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मां गंगा के धरती पर अवतरण की ये है रोचक कहानी, यहां अस्थि विसर्जन से मिलता है मोक्ष - धर्म

ब्रह्म कुंड वो पवित्र स्थान है जहां ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने तप किया था. मान्यता है कि  समुद्र मंथन के बाद जब देवताओं और दानवों के बीच अमृतपान को लेकर संघर्ष हुआ तो इस स्थान पर अमृत की बूंदे गिरी थीं.

मां गंगा के धरती पर अवतरण की ये है रोचक कहानी.
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Published : May 24, 2019, 8:11 AM IST

हरिद्वार: धर्मनगरी हरिद्वार वो जगह है जहां लोगों को धर्म और दर्शन से साक्षात्कार होते हैं. ये खूबियां ही धर्मनगरी को हिन्दू स्वावलंबियों के लिए खास बनाती है. जो अतीत से ही लोगों की गहरी आस्था का केन्द्र रहा है. हो भी क्यों नहीं ये नगरी भगवान शिव का ससुराल और मां उमा का मायका जो है. जहां बाबा बम बम भोले का संगीत लोगों को मंत्र मुग्ध कर देता है. माना जाता है कि मां गंगा में अस्थि विसर्जन करने से इंसान को जन्म मरण से मुक्ति मिल जाती है.

ब्रह्मकुंड में अस्थि विसर्जन करने दूर-दूर से आते हैं लोग.
आज हम बात कर रहे हैं धर्मनगरी के हरकी पैड़ी के ब्रह्म कुंड की. इस स्थान का खास महत्व है. पौराणिक मान्यता के अनुसार ब्रह्म कुंड वो पवित्र स्थान है जहां ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने तप किया था. मान्यता है कि समुद्र मंथन के बाद जब देवताओं और दानवों के बीच अमृतपान को लेकर संघर्ष हुआ तो इस स्थान पर अमृत की बूंदे गिरी थीं. ऐसा माना जाता है कि मृत्यु के बाद अगर मृत व्यक्ति की अस्थियों को ब्रह्म कुंड में विसर्जित किया जाए तो व्यक्ति सीधे बैकुंठ धाम पहुंचता है. जिसका वर्णन शास्त्रों में भी मिलता है. साथ ही कुंड के बारे में पुराणों में दूसरी कथा का भी उल्लेख मिलता है. वहीं एक अन्य मान्यता के अनुसार ऐसा माना जाता है कि राजा सगर के वंशज राज भगीरथ ने अपने पुरखों के उद्धार के लिए मां गंगा को धरती पर लाने के लिए बड़ी कठिन तपस्या की थी. राजा भगीरथ को ब्रह्मा जी से वरदान मिलने के बाद मां गंगा मृत्युलोक में आने को तैयार हो गयी. जिसके बाद मां गंगा भगवान शिव की जटाओं से होते हुए राजा भगीरथ के पीछे-पीछे उनके पुरखों के उद्धार के लिए चल पड़ी. जब मां गंगा हरिद्वार पहुंची तो सगर पौत्रों के भस्म अवशेष को स्पर्श करते ही उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो गयी. माना जाता है तब से ही ब्रह्म कुंड में अस्थि विसर्जन करने की परंपरा शुरू हुई. जिसका महत्व अतीत से अब तक बरकरार है.

हरिद्वार: धर्मनगरी हरिद्वार वो जगह है जहां लोगों को धर्म और दर्शन से साक्षात्कार होते हैं. ये खूबियां ही धर्मनगरी को हिन्दू स्वावलंबियों के लिए खास बनाती है. जो अतीत से ही लोगों की गहरी आस्था का केन्द्र रहा है. हो भी क्यों नहीं ये नगरी भगवान शिव का ससुराल और मां उमा का मायका जो है. जहां बाबा बम बम भोले का संगीत लोगों को मंत्र मुग्ध कर देता है. माना जाता है कि मां गंगा में अस्थि विसर्जन करने से इंसान को जन्म मरण से मुक्ति मिल जाती है.

