हरिद्वार: लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का असामयिक निधन हो गया. इसकी जानकारी चिराग पासवान ने ट्वीट कर दी. उनके निधन पर देश के प्रधानमंत्री सहित सभी पार्टियों के बड़े राजनेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की. राम विलास पासवान पिछले काफी समय से बीमार चल रहे थे. रामविलास पासवान से हरिद्वार की यादें जुड़ी हुई हैं.
साल 1987 में हरिद्वार में जब लोकसभा के उपचुनाव हुए तब यह सीट आरक्षित थी. कांग्रेस के सुंदरलाल 1985 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी सहानुभूति लहर में हरिद्वार से सांसद बने लेकिन बीमार होने के कारण साल 1987 में उनकी मृत्यु हो गई और इस सीट पर उपचुनाव हुआ.
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रामविलास पासवान ने चंद्रशेखर से जताई थी इच्छा
रामविलास पासवान तब जनता पार्टी में थे और जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर से पासवान ने हरिद्वार से उप चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी. चंद्रशेखर ने उन्हें मना किया था क्योंकि, जनता पार्टी का हरिद्वार में कोई आधार नहीं था. इसलिए वे हारने के लिए चुनाव लड़े. पासवान कहा कि वो हरिद्वार से चुनाव लड़ कर हरिद्वार को राष्ट्रीय नीति के नक्शे पर उभारना चाहते हैं. पासवान ने हरिद्वार से जनता पार्टी के टिकट पर अपना पर्चा भरा और चंदशेखर स्वयं हरिद्वार दस बारह दिन रहे और पासवान के चुनाव की बागडोर संभाली.
पासवान के समर्थन में देश के बड़े नेता हरिद्वार में जुटे
देश के कई बड़े नेता पासवान के समर्थन में जनसभा करने हरिद्वार पहुंचे. ओम प्रकाश श्रीवास्तव, रामगोविंद चौधरी जैसे नेता पासवान का प्रचार करने पहुंचे. कांग्रेस, बीजेपी और अन्य पार्टियों के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं ने अपनी पार्टी छोड़कर रामविलास के चुनाव में प्रचार किया लेकिन पासवान चुनाव हार गए. पासवान भले ही हरिद्वार से चुनाव हार गये लेकिन उनकी भाषण शैली और मिलनसार व्यक्तित्व को आज भी हरिद्वार के लोगों के दिलों में जिंदा है.
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पासवान ने हरिद्वार में 1987 में उपचुनाव लड़ा
कांग्रेस के सुंदरलाल के निधन के कारण साल 1987 में उपचुनाव कराए गए. इस उपचुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती और लोक जनशक्ति पार्टी के शीर्ष नेता व मौजूदा केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने हरिद्वार से ताल ठोकी. यह वह दौर था जब बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम पार्टी की जड़े मजबूत करने में जुटे हुए थे. चुनावी राजनीति में बसपा अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रही थी, मायावती की सियासी पहचान भी आज की तरह दमदार नहीं थी.
पासवान को नहीं मिला बहुमत
रामविलास पासवान बोफोर्स कांड को लेकर कांग्रेस के खिलाफ बने माहौल का हथियार लेकर चुनाव मैदान में उतरे. चुनाव प्रचार के दौरान मायावती वा रामविलास पासवान ने पूरी ताकत लगाई. कोंग्रेस को भी इन दोनों नेताओं की चुनौती बड़ी लगी, लेकिन उपचुनाव के नतीजे जब सामने आए तो कोंग्रेस प्रत्याशी राम सिंह 1,49,377 मत लेकर 23,978 वोटों के अंतर से चुनाव जीत गए. मायावती दूसरे स्थान पर रही और रामविलास पासवान चौथे स्थान पर खिसक गए. पासवान को महज 34,225 वोट ही मिल पाए.
पासवान की यादें हरिद्वार के लोगों के दिलों में आज भी ताजा हैं. पासवान का मिलनसार व्यवहार आज भी हरिद्वार के लोगों के जहन में है. भले पासवान आज दुनिया में नहीं हैं परंतु हरिद्वार के लोगों के मन में उनकी यादें हमेशा ताजा रहेंगी. उनका हंसमुख चेहरा लोग कभी नहीं भूल पाएंगे.