हरिद्वार: धर्मनगरी हरिद्वार में जोरशोर से चल रही कुम्भ मेले की तैयारियों के बीच अखाड़ों ने भी अपनी-अपनी धर्मध्वजा की स्थापना की तैयारियां शुरू कर दी हैं. प्राचीन हिंदू संस्कृति के प्रतीक सभी 13 अखाड़ों के कुम्भ कार्यों की शुरुआत धर्मध्वजा के साथ ही होती है. सभी अखाड़ों की धर्मध्वजाओं की लंबाई और इनके धर्मचिह्न भी अलग-अलग होते हैं. इन्हीं धर्मध्वजों के नीचे सभी अखाड़ों के धार्मिक क्रियाकलाप सम्पन्न होते हैं.
कुम्भ मेले में धर्मध्वजाओं का विशेष महत्व होता है. अखाड़ों की धर्मध्वजा स्थल के चिन्हीकरण के साथ ही इन स्थलों के तेजी से सजाया संवारा जा रहा है. हालांकि, कोरोना के चलते ये कार्य भी प्रभावित हुए हैं. ऐसे में कुम्भ मेला प्रशासन जल्द ही सभी अखाड़ों के प्रतिनिधियों के साथ राजाजी पार्क की मोतीचूर रेंज के जंगलों में जाकर धर्म ध्वजा के धर्म दण्डों के चयन को जाएगा. संतों ने मेला प्रसाशन से जल्द से जल्द इस प्रक्रिया को पूरी करने की मांग की है.
बता दें, सन्यासी, वैरागी और निर्मल सम्प्रदाय के सभी 13 अखाड़ों में धर्म ध्वजा का विशेष महत्व होता है. कुंभ के दौरान अखाड़े अपने सभी धार्मिक कार्य इन्हीं धर्म ध्वजाओं के नीचे संपन्न करते हैं. धर्म ध्वजाओं से ही कुंभ क्षेत्र में अखाड़ों की पहचान होती है. शास्त्र और कुंभ परंपरा के अनुसार हर अखाड़े की धर्म ध्वजा की अलग-अलग लंबाई होती है. इन धर्म ध्वजाओं में दंड का विशेष महत्व होता है.
पढ़ें- जानिए क्यों खास है हरिद्वार का महाकुंभ और कैसा है इस बार का संयोग?
अलग-अलग धर्मध्वजा को कुंभ की भूमि में स्थापित करने के पीछे मान्यताएं भी हैं. कुंभ क्षेत्र में जाने के बाद सबसे पहले भूमि पूजन कर धर्मध्वजा को स्थापित किया जा जाता है. धर्मध्वजा के दंड में 52 जनेऊ की गाठें लगाई जाती हैं, जो 52 मणियों की प्रतीक मानी जाती है. अलग-अलग अखाड़े अपने-अपने अनुसार धर्मध्वजा लगाते हैं. धर्मध्वजा की परंपरा सनातन काल से चली आ रही है.