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अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस: आखिर क्यों 10 दिसंबर को ही मनाते हैं, 804 साल पुराना है इतिहास

आज अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस है. लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि मानाधिकार दिवस 10 दिसंबर को ही क्यों मनाया जाता है. इसके पीछे की कहानी शुरू होती है 1215 में ब्रिटेन के तत्कालीन राजा जोन से.

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अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस
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Published : Dec 10, 2019, 4:31 AM IST

Updated : Dec 10, 2019, 1:43 PM IST

देहरादून: हर इंसान को जिंदगी अपने अनुसार जीने, आजादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार ही मानवाधिकार है. अपने देश की बात करें तो संविधान में मानवाधिकारों को उच्च स्थान देते हुए उसे मौलिक अधिकारों के खंड में न सिर्फ शामिल किया गया, बल्कि मानव अधिकारों की रक्षा की जिम्मेदारी न्यायपालिका को सौंपी गई. इससे पता चलता है कि मानवाधिकार हमारे लिए कितना ज्यादा जरूरी है. ऐसे में अब ये भी जानना जरूरी हो जाता है कि 10 दिसम्बर को ही क्यों मनाया जाता है मानव अधिकार दिवस.

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दुनिया भर के इंसानी अधिकारों को पहचान देने और इंसानी अधिकारों को अस्तित्व में लाने के लिए इंसानों के अधिकारों को बरकार रखने के लिए हर साल 10 दिसंबर को अंतरराष्‍ट्रीय मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है.

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साल 1993 में लागू हुआ था मानवाधिकार कानून
साल 1948 में संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार घोषणा पत्र पर भारत ने हस्ताक्षर किए थे. इसके बाद देश में 28 सितंबर 1993 से मानवाधिकार कानून को अमल में लाया गया. 12 अक्‍टूबर 1993 में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन किया. मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम-1993 लागू किया गया. ये कानून प्रदेश के किसी भी सरकारी और गैर सरकारी संस्था के अधिकारियों के उन कार्यों की समीक्षा करता है, जो मानवधिकारों के हनन के दायरे में आता है.

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1215 में शुरू हुआ था मानवाधिकार के लिए संघर्ष
ऐतिहासिक पहलुओं पर गौर करें तो मानव अधिकार के संघर्ष का प्रमाण 15 जून 1215 में ब्रिटेन के सम्राट जोन के कार्यकाल के दौरान मिलता है. जो आज भी विश्वभर में मैग्ना कार्टा के नाम से जाना जाता है. साल 1689 में ब्रिटेन में हुई क्रांति ने मानवाधिकार की अवधारणा को बढ़ाए जाने पर बल दिया. ब्रिटेन में हुई क्रांति के बाद "बिल ऑफ राइट्स" के तहत व्यक्ति के मौलिक स्वतंत्रताओं को मान्यता दी गई थी. बावजूद इसके अधिकारों का हनन होने के चलते अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों को विकसित होने के लिए आधार भूमि तैयार की गई.

10 दिसंबर 1948 को 'संयुक्त राष्ट्र असेंबली' ने मानवधिकार से जुड़े प्रस्ताव को पारित कर "मानव अधिकारों" की विश्व घोषणा की. साल 1950 से महासभा ने सभी देशों को इसकी शुरुआत के लिए आमंत्रित किया था. भारतीय संविधान में भी मानवाधिकार को विस्तृत रूप में जोड़ा गया है. अनुच्छेद 1 से अनुच्छेद 30 तक में मानवाधिकारों का जिक्र मिलता है.

देहरादून: हर इंसान को जिंदगी अपने अनुसार जीने, आजादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार ही मानवाधिकार है. अपने देश की बात करें तो संविधान में मानवाधिकारों को उच्च स्थान देते हुए उसे मौलिक अधिकारों के खंड में न सिर्फ शामिल किया गया, बल्कि मानव अधिकारों की रक्षा की जिम्मेदारी न्यायपालिका को सौंपी गई. इससे पता चलता है कि मानवाधिकार हमारे लिए कितना ज्यादा जरूरी है. ऐसे में अब ये भी जानना जरूरी हो जाता है कि 10 दिसम्बर को ही क्यों मनाया जाता है मानव अधिकार दिवस.

