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ये है भगवान शंकर की ससुराल, स्वयं दक्ष के लिए ब्रह्मा ने मांगा था क्षमादान, जानिए महत्व...

हरिद्वार के कनखल स्थित दक्ष प्रजापति मंदिर में सावन भर भोलेनाथ की पूजा अर्चना की जाती है. पुराणों के अनुसार इस नगरी को राजा दक्ष की नगरी कहा जाता था. इसलिए यहां जो भक्त भगवान शिव का सच्चे मन से 40 दिन जलाभिषेक करता है. उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

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Published : Jul 31, 2019, 10:30 AM IST

Updated : Jul 31, 2019, 12:37 PM IST

दक्ष प्रजापति मंदिर का महत्व

हरिद्वार: भोले शंकर, जिनकी महिमा अपरंपार है. दुनिया जिन्हें पूजती है. जो सबसे ज्यादा अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं. भगवान शंकर को याद करने मात्र से उनके कष्ट दूर हो जाते हैं. पुराणों के अनुसार हरिद्वार के कनखल नगरी में दक्ष प्रजापति मंदिर में भगवान शिव का पहला शिवलिंग स्थापित है. जिसे खुद भोले शंकर ने स्थापित किया था. वैसे तो शिव हर जगह विद्यमान हैं, पर उनकी ससुराल में शिव की निराली महिमा है. अगर यहां पर उनकी पूजा और आराधना की जाए तो जीवन के सभी कष्टों का अंत हो जाता है.

दक्ष प्रजापति मंदिर का महत्व

हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ स्थान हरिद्वार है. जहां सभी देवाता साक्षात विराजते हैं. यहां कलयुग की प्रधान देवी मां गंगा हैं तो भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी भी यहां विराजते हैं. देवों के देव भोले शंकर तो यहां के कण-कण में वास करते हैं. कैलाश के बाद अगर भोले शंकर का कोई निवास स्थान है तो वह है उनकी ससुराल हरिद्वार की एक उपनगरी कनखल. जिसका वर्णन हमारे शास्त्रों और पुराणों में भी है. कनखल ब्रह्मा जी के पुत्र और राजा दक्ष की नगरी इसी पौराणिक नगरी में स्थित है. दक्षेश्वर महादेव का मंदिर जिसे दक्ष प्रजापति के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. यहां मान्यता है कि अगर यहां भगवान शंकर का विधि विधान के साथ रुद्राभिषेक किया जाए और उनकी पूजा की जाए तो भगवान शिव सभी मनोकामना पूरी करते हैं.

राजा दक्ष की नगरी और शिव की ससुराल कनखल एक छोटा सा नगर है, जो हरिद्वार के पास ही है. यह नगरी हरिद्वार स्टेशन से करीब 2 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है. यहीं पर स्थित है दक्षेश्वर महादेव मंदिर. इस मंदिर की पौराणिक कथा के अनुसार शिव के ससुर राजा दक्ष ने शिव को अपमानित करने के लिए यज्ञ का आयोजन किया. इस यज्ञ में उन्होंने सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया पर अपने दामाद को आमंत्रित नहीं किया. दक्ष के यज्ञ में जब आकाश मार्ग से सभी देवताओं को जाते हुए शिव की अर्धांगिनी और राजा दक्ष की पुत्री सती ने देखा तो उन्हें मालूम हुआ कि उनके पिता ने कोई यह का आयोजन किया है और सभी देवी देवता उसी में शामिल होने के लिए जा रहे हैं.

तब सती ने भी अपने पति शिव से यज्ञ में जाने की जिद की. पर शिव ने यह कहकर मना कर दिया कि जब हमें आमंत्रण नहीं मिला है तो वहां नहीं जाना चाहिए. पित्र प्रेम में सती पति की आज्ञा का उल्लंघन कर यज्ञ में चलीं गईं. उनके वहां पहुंचने पर उन्होंने देखा कि सभी देवी देवताओं का स्थान तो यज्ञ में है पर उनके पति का नहीं है और उनके पिता शिव के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग कर रहे थे. यह सब सती से सहन नहीं हुआ और सती ने उसी यज्ञ कुंड में कूदकर अपने शरीर को त्याग दिया.