ब्रह्मकुंड में अस्थि विसर्जन करने दूर-दूर से आते हैं लोग.
आज हम बात कर रहे हैं धर्मनगरी के हरकी पैड़ी के ब्रह्म कुंड की. इस स्थान का खास महत्व है. पौराणिक मान्यता के अनुसार ब्रह्म कुंड वो पवित्र स्थान है जहां ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने तप किया था. मान्यता है कि समुद्र मंथन के बाद जब देवताओं और दानवों के बीच अमृतपान को लेकर संघर्ष हुआ तो इस स्थान पर अमृत की बूंदे गिरी थीं. ऐसा माना जाता है कि मृत्यु के बाद अगर मृत व्यक्ति की अस्थियों को ब्रह्म कुंड में विसर्जित किया जाए तो व्यक्ति सीधे बैकुंठ धाम पहुंचता है. जिसका वर्णन शास्त्रों में भी मिलता है. साथ ही कुंड के बारे में पुराणों में दूसरी कथा का भी उल्लेख मिलता है. वहीं एक अन्य मान्यता के अनुसार ऐसा माना जाता है कि राजा सगर के वंशज राज भगीरथ ने अपने पुरखों के उद्धार के लिए मां गंगा को धरती पर लाने के लिए बड़ी कठिन तपस्या की थी. राजा भगीरथ को ब्रह्मा जी से वरदान मिलने के बाद मां गंगा मृत्युलोक में आने को तैयार हो गयी. जिसके बाद मां गंगा भगवान शिव की जटाओं से होते हुए राजा भगीरथ के पीछे-पीछे उनके पुरखों के उद्धार के लिए चल पड़ी. जब मां गंगा हरिद्वार पहुंची तो सगर पौत्रों के भस्म अवशेष को स्पर्श करते ही उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो गयी. माना जाता है तब से ही ब्रह्म कुंड में अस्थि विसर्जन करने की परंपरा शुरू हुई. जिसका महत्व अतीत से अब तक बरकरार है.
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मां गंगा की धरती पर अवतरण की ये है रोचक कहानी, यहां अस्थि विसर्जन से मिलता है मोक्ष

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आज हम बात कर रहे हैं धर्मनगरी के हरकी पैड़ी के ब्रह्म कुंड की. इस स्थान का खास महत्व है. पौराणिक मान्यता के अनुसार ब्रह्म कुंड वो पवित्र स्थान है जहां ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने तप किया था. मान्यता है कि  समुद्र मंथन के बाद जब देवताओं और दानवों के बीच अमृतपान को लेकर संघर्ष हुआ तो इस स्थान पर अमृत की बूंदे गिरी थीं. ऐसा माना जाता है कि मृत्यु के बाद अगर मृत व्यक्ति की अस्थियों को ब्रह्म कुंड में विसर्जित किया जाए तो व्यक्ति सीधे बैकुंठ धाम पहुंचता है. जिसका वर्णन शास्त्रों में भी मिलता है. साथ ही कुंड के बारे में पुराणों में दूसरी कथा का भी उल्लेख मिलता है. 

वहीं एक अन्य मान्यता के अनुसार ऐसा माना जाता है कि राजा सगर के वंशज राज भगीरथ ने अपने पुरखों के उद्धार के लिए मां गंगा को धरती पर लाने के लिए बड़ी कठिन तपस्या की थी.  राजा भगीरथ को ब्रह्मा जी से वरदान मिलने के बाद मां गंगा मृत्युलोक में आने को तैयार हो गयी. जिसके बाद मां गंगा भगवान शिव की जटाओं से होते हुए राजा भगीरथ के पीछे-पीछे उनके पुरखों के उद्धार के लिए चल पड़ी. जब मां गंगा हरिद्वार पहुंची तो  सगर पौत्रों के भस्म अवशेष को स्पर्श करते ही उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो गयी. माना जाता है तब से ही ब्रह्म कुंड में अस्थि विसर्जन करने की परंपरा शुरू हुई. जिसका महत्व अतीत से अब तक बरकरार है. 

 


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