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दुनिया भर के इंसानी अधिकारों को पहचान देने और इंसानी अधिकारों को अस्तित्व में लाने के लिए इंसानों के अधिकारों को बरकार रखने के लिए हर साल 10 दिसंबर को अंतरराष्‍ट्रीय मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है.

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साल 1993 में लागू हुआ था मानवाधिकार कानून
साल 1948 में संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार घोषणा पत्र पर भारत ने हस्ताक्षर किए थे. इसके बाद देश में 28 सितंबर 1993 से मानवाधिकार कानून को अमल में लाया गया. 12 अक्‍टूबर 1993 में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन किया. मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम-1993 लागू किया गया. ये कानून प्रदेश के किसी भी सरकारी और गैर सरकारी संस्था के अधिकारियों के उन कार्यों की समीक्षा करता है, जो मानवधिकारों के हनन के दायरे में आता है.

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1215 में शुरू हुआ था मानवाधिकार के लिए संघर्ष
ऐतिहासिक पहलुओं पर गौर करें तो मानव अधिकार के संघर्ष का प्रमाण 15 जून 1215 में ब्रिटेन के सम्राट जोन के कार्यकाल के दौरान मिलता है. जो आज भी विश्वभर में मैग्ना कार्टा के नाम से जाना जाता है. साल 1689 में ब्रिटेन में हुई क्रांति ने मानवाधिकार की अवधारणा को बढ़ाए जाने पर बल दिया. ब्रिटेन में हुई क्रांति के बाद "बिल ऑफ राइट्स" के तहत व्यक्ति के मौलिक स्वतंत्रताओं को मान्यता दी गई थी. बावजूद इसके अधिकारों का हनन होने के चलते अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों को विकसित होने के लिए आधार भूमि तैयार की गई.

10 दिसंबर 1948 को 'संयुक्त राष्ट्र असेंबली' ने मानवधिकार से जुड़े प्रस्ताव को पारित कर "मानव अधिकारों" की विश्व घोषणा की. साल 1950 से महासभा ने सभी देशों को इसकी शुरुआत के लिए आमंत्रित किया था. भारतीय संविधान में भी मानवाधिकार को विस्तृत रूप में जोड़ा गया है. अनुच्छेद 1 से अनुच्छेद 30 तक में मानवाधिकारों का जिक्र मिलता है.

Intro:देश में रहने वाले हर इंसान को जिंदगी अपने अनुसार जीने, आजादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार ही मानवाधिकार कहलाता है। और भारतीय संविधान में मानवाधिकारों को उच्च स्थान देते हुए उसे मौलिक अधिकारों के खंड में न सिर्फ शामिल किया गया, बल्कि मानव अधिकारों की रक्षा की जिम्मेदारी न्यायपालिका को सौपा गया है। जो मानव से जुड़े अधिकारों को, तोड़ने वाले को सजा भी देती है। आखिर क्या है मानव अधिकार, और 10 दिसम्बर को ही क्यों मनाया जाता है मानव अधिकार दिवस, और क्या है मानव अधिकार से जुड़े हुए, भारतीय संविधान में अनुछेद? देखिये ईटीवी भारत की इस स्पेशल रिपोर्ट में........... 


Body:दुनिया भर के इंसानी अधिकारों को पहचान देने और इंसानी अधिकारों को अस्तित्व में लाने के लिए, इंसानो के अधिकारों को बरकार रखने के लिए, हर साल 10 दिसंबर को अंतरराष्‍ट्रीय मानवाधिकार दिवस (International Human Rights Day) मनाया जाता है। यही नहीं पूरी मानव अधिकार दिवस, दुनिया में मानवता के खिलाफ हो रहे जुल्म को रोकने और उसके खिलाफ लड़ाई को गति प्रदान करने में यह दिवस एक महत्त्व पूर्ण भूमिका निभाता है। 


..........भारत में साल 1993 से मानवाधिकार कानून हुआ लागू............. 