सती के यज्ञ कुंड में खुद को दाह कर लेने का जब शिव को पता चला तो वह क्रोध से भर उठे और उन्होंने अपने गण वीरभद्र को दक्ष के यज्ञ को विध्वंस करने का आदेश दिया. शिव के आदेश पर वीरभद्र ने यज्ञ विध्वंस कर राजा दक्ष का सिर धड़ से अलग कर दिया और उसे उसी यज्ञ कुंड में डाल दिया. इससे समस्त देवलोक में हाहाकार मच गया. फिर सभी देवताओं ने शिव की स्तुति की. इसके बाद स्वयं ब्रह्मा जी ने शिव से दक्ष को क्षमादान देने का आग्रह किया. जिस पर शिव ने दक्ष को माफ तो कर दिया. पर उनके सामने यह संकट खड़ा हो गया कि दक्ष का सर तो यज्ञ कुंड में स्वाहा हो चुका है तो उन्हें कैसे जीवित किया जाए. इस पर एक बकरे के सिर को काटकर उनके धड़ पर लगाया गया. इसके बाद दक्ष के आग्रह पर शिव ने यहीं पर एक शिवलिंग स्थापित किया और पूरे सावन मास यहीं पर रहने का दक्ष को वचन दिया.

पढ़ें- सावन के दूसरे सोमवार को मंदिरों में उमड़ी भीड़, भोले के जयकारों से गुंजी धर्मनगरी

शिव को सबसे दयालु माना जाता है. कहा जाता है कि शिव एक मात्र ऐसे देवता है जो मात्र जल चढ़ाने से ही प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. जिस तरह से शिव ने अहंकार में चूर राजा दक्ष को जीवनदान दिया और उनका उद्धार किया था. उसी तरह से वह सभी भक्तों का उद्धार करते हैं. दक्ष मंदिर में प्रातः 5 बजे और शाम 8 बजे शिव की आरती होती है. लेकिन शाम की आरती सबसे प्रमुख होती है. आरती से पहले शिवलिंग श्रृंगार किया जाता है, जो देखने में आलौकिक होता है. मान्यता है कि जो भक्त लगातार 40 दिन तक भगवान भोलेनाथ को दूध, शहद अथवा घी और साथ में बेलपत्र के साथ अभिषेक करता है, तो भगवान शिव उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.

मान्यता है कि यह शिव की ससुराल है और सावन में एक महीना शिव यहीं पर निवास करते हैं. यहां जलाभिषेक करने से सभी की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. खासतौर जो कन्या यहां पर आकर मनोवांछित वर पाने के लिए शिव की आराधना करती है, तो उसे मनचाहे वर की प्राप्ति होती है.

हरिद्वार: भोले शंकर, जिनकी महिमा अपरंपार है. दुनिया जिन्हें पूजती है. जो सबसे ज्यादा अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं. भगवान शंकर को याद करने मात्र से उनके कष्ट दूर हो जाते हैं. पुराणों के अनुसार हरिद्वार के कनखल नगरी में दक्ष प्रजापति मंदिर में भगवान शिव का पहला शिवलिंग स्थापित है. जिसे खुद भोले शंकर ने स्थापित किया था. वैसे तो शिव हर जगह विद्यमान हैं, पर उनकी ससुराल में शिव की निराली महिमा है. अगर यहां पर उनकी पूजा और आराधना की जाए तो जीवन के सभी कष्टों का अंत हो जाता है.

दक्ष प्रजापति मंदिर का महत्व

हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ स्थान हरिद्वार है. जहां सभी देवाता साक्षात विराजते हैं. यहां कलयुग की प्रधान देवी मां गंगा हैं तो भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी भी यहां विराजते हैं. देवों के देव भोले शंकर तो यहां के कण-कण में वास करते हैं. कैलाश के बाद अगर भोले शंकर का कोई निवास स्थान है तो वह है उनकी ससुराल हरिद्वार की एक उपनगरी कनखल. जिसका वर्णन हमारे शास्त्रों और पुराणों में भी है. कनखल ब्रह्मा जी के पुत्र और राजा दक्ष की नगरी इसी पौराणिक नगरी में स्थित है. दक्षेश्वर महादेव का मंदिर जिसे दक्ष प्रजापति के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. यहां मान्यता है कि अगर यहां भगवान शंकर का विधि विधान के साथ रुद्राभिषेक किया जाए और उनकी पूजा की जाए तो भगवान शिव सभी मनोकामना पूरी करते हैं.

