हरिद्वार: 'यह दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे, छोड़ेंगे दम मगर तेरा साथ ना छोड़ेंगे'. ये लाइन 15 अगस्त 1975 को रिलीज हुई शोले फिल्म के एक गाने की है. इस फिल्म में जय और वीरू की दोस्ती को बखूबी फिल्माया गया है. इस फिल्म की मशहूर जय और वीरू की जोड़ी की तरह ही मशहूर है हरिद्वार की अम्बरीष कुमार और मुरली मनोहर की जोड़ी. अम्बरीष कुमार और मुरली मनोहर की दोस्ती करीब 48 साल पुरानी है. अम्बरीष कुमार अविभाजित उत्तर प्रदेश में विधायक रह चुके हैं और लोकसभा चुनाव के लिए इस बार कांग्रेस ने उन्हें हरिद्वार सीट से उम्मीदवार बनाया है. इस चुनाव में इनके खेवनहार मुरली मनोहर ही होंगे.
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'याद करेगी दुनिया, तेरा मेरा याराना' जी हां इस फिल्मी याराने की तरह आज हरिद्वार में अम्बरीष कुमार और मुरली की जोड़ी के याराने को भी लोग याद कर रहे हैं. अमरीश कुमार हरिद्वार में छात्र जीवन से ही मजबूत राजनीतिक जनाधार रखने वाले नेता हैं और उसके हम कदम हैं. मुरली मनोहर अम्बरीष कुमार छात्र राजनीति से राजनीति में आए इमरजेंसी के दौरान अपनी योग्यता के बल पर कांग्रेस में जगह बनाई थी और फिर आगे बढ़ते रहे. छात्र जीवन में ही सन 1971-72 में कॉलेज में अम्बरीष कुमार को मिले मुरली मनोहर जो साथ ही पढ़ते थे. दोनों के बीच दोस्ती हो गई. क्योंकि दोनों ही छात्र जीवन से ही राजनीति में रुचि रखते थे, इसलिए दोनों के बीच दोस्ती बढ़ती गई.
समाज के लिए समर्पित किया अपना जीवन
मुरली मनोहर अपनी दोस्ती का राज बताते हुए कहते हैं कि उनकी दोस्ती कॉलेज के वक्त ही एक सिद्धांत के आधार पर हुई थी. हम दोनों ही दलित, शोषित और पिछड़ों के लिए लड़ते थे. इन लोगों को न्याय और सम्मान व अधिकार दिलाने के लिए लड़ते थे. हम दोनों का यही सिद्धांत था छात्र राजनीति के बाद ट्रेड यूनियन में भी हम गरीब मजदूरों के लिए संघर्ष करते रहे. समाज में अन्याय के खिलाफ लड़ते हुए ही हम दोनों की दोस्ती गहरी होती चली गई. मुरली बताते हैं कि कभी भी हम दोनों ने सत्ता पैसे के लिए राजनीति नहीं की और ना ही कभी हमारे बीच कभी पैसा या सत्ता के लिए आपसी मनमुटाव हुआ. हम दोनों ने समाज के लिए अपना जीवन समर्पित किया और यही हमारी दोस्ती का आधार भी है.
इंदिरा गांधी के खास लोगों में शुमार रहे अम्बरीष कुमार
अम्बरीष कुमार इंदिरा गांधी के खास लोगों में शुमार रहे हैं मगर संजय गांधी को अमरीश कुमार पसंद नहीं करते थे. इसलिए कभी वह विधानसभा या संसद तक नहीं पहुंच पाए. जब कांग्रेस ने अम्बरीष कुमार को जवज्जो नहीं दी तो उन्होंने क्रांतिकारी मंच नाम से अपना संगठन बना लिया और निर्दलीय ही चुनाव मैदान में उतर पड़े. तब उन्होंने कांग्रेस के महावीर राणा को कड़ी टक्कर दी और मात्र 71 मतों से हार गए. कहा तो यह भी जाता है कि सत्ता के दबाव में स्थानीय प्रशासन ने उन्हें जानबूझकर हरा दिया था.
इसके बाद अम्बरीष कुमार ने समाजवादी पार्टी ज्वाइन की. सपा के टिकट पर 1996 में हरिद्वार से विधायक चुने गए, लेकिन अपने अक्खड़ स्वभाव के कारण किसी एक पार्टी में नहीं टिक सके. सपा छोड़ी फिर अपना दल सक्रिय किया फिर कांग्रेस में गए. वहां भी टिकट नहीं मिला तो फिर निर्दलीय लड़े. इसके 2017 में फिर कांग्रेस के टिकट पर लड़े और हार गए.
जीवन में तमाम उतार-चढ़ाव और हार-जीत उठापटक के बाद भी अगर कोई बात अडिग रही तो वह थी मुरली और अम्बरीष की दोस्ती. कैसी भी परिस्थिति रही हो दोनों ने कभी एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ा. दोनों की दोस्ती पर अम्बरीष कुमार का कहना है कि हम एक सिद्धांत को लेकर साथ आए थे और हमारे साथ आने का जो मकसद था, वह पूरा नहीं हुआ है. इसलिए हमारी दोस्ती आज भी कायम है.
आजकल भाई-भाई में जरा सी बात पर विवाद और झगड़ा होना आम बात है, ऐसे में इन दोनों की दोस्ती समाज के लिए एक उदाहरण बन सकती है. आश्चर्य की बात तो यह है कि करीब 48 साल के इस लंबे सफर में दोनों के बीच ना कभी मनमुटाव हुआ और ना ही कभी कोई विवाद. इस तरह की दोस्ती वह भी राजनीति क्षेत्र में सक्रिय रहे लोगों के बीच बहुत कम देखने को मिलती है. इनकी दोस्ती किसी मिसाल से कम नहीं है.