हरिद्वारः बहुचर्चित हरिद्वार कुंभ कोरोना टेस्ट फर्जीवाड़ा मामले की जांच में लगातार नए नए खुलासे हो रहे हैं. स्वास्थ्य विभाग की ओर से बनाई गई उच्च स्तरीय जांच कमेटी ने अपनी जांच में पाया कि कोराना टेस्टिंग के नाम पर लाखों रुपए का चूना लगाया गया है. अब इस खुलासे के बाद मामले में कुंभ मेला अधिकारी स्वास्थ्य और नोडल अधिकारी स्वास्थ्य समेत कई लोगों पर जल्द कार्रवाई अमल में लाई जा सकती है.
बता दें कि जिस समय हरिद्वार में महाकुंभ 2021 आयोजित हुआ था, ठीक उसके बाद में कोरोना की दूसरी लहर सामने आई थी. जिसमें सैकड़ों लोगों की जानें गई. ये भी आरोप लगे कि कुंभ से ही कोरोना की दूसरी लहर फैली. जबकि, हरिद्वार कुंभ आने वाले बाहरी श्रद्धालुओं से लेकर स्थानीय लोगों और पर्यटकों के लिए सरकार ने कोरोना निगेटिव रिपोर्ट अनिवार्य की थी. बकायदा इसके लिए सरकार की ओर से व्यापक स्तर पर तैयारी की थी. बॉर्डर से लेकर शहर के अंदर तक जगह जगह कोरोना जांच की व्यवस्था की गई थी. जिस पर लाखों रुपए खर्च किए गए.
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इस दौरान खुलासा हुआ था कि लोगों की टेस्टिंग के नाम पर जमकर फर्जीवाड़ा किया गया है. इतना ही नहीं उन लोगों के पास भी उनकी जांच रिपोर्ट मोबाइल पर पहुंच रही थी, जो कभी हरिद्वार आए ही नहीं थे. इस खुलासे के बाद शासन प्रशासन में हड़कंप मच गया था. शासन की ओर से जारी किए गए कड़े आदेश के बाद स्वास्थ्य विभाग ने इस मामले की जांच शुरू की थी. शुरुआती जांच में गड़बड़ी पाए जाने पर तत्कालीन मेला स्वास्थ्य अधिकारी और कई अन्य लोगों को निलंबित कर दिया गया था.
अब सूत्रों के हवाले से खबर आई है कि तत्कालीन कुंभ मेलाधिकारी स्वास्थ्य डॉ एएस सेंगर और कुंभ नोडल स्वास्थ्य अधिकारी डॉ एनके त्यागी पर जल्द ही शासन की गाज गिर सकती है. हरिद्वार महाकुंभ के दौरान हुए कोविड टेस्टिंग फर्जीवाड़े की जांच रिपोर्ट में लैब चयन की टेंडर प्रक्रिया को गलत पाया गया है. इस मामले में अब तत्कालीन मेला अधिकारी स्वास्थ्य की मुश्किलें बढ़ना तय माना जा रहा है. जिसके बाद यह मामला फिर से सुर्खियों में आ गया है.
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ऐसे आया था सच सामने: दरअसल, पंजाब के निवासी को फोन गया था कि उन्होंने हरिद्वार में जो कोरोना टेस्ट कराया था, उसकी रिपोर्ट निगेटिव आई है, लेकिन हैरानी की बात ये थी कि वो व्यक्ति कुंभ के दौरान न तो हरिद्वार आया था न ही उसने कोई टेस्ट कराया था. ऐसे में उसने मामले की शिकायत पंजाब के स्थानीय प्रशासन से की, लेकिन स्थानीय प्रशासन ने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया.
इसके बाद उस व्यक्ति ने आईसीएमआर (ICMR) को मामले की शिकायत की. आईसीएमआर ने मामले का संज्ञान लेते हुए उत्तराखंड के स्वास्थ्य सचिव से जवाब मांगा. उत्तराखंड के स्वास्थ्य सचिव ने मामले हरिद्वार जिलाधिकारी को मामले की जांच के आदेश दिए. प्राथमिक जांच में करीब एक लाख कोरोना टेस्ट संदेह के घेरे में आए.
जांच में सामने आया कि एक ही फोन नंबर पर कोरोना की सैकड़ों जांच की गई हैं. वहीं, कई टेस्टों में एक ही आधार नंबर का इस्तेमाल किया है. होम सैंपल में भी फर्जीवाड़ा किया है. एक ही घर में 100 से 200 कोरोना टेस्ट दिखाए गए हैं, जिस पर यकीन करना मुश्किल है. इस मामले में दिल्ली मैक्स कॉरपोरेट सर्विस और दो अधिकृत लैब दिल्ली की लाल चंदानी एवं हिसार की नलवा लैब पर मुकदमा दर्ज किया गया.
