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संतान प्राप्ति के लिए पौष पुत्रदा एकादशी है खास, ये है पौराणिक मान्यता

मान्यता है कि आज पौष पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करने पर अवश्य मनोरथ पूरे होते हैं. इस व्रत के पुण्य से लोगों को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है.

Haridwar Putrada Ekadashi
पुत्रदा एकादशी
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Published : Jan 24, 2021, 12:36 PM IST

हरिद्वार: आज पौष मास शुक्ल पक्ष की एकादशी है, जिसे पुत्रदा एकादशी भी कहा जाता है. पुत्रदा एकादशी का वर्णन पुराणों में भी किया गया है. मान्यता है कि आज पौष पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करने पर अवश्य मनोरथ पूरे होते हैं. इस व्रत के पुण्य से लोगों को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है.

संतान प्राप्ति के लिए पौष पुत्रदा एकादशी है खास.

मान्यता है कि भद्रावती पूरी का राजा सुकेतु मान, जिसकी पत्नी का नाम चंपा था. दोनों की कोई संतान नहीं थी. यह उनके दुख का बड़ा कारण था. एक दिन राजा महल से बिना बताए घने वन में चला गया. वहां राजा को कुछ मुनियों का दर्शन हुआ. राजा उनके पास जाकर उन्हें प्रणाम करके बोला, आप लोग कौन हैं और इस घने वन में क्या कर रहे हैं ?

तब मुनियों ने राजा से कहा हम विश्ववे देव हैं और यहां माघ स्नान करने आए हैं. आज से पांचवें दिन माघ स्नान शुरू होने वाला है. यह सुनकर राजा ने उनसे कहा है मुनिवर मेरे संतान नहीं है. तब उन विश्वे देवों ने कहा आज पुत्रदा एकादशी है. तुम आज इस एकादशी का विधिवत व्रत करोगे तो नारायण श्री हरि की तुम पर अवश्य कृपा होगी. तब राजा सुकेतु मान ने पुत्रदा एकादशी का व्रत किया और उसे पुत्र की प्राप्ति हुई. तभी से माना जाता है कि जिसे पुत्र की अभिलाषा हो, उसे पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए.

ये भी पढ़ें: देहरादून-हरिद्वार नेशनल हाईवे का सीएम करेंगे निरीक्षण, जानें खासियत

पंडित देवेंद्र कृष्ण आचार्य के अनुसार व्रत में फलाहार करें, भूमि पर सोए, रात्रि में भगवान विष्णु का जागरण करें और प्रातः काल गंगा नदी या तालाब में स्नान करें और भगवान विष्णु की पूजा करें. तत्पश्चात दान करें, ऐसे श्रद्धा से पुत्रदा का व्रत करने से भगवान प्रसन्न होते हैं और मनोरथ पूर्ण करते हैं. यह एकादशी साल में सिर्फ एक बार आती है. इस एकादशी में व्रत रखने से संतान सुख की प्राप्ति तो होती है. साथ ही मनचाहा फल भी प्राप्त होता है.

हरिद्वार: आज पौष मास शुक्ल पक्ष की एकादशी है, जिसे पुत्रदा एकादशी भी कहा जाता है. पुत्रदा एकादशी का वर्णन पुराणों में भी किया गया है. मान्यता है कि आज पौष पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करने पर अवश्य मनोरथ पूरे होते हैं. इस व्रत के पुण्य से लोगों को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है.

संतान प्राप्ति के लिए पौष पुत्रदा एकादशी है खास.

मान्यता है कि भद्रावती पूरी का राजा सुकेतु मान, जिसकी पत्नी का नाम चंपा था. दोनों की कोई संतान नहीं थी. यह उनके दुख का बड़ा कारण था. एक दिन राजा महल से बिना बताए घने वन में चला गया. वहां राजा को कुछ मुनियों का दर्शन हुआ. राजा उनके पास जाकर उन्हें प्रणाम करके बोला, आप लोग कौन हैं और इस घने वन में क्या कर रहे हैं ?

तब मुनियों ने राजा से कहा हम विश्ववे देव हैं और यहां माघ स्नान करने आए हैं. आज से पांचवें दिन माघ स्नान शुरू होने वाला है. यह सुनकर राजा ने उनसे कहा है मुनिवर मेरे संतान नहीं है. तब उन विश्वे देवों ने कहा आज पुत्रदा एकादशी है. तुम आज इस एकादशी का विधिवत व्रत करोगे तो नारायण श्री हरि की तुम पर अवश्य कृपा होगी. तब राजा सुकेतु मान ने पुत्रदा एकादशी का व्रत किया और उसे पुत्र की प्राप्ति हुई. तभी से माना जाता है कि जिसे पुत्र की अभिलाषा हो, उसे पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए.

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पंडित देवेंद्र कृष्ण आचार्य के अनुसार व्रत में फलाहार करें, भूमि पर सोए, रात्रि में भगवान विष्णु का जागरण करें और प्रातः काल गंगा नदी या तालाब में स्नान करें और भगवान विष्णु की पूजा करें. तत्पश्चात दान करें, ऐसे श्रद्धा से पुत्रदा का व्रत करने से भगवान प्रसन्न होते हैं और मनोरथ पूर्ण करते हैं. यह एकादशी साल में सिर्फ एक बार आती है. इस एकादशी में व्रत रखने से संतान सुख की प्राप्ति तो होती है. साथ ही मनचाहा फल भी प्राप्त होता है.

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