राजा दक्ष की नगरी और शिव की ससुराल कनखल एक छोटा सा नगर है, जो हरिद्वार के पास ही है. यह नगरी हरिद्वार स्टेशन से करीब 2 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है. यहीं पर स्थित है दक्षेश्वर महादेव मंदिर. इस मंदिर की पौराणिक कथा के अनुसार शिव के ससुर राजा दक्ष ने शिव को अपमानित करने के लिए यज्ञ का आयोजन किया. इस यज्ञ में उन्होंने सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया पर अपने दामाद को आमंत्रित नहीं किया. दक्ष के यज्ञ में जब आकाश मार्ग से सभी देवताओं को जाते हुए शिव की अर्धांगिनी और राजा दक्ष की पुत्री सती ने देखा तो उन्हें मालूम हुआ कि उनके पिता ने कोई यह का आयोजन किया है और सभी देवी देवता उसी में शामिल होने के लिए जा रहे हैं.

तब सती ने भी अपने पति शिव से यज्ञ में जाने की जिद की. पर शिव ने यह कहकर मना कर दिया कि जब हमें आमंत्रण नहीं मिला है तो वहां नहीं जाना चाहिए. पित्र प्रेम में सती पति की आज्ञा का उल्लंघन कर यज्ञ में चलीं गईं. उनके वहां पहुंचने पर उन्होंने देखा कि सभी देवी देवताओं का स्थान तो यज्ञ में है पर उनके पति का नहीं है और उनके पिता शिव के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग कर रहे थे. यह सब सती से सहन नहीं हुआ और सती ने उसी यज्ञ कुंड में कूदकर अपने शरीर को त्याग दिया.

सती के यज्ञ कुंड में खुद को दाह कर लेने का जब शिव को पता चला तो वह क्रोध से भर उठे और उन्होंने अपने गण वीरभद्र को दक्ष के यज्ञ को विध्वंस करने का आदेश दिया. शिव के आदेश पर वीरभद्र ने यज्ञ विध्वंस कर राजा दक्ष का सिर धड़ से अलग कर दिया और उसे उसी यज्ञ कुंड में डाल दिया. इससे समस्त देवलोक में हाहाकार मच गया. फिर सभी देवताओं ने शिव की स्तुति की. इसके बाद स्वयं ब्रह्मा जी ने शिव से दक्ष को क्षमादान देने का आग्रह किया. जिस पर शिव ने दक्ष को माफ तो कर दिया. पर उनके सामने यह संकट खड़ा हो गया कि दक्ष का सर तो यज्ञ कुंड में स्वाहा हो चुका है तो उन्हें कैसे जीवित किया जाए. इस पर एक बकरे के सिर को काटकर उनके धड़ पर लगाया गया. इसके बाद दक्ष के आग्रह पर शिव ने यहीं पर एक शिवलिंग स्थापित किया और पूरे सावन मास यहीं पर रहने का दक्ष को वचन दिया.

पढ़ें- सावन के दूसरे सोमवार को मंदिरों में उमड़ी भीड़, भोले के जयकारों से गुंजी धर्मनगरी

शिव को सबसे दयालु माना जाता है. कहा जाता है कि शिव एक मात्र ऐसे देवता है जो मात्र जल चढ़ाने से ही प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. जिस तरह से शिव ने अहंकार में चूर राजा दक्ष को जीवनदान दिया और उनका उद्धार किया था. उसी तरह से वह सभी भक्तों का उद्धार करते हैं. दक्ष मंदिर में प्रातः 5 बजे और शाम 8 बजे शिव की आरती होती है. लेकिन शाम की आरती सबसे प्रमुख होती है. आरती से पहले शिवलिंग श्रृंगार किया जाता है, जो देखने में आलौकिक होता है. मान्यता है कि जो भक्त लगातार 40 दिन तक भगवान भोलेनाथ को दूध, शहद अथवा घी और साथ में बेलपत्र के साथ अभिषेक करता है, तो भगवान शिव उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.

मान्यता है कि यह शिव की ससुराल है और सावन में एक महीना शिव यहीं पर निवास करते हैं. यहां जलाभिषेक करने से सभी की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. खासतौर जो कन्या यहां पर आकर मनोवांछित वर पाने के लिए शिव की आराधना करती है, तो उसे मनचाहे वर की प्राप्ति होती है.