साल 1948 में संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार घोषणा पत्र पर भारत ने हस्ताक्षर किए थे। इसके बाद देश में 28 सितंबर 1993 से मानवाधिकार कानून को अमल में लाया गया। और 12 अक्‍टूबर 1993 में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन किया। और मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम- 1993 लागू किया गया। देश के मानव अधिकार का मुख्य कार्यालय दिल्ली में बनाया गया। इसके साथ देश के कई प्रदेशो में भी मानव अधिकार के कार्यालय स्थापित किए गए है। जो प्रदेश के किसी सरकारी और गैर सरकारी, अधिकारियो द्वारा किए गए उन कार्यों की समीक्षा करता है, जो मामला मानवधिकारों के हनन के दायरे में आता है।   


.........साल 1215 में शुरू हुआ था मानवाधिकार का संघर्ष...............  

ऐतिहासिक पहलुओं पर गौर करे तो मानव अधिकार के संघर्ष का प्रमाण 15 जून 1215 में ब्रिटेन के सम्राट जोन काअपनी समिति को मानव अधिकारों की मान्यता देने वाले घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर से मिलता है, जो आज भी विश्व में मैग्ना कार्टा के नाम से जाना जाता है। इसके बाद साल 1689 में ब्रिटेन में हुई क्रांति ने मानवाधिकार की अवधारणा को बढ़ाये जाने का बल दिया। और ब्रिटेन में हुई क्रांति के बाद  "बिल ऑफ राइट्स" के तहत व्यक्ति की मौलिक स्वतंत्रताओं को मान्यता दी गई थी। बावजूद इसके अधिकारों का हनन होने के चलते अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों को विकसित होने के लिए आधार भूमि तैयार की। और 10 दिसंबर 1948 को 'संयुक्त राष्ट्र असेंबली' ने मानवधिकार से जुड़े प्रस्ताव को पारित कर “मानव अधिकारों” की विश्व घोषणा की थी। और साल 1950 से महासभा ने सभी देशों को इसकी शुरुआत के लिए आमंत्रित किया था। जिसके बाद से हर साल 10 दिसम्बर को अंतरराष्‍ट्रीय मानवाधिकार दिवस मनाया जाता हैं। 


...........मानव अधिकार से जुड़े भारतीय संविधान में अनुच्छेद................  


अनुच्छेद 1- सभी मनुष्यों को जन्मजात स्वतंत्रता और समानता का अधिकार प्राप्त है। 

अनुच्छेद 2- सभी इंसानो को आजादी का अधिकार है, जाति, वर्ण, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीतिक या अन्य विचार-प्रणाली, किसी देश या समाज विशेष में जन्म, संपत्ति या किसी प्रकार की अन्य मर्यादा आदि के कारण भेदभाव का विचार ना करने का वर्णन है। 

अनुच्छेद 3- प्रत्येक व्यक्ति को जीवन, स्वाधीनता और वैयक्तिक सुरक्षा का अधिकार है।

अनुच्छेद 4- किसी भी व्यक्ति को गुलाम और दास बनाकर नहीं रख सकते है। 

अनुच्छेद 5 - किसी भी व्यक्ति को शारीरिक यातना न दी जाएगी और न किसी के भी प्रति निर्दय, अमानुषिक या अपमानजनक व्यबहार होगा।

अनुच्छेद 6 - हर किसी को हर जगह कानून की निगाह में व्यक्ति के रूप में स्वीकृति-प्राप्ति का अधिकार है।

अनुच्छेद 7- कानून की निगाह में सभी इंसान समान हैं और सभी को बिना किसी भेदभाव के समान कानूनी सुरक्षा के अधिकारी हैं। 

अनुच्छेद 8- सभी को संविधान या कानून द्वारा प्राप्त बुनियादी अधिकारों का अतिक्रमण करने वाले कार्यों के विरुद्ध समुचित राष्ट्रीय अदालतों की कारगर सहायता पाने का हक है।

