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पहाड़ों पर आ रही आपदा से विशेषज्ञ भी चिंतित, बचने के लिए बताए ये उपाय - National Institute of Hydrology

रुड़की स्थित राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने लगातार बादल फटने और बाढ़ आने की घटनाओं पर चिंता व्यक्त की है.

राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान.
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Published : Aug 23, 2019, 11:01 PM IST

रुड़की: उत्तराखंड में लगातार बादल फटने और बाढ़ आने की घटनाएं सामने आ रही हैं. ऐसे में राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने भी इस मामले में चिंता व्यक्त की है. उनका कहना है कि आपदा होने के कारणों और इससे बचने के लिए शोध करने की जरूरत है.

बता दें कि रुड़की स्थित राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने पहाड़ों में लगातार हो रहे भूस्खलन और बादल फटने की घटनाओं पर चिंता जताई है. उनका कहना है कि प्रकृति से लड़ना नामुमकिन है लेकिन बचाव इसका बेहतर तरीका हो सकता है.

राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने जताई लगातार हो रही बारिश पर चिंता.

वैज्ञानिक मनोहर सिंह ने कहा कि पहाड़ी इलाकों में होने वाली बारिश और शहरी इलाकों में होने वाली बारिश में काफी अंतर होता है. पहाड़ों में 50 से 100 मिलीमीटर बारिश होती है. जोकि तबाही का कारण बन जाती है. इसलिए पहाड़ों पर डाप्लर रडार, रैन गजिज, या फिर अर्ली मॉर्निंग सिस्टम लगाकर जनहानि रोकी जा सकती है.

मामले को लेकर मनोहर सिंह ने कहा कि पहाड़ों पर इंसिस्टेंस लगाकर बारिश से कुछ देर पहले ही लोगों को सचेत किया जा सकता है.

रुड़की: उत्तराखंड में लगातार बादल फटने और बाढ़ आने की घटनाएं सामने आ रही हैं. ऐसे में राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने भी इस मामले में चिंता व्यक्त की है. उनका कहना है कि आपदा होने के कारणों और इससे बचने के लिए शोध करने की जरूरत है.

बता दें कि रुड़की स्थित राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने पहाड़ों में लगातार हो रहे भूस्खलन और बादल फटने की घटनाओं पर चिंता जताई है. उनका कहना है कि प्रकृति से लड़ना नामुमकिन है लेकिन बचाव इसका बेहतर तरीका हो सकता है.

राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने जताई लगातार हो रही बारिश पर चिंता.

वैज्ञानिक मनोहर सिंह ने कहा कि पहाड़ी इलाकों में होने वाली बारिश और शहरी इलाकों में होने वाली बारिश में काफी अंतर होता है. पहाड़ों में 50 से 100 मिलीमीटर बारिश होती है. जोकि तबाही का कारण बन जाती है. इसलिए पहाड़ों पर डाप्लर रडार, रैन गजिज, या फिर अर्ली मॉर्निंग सिस्टम लगाकर जनहानि रोकी जा सकती है.

मामले को लेकर मनोहर सिंह ने कहा कि पहाड़ों पर इंसिस्टेंस लगाकर बारिश से कुछ देर पहले ही लोगों को सचेत किया जा सकता है.

Intro:Summary

रुड़की के राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों का मानना है कि पहाड़ो पर बरसात या बादल फटने से साल दर साल होने वाली घटनाओं से जो जनहानि या आपदाएं होती हैं उनसे सचेत रहने के लिए या उन से होने वाले नुकसान से बचने या कम करने के लिए पहाड़ों पर आने वाली आपदा के लिए शोध करने की जरूरत है किस तरीके से पहाड़ों पर होने वाली आपदाओं से सचेत लाया जा सकेBody:वीओ-- गौरतलब है कि रुड़की स्थित राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक इस शोध में लगे हुए हैं पहाड़ों पर बरसात के मौसम में बादल फटने की घटना या भूस्खलन से होने वाले जनहानि या नुकसान से बचने के लिए चिंतित भी हैं उनका कहना है कि प्रकृति से लड़ना नामुमकिन है लेकिन बचाव से ही इसका बेहतर तरीका हो सकता है वैज्ञानिकों के अनुसार अगर पहाड़ों पर होने वाली बारिश और सामान्य रूप से प्लेन जगहों पर में होने वाली बारिश में जमीन आसमान का अंतर होता है क्योंकि मैदानी इलाकों के मुकाबले पहाड़ों में बारिश की जो बूंदें गिरती है वह 50 से 100 मिलीमीटर बारिश पहाड़ों में 1 घंटे में पड़ती है तो वही तबाही का कारण बन जाती है इसलिए पहाड़ों पर डाप्लर रडार, रैन गजिज, या फिर अर्ली मॉर्निंग सिस्टम लगाकर इनके माध्यम से जनहानि रुक सकती है पहाड़ों पर इंसिस्टेंस को लगाकर बारिश से कुछ देर पहले ही लोगों को सचेत किया जा सकता है कि बारिश किस रूप में होने वाली है इन सिस्टम के साए रनों के माध्यम से लोगों को बारिश से पहले आधा कर दिया जाएगा जिसके कारण लोग समय रहते सुरक्षित स्थानों पर पहुंच सकें इसके लिए सभी को सक्रिय होना पड़ेगा ताकि पहाड़ों पर हो रही इस तबाही से बचा जा सके बारिश के समय खासतौर पर अलर्ट रहने की जरूरत होती है ताकि प्रकति के रौद्र रूप से बचा भी जा सके


बाइट-- मनोहर सिंह --एनआईएच वैज्ञानिक रुड़कीConclusion:1
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