Intro:फीड लाइव व्यू से भेजी गई है

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भोले शंकर जिसकी महिमा अपरंपार दुनिया में जीने पूजा जाता है सबसे ज्यादा जो अपने भक्तों पर बरसाते हैं खुलकर अपनी कृपा जो मात्र उन्हें याद कर लेने भर से ही भक्तों से हो जाते हैं प्रसन्न ऐसे देव है भोले शंकर जीवन में कैसा भी कष्ट हो कैसी भी परेशानी हो शिव को याद करो तो शिव अपने भक्तों की पुकार जरूर सुनते हैं पुराणों के अनुसार माना जाता हरिद्वार कनखल नगरी में दक्ष प्रजापति मैं भगवान शिव का पहला शिवलिंग स्थापित है जिसे खुद भोले शंकर ने स्थापित किया था वैसे तो शिव हर जगह विद्यमान है पर उनकी ससुराल में शिव की महिमा है निराली और यहां पर उनकी पूजा की जाए और आराधना की जाए तो जीवन में हो जाता है सभी कष्टों का अंत

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Body:हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ हरिद्वार जा साक्षात विराजते हैं सभी देवी देवता यहां कलयुग की प्रधान देवी मां गंगा है तो भगवान विष्णु और साक्षात ब्रह्मा जी भी यहां विराजते हैं और देवों के देव भोले शंकर तो यहां के कण-कण में है कैलाश के बाद यदि कोई शिव का निवास स्थान है तो वह है उनकी ससुराल कनखल हरिद्वार की एक उपनगरी कनखल जिसका वर्णन हमारे शास्त्रों और पुराणों में भरा पड़ा है कनखल है ब्रह्मा जी के पुत्र और राजा दक्ष की नगरी इस पुराणिक नगरी में स्थित है दक्षेश्वर महादेव का मंदिर जिसे दक्ष प्रजापति के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है मान्यता है कि यदि या पर भगवान शंकर का विधि विधान के साथ रुद्राभिषेक किया जाए और उनकी पूजा की जाए तो भगवान शिव सभी मनोकामना पूरी करते हैं

बाइट--रविंद्र पुरी महाराज---दक्ष मंदिर संचालक

कनखल पौराणिक नगरी राजा दक्ष की नगरी शिव की ससुराल है कनखल एक छोटा सा नगर है हरिद्वार के पास ही है यह नगरी हरिद्वार स्टेशन से करीब 2 किमी दक्षिण में स्थित है और यहीं पर स्थित है दक्षेश्वर महादेव मंदिर इस मंदिर की पौराणिक कथा के अनुसार शिव के ससुर राजा दक्ष ने शिव को अपमानित करने के लिए यज्ञ का आयोजन किया इस यज्ञ में उन्होंने सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया पर अपने दामाद को आमंत्रित नहीं किया दक्ष के यज्ञ में जब आकाश मार्ग से सभी देवताओं को जाते हुए शिव की अर्धांगिनी और राजा दक्ष की पुत्री सती ने देखा तो उन्हें मालूम हुआ कि उनके पिता ने कोई यह का आयोजन किया है और सभी देवी देवता उसी में भाग लेने के लिए जा रहे हैं सती ने भी अपने पति शिव से यज्ञ में जाने की जिद की पर शिव ने यह कहकर मना किया जब हमें आमंत्रण नहीं मिला है तो वहां नहीं जाना चाहिए पर पित्र प्रेम में सती पति की आज्ञा का उल्लंघन कर यज्ञ में चली गई उनके वहां पहुंचने पर उन्होंने देखा कि सभी देवी देवताओं का स्थान तो यज्ञ में है पर उनके पति का नहीं है और उनके पिता शिव के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग कर रहे थे यह सब सती से सहन नहीं हुआ और सती ने उसी यज्ञ कुंड में कूदकर अपने शरीर को त्याग दिया