अनुच्छेद 9- किसी व्यक्ति को मनमाने ढंग से गिरफ्तार, नजरबंद, या देश-निष्कसित नहीं किया जा सकता है। 

अनुच्छेद 10- सभी को पूर्ण्तः समान रूप से हक है कि उनके अधिकारों और कर्तव्यों के निश्चय करने के मामले में और उन पर आरोपित फौजदारी के किसी मामले में उनकी सुनवाई न्यायोचित और सार्वजनिक रूप से निरपेक्ष एवं निष्पक्ष अदालत द्वारा हो।

अनुच्छेद 11- (a) प्रत्येक व्यक्ति, जिस पर दंडनीय अपरोध का आरोप किया गया हो, तब तक निरपराध माना जाएगा, जब तक उसे ऐसी खुली अदालत में, जहां उसे अपनी सफाई की सभी आवश्यक सुविधाएं प्राप्त हों, कानून के अनुसार अपराधी न सिद्ध कर दिया जाए। (b) कोई भी व्यक्ति किसी भी ऐसे कृत या अकृत (अपराध) के कारण उस दंडनीय अपराध का अपराधी न माना जाएगा, जिसे तत्कालीन प्रचलित राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार दंडनीय अपराध न माना जाए और न अससे अधिक भारी दंड दिया जा सकेगा, जो उस समय दिया जाता जिस समय वह दंडनीय अपराध किया गया था।

अनुच्छेद 12- किसी व्यक्ति की एकांतता, परिवार, घर, या पत्रव्यवहार के प्रति कोई मनमाना हस्तक्षेप न किया जाएगा, न किसी के सम्मान और ख्याति पर कोई आक्षेप हो सकेगा। ऐसे हस्तक्षेप या आक्षेपों के विरुद्ध प्रत्येक को कनूनी रक्षा का अधिकार प्राप्त है।

अनुच्छेद 13- (a) प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक देश की सीमाओं के अंदर स्वतंत्रतापूर्वक आने, जाने और बसने का अधिकार है। (b) प्रत्येक व्यक्ति को अपने या पराए किसी भी देश को छोड़ने और अपने देश वापस आने का अधिकार है।

अनुच्छेद 14- (a) प्रत्येक व्यक्ति को स्ताए जाने पर दूसरे देशों में शरण लेने और रहने का अधिकार है। (b) इस अधिकार का लाभ ऐसे मामलों में नहीं मिलेगा जो वास्तव में गैर-राजनीतिक अपराधों से संबंधित हैं, या जो संयुक्त राष्ट्रों के उद्देश्यों और सिद्धांतों के विरुद्ध कार्य हैं।

अनुच्छेद 15- (a) प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी राष्ट्र-विशेष को नागरिकता का अधिकार है। (b) किसी को भी मनमाने ढंग से अपने राष्ट्र की नागरिकता से वंचित न किया जाएगा या नागरिकता का परिवर्तन करने से मना न किया जाएगा।

अनुच्छेद 16- (a) बालिग स्त्री-पुरुषों को बिना किसी जाति, राष्ट्रीयता या दर्म की रुकावटों के आपस में विवाह करने और परिवार स्थापन करने का अधिकार है। उन्हें विवाह के विषय में वैवाहिक जीवन में, तथा विवाह विच्छेद के बारे में समान अधिकार है। (b) विवाह का इरादा रखने वाले स्त्री-पुरुषों की पूर्ण और स्वतंत्र सहमति पर ही विवाह हो सकेगा। (c) परिवार समाज का स्वाभाविक और बुनियादी सामूहिक इकाई है और उसे समाज तथा राज्य द्वारा संरक्षण पाने का अधिकार है।

अनुच्छेद 17- (a) प्रत्येक व्यक्ति को अकेले और दूसरों के साथ मिलकर संपत्ति रखने का अधिकार है। (b) किसी को भी मनमाने ढंग से अपनी संपत्ति से वंचित न किया जाएगा।

