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भगवान शिव की जांघ से उत्पन्न हुए थे जंगम, जानिए क्यों साधु-संतों से ही मांगते हैं भिक्षा

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Published : Apr 15, 2021, 1:37 PM IST

Updated : Apr 16, 2021, 10:26 AM IST

हरिद्वार महाकुंभ में जंगम भी पहुंच रहे हैं. ये अलग ही अंदाज में नजर आ रहे हैं. माना जाता है कि जंगम भगवान शिव की जांघ से उत्पन्न हुए थे. जानिए क्यों साधु-संतों से ही जंगम मांगते हैं भिक्षा.

jangam
जंगम

हरिद्वारः कुंभ के आगाज के साथ ही धर्मनगरी हरिद्वार में साधु-संतों के कई रंग देखने को मिल रहे हैं. ये भक्ति रस में सराबोर दिखाई दे रहे हैं. हर तरफ हर-हर महादेव के जयघोष से धर्मनगरी गुंजयमान हो रही है. इसी बीच भगवान शिव के भक्त कहे जाने वाले जंगम इन दिनों टोलियों में भगवान शिव की सूक्ति करते दिखाई दे रहे हैं. ये हमेशा भगवान भोलेनाथ की भक्ति के रंग में रंगे दिखाई देते हैं. इन्हें देख देश-विदेश के श्रद्धालुओं की जिज्ञासा प्रगाढ़ हो रही है.

भगवान शिव की जांघ से उत्पन्न हुए थे जंगम.

कुंभ में संन्यासी अखाड़ों में साधु-संतों से जंगम भिक्षा मांगते हुए दिखाई देते हैं. जंगमों को लेकर एक कथा काफी प्रचलित है. पौराणिक कथाओं के अनुसार जंगमों की उत्पत्ति उस समय हुई, जब भगवान शंकर, पार्वती माता से विवाह के बाद दान देना चाहते थे. लेकिन ब्रह्मा और विष्णु भगवान ने भिक्षा ग्रहण से मना कर दिया. तब भगवान शिव ने जंगम को अपनी जांघ से उत्पन्न किया और उन्हें अमरता का वरदान दिया.

ये भी पढ़ेंः बैसाखी शाही स्नान: 2010 के मुकाबले केवल 10% ही पहुंचे श्रद्धालु, आंकड़ा साढ़े 13 लाख के पार

इसके साथ ही भोलेनाथ ने यह भी कहा कि जंगम केवल भिक्षा लेकर ही जीवन व्यतीत करेंगे. जिसके बाद से जंगम केवल संन्यासियों से भी भिक्षा मांग कर अपना जीवन यापन करते हैं. जंगम मुख्य रूप से शिव अर्थात शैव संप्रदाय के वो भिक्षु हैं, जो शिव की स्तुति गान और भिक्षा के अलावा किसी और चीज की इच्छा नहीं रखते. जंगम के गीत में मुख्यतः भगवान शिव और मां पार्वती विवाह की स्तुति रहती है.

जंगम की स्तुति में शिव ने माता गौरी को जो अमर कथा सुनाई थी, उसका सार भी इसमें रहता है. जंगम को भगवान शिव का कुल परोहित भी कहा जाता है. जंगमों की पहनी जाने वाली पोशाक में धर्म और परंपरा से जुड़ी कई चीजों का समावेश दिखाई देता है. उनके धारण किए जाने वाले वस्त्रों में पांच हिंदू देवी-देवताओं का प्रतिबिंब भी दिखाई देता है.

उनके आभूषणों में माता पार्वती के 'कर्णफूल' यानि कानों में डाला जाने वाला पीतल का आभूषण, भगवान विष्णु का प्रतीक 'मोरपंखी मुकट', भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की सेज 'शेषनाग', नजर आता है. सृष्टि के रचियता ब्रह्मा का 'पवित्र जनेऊ', भगवान शिव की सवारी नंदी के प्रतीक के रूप में 'टल्ली' या घंटी आज भी जंगमों का परंपरागत परिधान समय और कालखंड में आए परिर्वतनों के बाद भी जस का तस बना हुआ है.

हरिद्वारः कुंभ के आगाज के साथ ही धर्मनगरी हरिद्वार में साधु-संतों के कई रंग देखने को मिल रहे हैं. ये भक्ति रस में सराबोर दिखाई दे रहे हैं. हर तरफ हर-हर महादेव के जयघोष से धर्मनगरी गुंजयमान हो रही है. इसी बीच भगवान शिव के भक्त कहे जाने वाले जंगम इन दिनों टोलियों में भगवान शिव की सूक्ति करते दिखाई दे रहे हैं. ये हमेशा भगवान भोलेनाथ की भक्ति के रंग में रंगे दिखाई देते हैं. इन्हें देख देश-विदेश के श्रद्धालुओं की जिज्ञासा प्रगाढ़ हो रही है.

भगवान शिव की जांघ से उत्पन्न हुए थे जंगम.

कुंभ में संन्यासी अखाड़ों में साधु-संतों से जंगम भिक्षा मांगते हुए दिखाई देते हैं. जंगमों को लेकर एक कथा काफी प्रचलित है. पौराणिक कथाओं के अनुसार जंगमों की उत्पत्ति उस समय हुई, जब भगवान शंकर, पार्वती माता से विवाह के बाद दान देना चाहते थे. लेकिन ब्रह्मा और विष्णु भगवान ने भिक्षा ग्रहण से मना कर दिया. तब भगवान शिव ने जंगम को अपनी जांघ से उत्पन्न किया और उन्हें अमरता का वरदान दिया.

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इसके साथ ही भोलेनाथ ने यह भी कहा कि जंगम केवल भिक्षा लेकर ही जीवन व्यतीत करेंगे. जिसके बाद से जंगम केवल संन्यासियों से भी भिक्षा मांग कर अपना जीवन यापन करते हैं. जंगम मुख्य रूप से शिव अर्थात शैव संप्रदाय के वो भिक्षु हैं, जो शिव की स्तुति गान और भिक्षा के अलावा किसी और चीज की इच्छा नहीं रखते. जंगम के गीत में मुख्यतः भगवान शिव और मां पार्वती विवाह की स्तुति रहती है.

जंगम की स्तुति में शिव ने माता गौरी को जो अमर कथा सुनाई थी, उसका सार भी इसमें रहता है. जंगम को भगवान शिव का कुल परोहित भी कहा जाता है. जंगमों की पहनी जाने वाली पोशाक में धर्म और परंपरा से जुड़ी कई चीजों का समावेश दिखाई देता है. उनके धारण किए जाने वाले वस्त्रों में पांच हिंदू देवी-देवताओं का प्रतिबिंब भी दिखाई देता है.

उनके आभूषणों में माता पार्वती के 'कर्णफूल' यानि कानों में डाला जाने वाला पीतल का आभूषण, भगवान विष्णु का प्रतीक 'मोरपंखी मुकट', भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की सेज 'शेषनाग', नजर आता है. सृष्टि के रचियता ब्रह्मा का 'पवित्र जनेऊ', भगवान शिव की सवारी नंदी के प्रतीक के रूप में 'टल्ली' या घंटी आज भी जंगमों का परंपरागत परिधान समय और कालखंड में आए परिर्वतनों के बाद भी जस का तस बना हुआ है.

Last Updated : Apr 16, 2021, 10:26 AM IST
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