokayukta Uttarakhand) से आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक, वर्ष 2010 से जुलाई 2021 तक लोकायुक्त के पास 3336 शिकायती पत्र प्राप्त हुए हैं. जिसमें वर्ष 2010 में 403, 2011 में 721, 2012 में 769, 2013 में 503, 2014 में 422, 2015 में 181, 2016 में 97, 2017 में 86, 2018 में 54, 2019 में 67,2020 में 24 और 2021 जुलाई तक 11 शिकायत के मामले सामने आए हैं. ऐसे में अबतक कुल 3336 शिकायतें लंबित है.

बीजेपी के चुनावी घोषणा-पत्र में लोकायु्क्त की बातें हवा.

आरटीआई कार्यकर्ता रविशंकर जोशी ने बताया कि जिस तरह से लोकायुक्त में शिकायतें आनी शुरू हुई थी. इससे साफ जाहिर हो रहा है कि प्रदेश में कितने भ्रष्टाचार के मामले उजागर हो सकते हैं. लेकिन लोकायुक्त नहीं मिलने के चलते लोगों ने शिकायत दर्ज कराना भी छोड़ दिया. जिसका नतीजा है कि इस साल मात्र 11 लोग ही लोकायुक्त में शिकायत दर्ज करा पाए हैं.

उन्होंने कहा कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियों ने बारी-बारी से सत्ता में राज किया. लेकिन लोकायुक्त की बात करने वाली पार्टियों की सरकार जब बनती है तो लोकायुक्त को भूल जाते हैं. वर्ष 2017 के बीजेपी के घोषणापत्र में लोकायुक्त नियुक्ति की बात कही गई थी लेकिन तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार में लोकायुक्त विधेयक 2017 को प्रवर समिति की आख्या सहित सदन के पटल पर रखा गया जो आज भी विचाराधीन है.

पढ़ें: CM धामी बोले- खटीमा के एक सिपाही का बेटा, अब सम्पूर्ण उत्तराखण्ड का बेटा है

आरटीआई कार्यकर्ता रविशंकर जोशी का कहना है कि लोकायुक्त आने से भ्रष्टाचार का उजागर होगा ऐसे में दोनों पार्टियां भ्रष्टाचार में डूबी हुई है और नहीं चाहती है कि उत्तराखंड में लोकायुक्त लागू हो. इसको लेकर वह हाईकोर्ट में भी याचिका दायर कर चुके हैं जहां हाईकोर्ट ने सरकार से 4 हफ्ते के अंदर जवाब भी मांगा है.

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