अनुच्छेद 18- सभी को विचार, अंतरात्मा और धर्म की आजादी का अधिकार है। इस अधिकार के अंतर्गत अपना धर्म या विश्वास बदलने और अकेले या दूसरों के साथ मिलकर तथा सार्वजनिक रूप में अथवा निजी तौर पर अपने धर्म या विश्वास को शिक्षा, क्रिया, उपसाना, तथा व्यवहार के द्वारा प्रकट करने की स्वतंत्रता है।

अनुच्छेद 19- प्रत्येक व्यक्ति को विचार और उसकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। इसके अंतर्गत बिना हस्तक्षेप के कोई राय रखना और किसी भी माध्यम के जरिए से तथा सीमाओं की परवाह न करके किसी की सूचना और धारणा का अन्वेषण, ग्रहण तथा प्रदान सम्मिलित है।

अनुच्छेद 20- (a) प्रत्येक व्यक्ति को शांति पूर्ण सभा करने या समित्ति बनाने की स्वतंत्रता का अधिकार है। (b) किसी को भी किसी संस्था का सदस्य बनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

अनुच्छेद 21- (a) प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश के शासन में प्रत्यक्ष रूप से या स्वतंत्र रूप से चुने गए प्रतिनिधिओं के जरिए हिस्सा लेन का अधिकार है। (b) प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश की सरकारी नौकरियों को प्राप्त करने का समान अधिकार है। (c) सरकार की सत्ता का आधार जनता की इच्छा होगी। इस इच्छा का प्रकटन समय-समय पर और असली चुनावों द्वारा होगा। ये चुनावों सार्वभौम और समान मताधिकार द्वारा होंगे और गुप्त मतदान द्वारा या किसी अन्य समान स्वतंत्र मतदान पद्धति से कराए जाएंगे।

अनुच्छेद 22- समाज के एक सदस्य के रूप में प्रत्येक व्यक्ति को सामाजिक सुरक्षा का अधिकार है और प्रत्येक व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व के उस स्वतंत्र विकास तथा गौरव के लिए, जो राष्ट्रीय प्रयत्न या अंतर्राष्ट्रीय सहयोग तथा प्रत्येक राज्य के संगठन एवं साधनों के अनुकूल हो, अनिवार्यतः आवश्यक आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की प्राप्ति का हक है।

अनुच्छेद 23- (a) प्रत्येक व्यक्ति को काम करने, इच्छानुसार रोजगार के चुनाव, काम की उचित और सुविधाजनक परिस्थितियों को प्राप्त करने और बेगारी से संरक्षण पाने का हक है। (b) प्रत्येक व्यक्ति को समान कार्य के लिए बिना किसी भेदभव के समान मजदूरी पाने का अधिकार है। (c) प्रत्येक व्यक्ति को जो काम करता है, अधिकार है कि वह इतनी उचित और अनुकूल मजदूरी पाए, जिससे वह अपने लिए और अपने परिवार के लिए ऐसी आजीविका का प्रबंध कर सके, जो मानवीय गौरव के योग्य हो तथा आवश्यकता होने पर उसकी पूर्ति अन्य प्रकार के सामाजिक संरक्षणों द्वारा हो सके। (d) प्रत्येक व्यक्ति को अपने हितों की रक्षा के लिए श्रमजीवी संघ बनाने और उनमें भाग लेने का अधिकार है।

अनुच्छेद 24- प्रत्येक ब्यक्ति को विश्राम और अवकाश का अधिकार है। इसके अंतर्गत काम के घंटों की उचित हदबंदी और समय-समय पर मजदूरी सहित छुट्टियां सम्मिलित है।

अनुच्छेद 25- (a) प्रत्येक व्यक्ति को ऐसे जीवनस्तर को प्राप्त करने का अधिकार है जो उसे और उसके परिवार के स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिए पर्याप्त हो। इसके अंतर्गत खाना, कपड़ा, मकान, चिकित्सा-संबंधी सुविधाएं और आवश्यक सामाजिक सेवाएं सम्मिलित है। सभी को बेकारी, बीमारी, असमर्था, वैधव्य, बुढ़ापे या अन्य किसी ऐसी परिस्थिति में आजीविका का साधन न होने पर जो उसके काबू के बाहर हो, सुरक्षा का अधिकार प्राप्त है। (b) जच्चा और बच्चा को खास सहायता और सुविधा का हक है। प्रत्येक बच्चे को चाहे वह विवाहिता माता से जन्मा हो या अविवाहिता से, समान सामाजिक संरक्षण प्राप्त है।