मैक्स कॉर्पोरेट सोसाइटी, नलबा लैब और चंदानी लैब पर केस हुआ था: मुख्य चिकित्सा अधिकारी की तहरीर पर नगर कोतवाली में मैक्स कॉर्पोरेट सोसायटी के साथ नलवा लैब और डॉ. लाल चंदानी लैब सेंट्रल दिल्ली के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था. तत्कालीन एसएसपी सेंथिल अबूदई कृष्णराज एस ने इस मामले की जांच के लिए एसआईटी टीम का गठन किया था.
डेलफिशा लैब का संचालक आशीष वशिष्ठ हुआ था गिरफ्तार: एसआईटी ने भिवानी की डेलफिशा लैब के संचालक आशीष वशिष्ठ को गिरफ्तार किया था. उससे पूछताछ के बाद मैक्स कॉर्पोरेट सर्विस के पार्टनर शरद पंत और मल्लिका पंत के साथ हिसार की नलवा लैब के संचालक डॉ. नवतेज नलवा के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तारी की कोशिशें शुरू कर दी गई थीं. तीनों फरार चल रहे थे.
आरोपी शरत पंत और मल्लिका पंत गिरफ्तारः कोरोना टेस्टिंग घोटाले (Haridwar Fake Covid Test) में फरार चल रहे दोनों मुख्य आरोपी शरत पंत और उसकी पत्नी मल्लिका पंत के नोएडा स्थित आवास पर एसआईटी लागातर नजर रखे हुए थी. मुखबिर की सूचना पर 7 नवंबर 2021 को देर रात दोनों ही अभियुक्तों को उनके दिल्ली स्थित आवास से गिरफ्तार किया गया. वहीं, मामला जब हाईकोर्ट पहुंचा तो कोरोना टेस्टिंग में हुए फर्जीवाड़े के मामले में आरोपियों की तरफ से दायर जमानत याचिका पर सुनवाई हुई.
नैनीताल हाईकोर्ट ने बताया गंभीर अपराधः इस मामले में हाइकोर्ट ने फर्जीवाड़े में लिप्त मैक्स कॉरपोरेट सर्विसेज के सर्विस पार्टनर और आरोपी शरत पंत व मलिका पंत और नलवा लैब के आशीष वशिष्ठ को कोई राहत नहीं दी. बीती 25 मार्च 2022 को हुई सुनवाई में न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की एकलपीठ ने तीनों अभियुक्तों की जमानत प्रार्थना पत्र को निरस्त कर दिया. साथ ही कोर्ट कहा कि इन्होंने आपदा अधिनियम 2005 के तहत गंभीर अपराध किया है.
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एक किट से हुई 700 से अधिक सैंपलिंगः ऐसा भी सामने आया कि एक ही एंटीजन टेस्ट किट से 700 सैंपल्स की टेस्टिंग की गई थी. इसके साथ ही टेस्टिंग लिस्ट में सैकड़ों व्यक्तियों के नाम पर एक ही फोन नंबर अंकित था. स्वास्थ्य विभाग की जांच में दूसरे लैब का भी यही हाल सामने आता है. जांच के दौरान लैब में लोगों के नाम-पते और मोबाइल नंबर फर्जी पाए गए हैं. इसके बाद यह मामला साफ हो गया कि कुंभ मेले में फर्जी तरीके से कोविड-19 टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव बनाकर आंखों में धूल झोंकने का काम किया गया है.
करोड़ों रुपए का घोटालाः कुंभ के दौरान जो प्रदेश में दरें लागू थीं, उसके अनुसार प्रदेश में एंटीजन टेस्ट के लिए निजी लैब को 300 रुपए दिए जाते थे. वहीं, आरटी-पीसीआर टेस्ट के लिए तीन श्रेणियां बनाई गई थी. सरकारी सेटअप से लिए गए सैंपल सिर्फ जांच के लिए निजी लैब को देने पर प्रति सैंपल 400 रुपए का भुगतान करना होता है. निजी लैब खुद कोविड जांच के लिए नमूना लेती है तो उस सूरत में उसे 700 रुपए का भुगतान होता है. वहीं, घर जाकर सैंपल लेने पर 900 रुपए का भुगतान होता है.
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इन दरों में समय-समय पर बदलाव किया जाता है. निजी लैब को 30 प्रतिशत भुगतान पहले ही किया जा चुका था. बता दें कि नैनीताल हाईकोर्ट ने कुंभ के दौरान 1 अप्रैल से 30 अप्रैल तक 50 हजार टेस्ट रोजाना करने के निर्देश दिए थे. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए आईसीएमआर (ICMR) की ओर से अधिकृत 9 एजेंसियों और 22 निजी लैब ने चार लाख कोविड टेस्ट किए थे. इनमें से ज्यादातर एंटीजन टेस्ट थे. इसके अलावा सरकारी लैब में भी टेस्ट कराए गए थे.