हरिद्वार: कोरोना काल के चलते जहां हर तबके के व्यापारी एवं मजदूर परेशान हैं. वहीं, इन दिनों हरकी पैड़ी में कुछ बच्चे गंगा नदी में उतरकर सिक्के ढूंढ रहे हैं. ये बच्चे इन्हीं सिक्कों से ही अपना घर चलाते हैं. जान जोखिम में डालकर चंद सिक्कों के लिए हर रोज गंगा नदी में उतरकर ये बच्चे मौत से जिंदगी की जंग लड़ते हैं. इसे इनकी मजबूरी ही कहा जा सकता है कि इस काम के लिए ये बच्चे स्कूल भी नहीं जा पाते. हर रोज गंगा में उम्मीदों की छलांग लगाकर ये बच्चे अपने घर का भरण पोषण करते हैं.
कहने को तो सरकार गरीब, मजदूर वर्ग के परिवारों तक खाना पहुंचा रही है. न जाने कितनी ही सामाजिक संस्थाएं लंगर लगाकर भूखों को खाना खिलाने की दावा करती हैं, मगर जब भूख मिटाने और चंद सिक्कों की चाह में बच्चे अपनी जान की बाजी लगाकर गंगा नदी में उतरते दिखे तो ये सब बातें बेइमानी लगती हैं. ऐसा ही कुछ नजारा हरकी पैड़ी पर हर दिन देखने को मिलता है. यहां कुछ बच्चे घर परिवार का खर्च चलाने, दो जून की रोटी का जुगाड़ करने के लिए गंगा नदी में छलांग लगा रहे हैं.
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गंगा में छलांग लगाकर सिक्के ढूंढ रहे इन बच्चों से जब ईटीवी भारत ने बात को तो इन्होंने बताया कि आजकल उनके घर में खाने के लिए राशन नहीं है. जिसके कारण वे हर दिन गंगा में छलांग लगाकर सिक्के ढूंढते हैं. इन्हीं सिक्कों से उनका घर चलता है. इन बच्चों ने कहा लॉकडाउन के कारण सब कुछ बंद पड़ा हुआ है. जिसके कारण उनकी जिंदगी भी थम गई है.
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ये बच्चे बताते हैं कि आजकल दिन भर गंगा नदी में उतरकर इन्हें 100 से 150 रुपये मिल जाते हैं. जिससे इनके घर का घर खर्च आराम से चल जाता है. ये बताते हैं कि अगर लॉकडाउन न होता तो ये रकम बढ़कर काफी ज्यादा हो जाती है.
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वहीं, इस मामले पर गंगा सभा के अध्यक्ष प्रदीप झा का कहना है कि इन बच्चों का यह पारंपारिक काम है. ये सभी इसमें पूरी तरह से ट्रेंड हैं. उन्होंने बताया कि ये बच्चे आज से नहीं बल्कि काफी समय से गंगा में छलांग लगाकार पैसे ढूंढते हैं. प्रशासन भी समय-समय पर इन्हें यहां से हटाने का प्रयास करता रहता है, मगर वे बच्चे फिर से यहां आ जाते हैं.