बाइट--रविंद्र पुरी महाराज---दक्ष मंदिर संचालक

जब सती के यज्ञ कुंड में खुद को दाह कल लेने का शिव को पता चला तो वह क्रोध से भर उठे और उन्होंने अपने गण वीरभद्र को दक्ष के यज्ञ को विध्वंस करने का आदेश दिया शिव के आदेश पर वीरभद्र ने यज्ञ विध्वंस कर राजा दक्ष का सिर धड़ से अलग कर दिया और उसे उसी यज्ञ कुंड में डाल दिया इससे समस्त देवलोक में हाहाकार मच गया और फिर सभी देवताओं ने शिव की स्तुति की इसके बाद स्वयं ब्रह्मा जी ने शिव से दक्ष को क्षमादान देने का आग्रह किया जिस पर शिव ने दक्ष को माफ तो कर दिया पर उनके सामने यह संकट खड़ा हो गया कि दक्ष का सर तो यज्ञ कुंड में स्वाहा हो चुका है तो उन्हें कैसे जीवित किया जाए इस पर एक बकरे के सिर को काटकर उनके घड़ पर लगाया गया जिसे उनको जीवित किया गया इसके बाद दक्ष के आगरे पर शिव ने यहीं पर एक शिवलिंग स्थापित किया और पूरे सावन मास यहीं पर रहने का दक्ष को वचन दिया

बाइट--रविंद्र पुरी महाराज---दक्ष मंदिर संचालक

शिव को सबसे दयालु माना जाता है कहा जाता है कि शिव एक मात्र ऐसे देवता है जो मात्र जल चढ़ाने से ही प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों की करते हैं सभी मनोकामनाएं पूरी माना जाता है कि जिस तरह से शिव ने अहंकार में चूर राजा दक्ष को जीवनदान दिया था और उनका उद्धार किया था उसी तरह से वह सभी भक्तों का उद्धार करते हैं दक्ष मंदिर में प्रात 5 बजे और शाम 8 बजे शिव की आरती होती है मगर सायंकाल की आरती सबसे प्रमुख होती है आरती से पहले शिवलिंग का किया जाता है सिंगार जो देखने में काफी आलौकिक होता है यहाँ पर रोजाना अलग-अलग वस्तुओं से जैसे मिठाई फूल या विभिन्न तरह की पत्तियों से सिंगार होता है इसके बाद शुरू होती है आरती और आरती भी ऐसी जिसमें मौजूद रहकर हो जाता है हर कोई मंत्रमुग्द माना जाता है कि यदि यहां पर भगवान शिव के 40 दिन तक चल दूध शहद अथवा घी से और साथ में बेलपत्र के साथ अभिषेक किया जाए तो शिव सभी प्रकार की मनोकामना पूरी करते हैं

बाइट--रविंद्र पुरी महाराज---दक्ष मंदिर संचालक

दक्ष प्रजापति मंदिर में शिव के साथ ही विराजते हैं उनके प्रिय नंदी माना जाता है कि यदि कोई भी मनोकामना को नंदी के कान में कहा जाए तो शिव उसकी वह मनोकामना जरूर पूरी करते हैं तभी तो इस मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु शिव का जलाभिषेक करने आते हैं माना जाता है कि यहां कण कण में विराजते हैं साक्षात भगवान शिव यहां आकर श्रद्धालु शिव का जलाभिषेक दुग्धाभिषेक करते हैं और उसके साथ चढ़ाते हैं बेलपत्र लोगों को विश्वास है कि शिव उनकी हर एक मनोकामना को पूरा करते हैं दक्ष मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि इस मंदिर में हम कई वर्षों से आ रहे हैं और यहां की मान्यता है कि यह शिव की ससुराल है और सावन में शिव एक महीना यहीं पर निवास करते हैं यहां जलाभिषेक करने से सभी की मनोकामना पूर्ण होती है और खासतौर से जिस लड़की को शिव के जैसा वर चाहिए वह लड़की यहाँ भगवान शिव की पूजा करती है तो उनको मनचाहा वर की प्राप्ति होती है

बाइट-- श्रद्धालु


Conclusion:देवी सती के यज्ञ कुंड में भस्म होने के बाद शिव को इतना क्रोध आ गया था कि उन्होंने रौद्र रूप धारण कर लिया था और फिर इसी स्थान पर तांडव किया था जिससे पूरे देवलोक में हाहाकार मच गया था भगवान शिव के तीसरे नेत्र के खुलने की आशंका से सृष्टि के विनाश का खतरा पैदा हो गया था मगर इससे घबराए देवताओं में शंकर जी की प्रार्थना कर उनका क्रोध शांत किया था इसी घटना की वजह से यह जगह सृष्टि में विनाश को रोकने की गवाह भी बनी है इस स्थान पर सावन के एक महीने भगवान शिव के निवास करने की वजह से देश विदेश के लाखों श्रद्धालु इस मंदिर में भगवान शिव का जलाभिषेक करने आते हैं


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Last Updated : Jul 31, 2019, 12:37 PM IST
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