अनुच्छेद 26- (a)प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा का अधिकार है। शिक्षा कम से कम प्रारंभिक और बुनियादी अवस्थाओं में निःशुल्क होगी। प्रारंभिक शिक्षा अनिवार्य होगी। टेक्निकल, यांत्रिक और पेशों-संबंधी शिक्षा साधारण रूप से प्राप्त होगी और उच्चतर शिक्षा सभी को योग्यता के आधार पर समान रूप से उपलब्ध होगी। (b) शिक्षा का उद्देश्य होगा मानव व्यक्तित्व का पूर्ण विकास और मानव अधिकारों तथा बुनियादी स्वतंत्रताओं के प्रति सम्मान की पुष्टि। शिक्षा द्वारा राष्ट्रों, जातियों, अथवा धार्मिक समूहों के बीच आपसी सद्भावना, सहिष्णुता और मैत्री का विकास होगा और शांति बनाए रखने के लिए संयुक्त राष्ट्रों के प्रयत्नों को आगे बढ़ाया जाएगा। (c) माता-पिता को सबसे पहले इस बात का अधिकार है कि वह चुनाव कर सकें कि किस किस्म की शिक्षा उनके बच्चों को दी जाएगी।

अनुच्छेद 27- (a) प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्रता-पूर्वक समाज के सांस्कृतिक जीवन में हिस्सा लेने, कलाओं का आनंद लेने, तथा वैज्ञानिक उन्नति और उसकी सुविशाओं में भाग लेने का हक है। (b) प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी ऐसी वैज्ञानिक साहित्यिक या कलात्मक कृति से उत्पन्न नैतिक और आर्थिक हितों की रक्षा का अधिकार है जिसका रचयिता वह स्वयं है।

अनुच्छेद 28- प्रत्येक व्यक्ति को ऐसी सामाजिक और अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की प्राप्ति का अधिकार है जिसमें उस घोष्णा में उल्लिखित अधिकारों और स्वतंत्रताओं का पूर्णतः प्राप्त किया जा सके।

अनुच्छेद 29- (a) प्रत्येक व्यक्ति का उसी समाज प्रति कर्तव्य है जिसमें रहकर उसके व्यक्तित्व का स्वतंत्र और पूर्ण विकास संभव हो। (b) अपने अधिकारों और स्वतंत्रताओं का उपयोग करते हुए प्रत्येक व्यक्ति केवल ऐसी ही सीमाओं द्वारा बंध होगा, जो कानून द्वारा निश्चित की जाएंगी और जिनका एकमात्र उद्देश्य दूसरों के अधिकारों और स्वतंत्रताओं के लिए आदर और समुचित स्वीकृति की प्राप्ति होगा तथा जिनकी आवश्यकता एक प्रजातंत्रात्मक समाज में नैतिकता, सार्वजनिक व्यवस्था और समान्य कल्याण की उचित आवश्यकताओं को पूरा करना होगा। (c) इन अधिकारों और स्वतंत्रताओं का उपयोग किसी प्रकार से भी संयुक्त राष्ट्रों के सिद्धांतों और उद्देश्यों के विरुद्ध नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद 30- इस घोषण में उल्लिखित किसी भी बात का यह अर्थ नहीं लगाना चाहिए जिससे यह प्रतीत हो कि किसी भी राज्य, समूह या ब्यक्ति को किसी ऐसे प्रयत्न में संलग्न होने या ऐसा कार्य करने का अधिकार है, जिसका उद्देश्य यहां बताए गए अधिकारों और स्वतंत्रताओं में से किसी का भी विनाश करना हो।




Conclusion:
Last Updated : Dec 10, 2019, 1:43 PM IST
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