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विस्थापन की बाट जोह रहे सूबे के 395 गांव, आश्वासनों से आजीज आ चुके हैं ग्रामीण

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Published : Jul 11, 2019, 3:56 PM IST

मानसून सीजन शुरू होते ही उत्तराखंड के सैकड़ों गांवों को विस्थापित करने का मामला एक बार फिर से चर्चाओं में है. दरअसल, प्रदेश में बसे तमाम ऐसे गांव हैं जो खतरे की जद में हैं और मानसून सीजन की दस्तक के साथ ही एक बार फिर विस्थापन के मामले को हवा दी है.  दरअसल, प्रदेश भर के 12 जिलों में 395 ऐसे गांव हैं जिन्हें विस्थापित किया जाना है.

प्रदेश के 395 गांव विस्थापन की बाट जोह रहे.

देहरादून: प्रदेश के कई गांव ऐसे हैं जो विस्थापन की बाट जोह रहे हैं. प्रदेश में हर साल भू-स्खलन और अन्य आपदा से ऐसे गांवों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. वहीं इन गांवों को सरकारी तंत्र विस्थापित करने के दावे तो खूब करता है, लेकिन कई साल बीत जाने के बाद भी उन्हें विस्थापित नहीं किया गया है. जिससे लोग अपने हाल पर जीने को मजबूर हैं.

प्रदेश के 395 गांव विस्थापन की बाट जोह रहे.

गौर हो कि मानसून सीजन शुरू होते ही उत्तराखंड के सैकड़ों गांवों को विस्थापित करने का मामला एक बार फिर से चर्चाओं में आ गया है. दरअसल, प्रदेश में कई ऐसे गांव हैं जो खतरे की जद में हैं और मानसून की दस्तक के साथ ही एक बार फिर विस्थापन के मामले को हवा दी है. दरअसल, प्रदेश भर के 12 जिलों में 395 ऐसे गांव हैं जिन्हें विस्थापित किया जाना है. सरकार द्वारा विस्थापन का आश्वासन तो दे दिया गया, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई कार्य नहीं किया गया. इन गांवों के लोग बारिश शुरू होते ही दहशत के साए में जीने को मजबूर हैं.

वहीं मामले की गंभीरता को देखते हुए मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने बताया कि कुछ ग्रामीणों को विस्थापित करने की कवायद चल रही है, जहां खतरा बना हुआ है. उन्होंने बताया कि ऐसे गावों की मैपिंग की गयी है और गांव की वैकल्पिक व्यवस्था के साथ ही ग्रामीणों की सहमति से कुछ गांवों का विस्थापन भी हुआ है. उन गांवों के लिए रोड मैप तैयार किया जा रहा है. उत्तराखंड प्रदेश के 13 जिलों में से 12 जिले ऐसे है जहां के कई गांव खतरे की जद में हैं.

पढ़ें-चैंपियन पर एक्शन के लिए आखिर दिल्ली का मुंह क्यों ताकता रहा बीजेपी प्रदेश संगठन?

आपदा विभाग के आकड़ों की मानें तो जिला हरिद्वार में एक भी गांव ऐसा नहीं है जो खतरे की जद में है. पिथौरागढ़ में सबसे ज्यादा 129 गांव खतरे की जद में हैं. बावजूद इस जिले के सिर्फ 1 गांव को ही विस्थापित किया गया है. साथ ही अगर आकड़ों पर गौर करें तो सबसे ज्यादा पहाड़ी क्षेत्रों में बसे गांव हैं, जो खतरे की जद में हैं. वहीं मैदानी क्षेत्रों में बहुत कम गांव ऐसे है, जिन्हें विस्थापित करना है.


प्रदेश के इतने गांवों का होना है विस्थापन

  • जिला उधमसिंह नगर के 01 गांव का विस्थापन होना है.
  • जिला देहरादून के 02 गावों का विस्थापन होना है.
  • जिला नैनीताल के 06 गांवों का विस्थापन होना है.
  • जिला अल्मोड़ा के 09 गांवों का विस्थापन होना है.
  • जिला चंपावत के 10 गांवों का विस्थापन होना है.
  • जिला रुद्रप्रयाग के 14 गांवों का विस्थापन होना है. लेकिन अभी तक 6 गांवो यानी 60 परिवारों को विस्थापित किया गया है.
  • जिला पौड़ी गढ़वाल के 26 गांवों का विस्थापन होना है.
  • जिला टिहरी गढ़वाल मे भी 33 गांवों का विस्थापन होने था. लेकिन अभी तक मात्र 4 गांव यानी 311 परिवारों का विस्थापन हो पाया है.
  • जिला बागेश्वर के 42 गांव ऐसे है जो खतरे के जद में है. बावजूद इसके भी अभी तक 4 गांव यानी 46 परिवारों का विस्थापन हो पाया है.
  • जिला चमोली के 61 गांवों का विस्थापन होना है, जिसमें से सिर्फ 8 गांव यानी 187 परिवारों का विस्थापन हो पाया है.
  • जिला उत्तरकाशी के 62 गांवों का विस्थापन होना है.
  • जिला पिथौरागढ़ के सबसे ज्यादा 129 गांवों खतरे के जद में है, बावजूद इसके सबसे कम मात्र 1 गांव यानी 5 परिवारों का ही विस्थापन किया गया है.

वर्षों खतरे की जद में जीने को मजबूर हजारों परिवारों के विस्थापन को लेकर एक बार फिर राजनीति शुरू हो गई है. भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही पार्टियां विस्थापन को लेकर हामी भरती नजर आ रही है. भाजपा प्रदेश महामंत्री अनिल गोयल ने बताया कि सरकार को अभी 2 साल हुए है, लेकिन सरकार बहुत संवेदनशील है. मौजूदा प्रदेश सरकार सभी मुद्दों को गंभीरता से लेने सरकार है. इन गांवों के बेहतरीन के लिए जो संभव होगा वह सरकार करेगी.

वहीं कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने बताया कि जो गांव खतरे की जद में हैं. उनके विस्थापन के लिए लंबा संघर्ष चल रहा है, कई सरकारें आईं और गईं लेकिन अभी तक विस्थापन की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है. इसलिए सरकार को इसका संज्ञान लेना चाहिए.

पुनर्वास नीति के तहत विस्थापित किए गए गांव और परिवार


उत्तराखंड राज्य के 12 जिलों में से 395 गांव चिन्हित किए गए हैं, जिन गांवों को विस्थापित करना है. पुनर्वास नीति, 2011 के तहत इन गांव को अन्य जगह विस्थापित किया जाना था, लेकिन अभी तक बीते 4 सालों में मात्र 23 गांवो के 609 परिवारों को विस्थापित किया गया है. लिहाजा अभी प्रदेश के 372 गांव ऐसे है जो खतरे की जद में है, और इन गांवों का विस्थापन होना बाकी है.

  • साल 2016-17 में 02 गांवों के 11 परिवारों का विस्थापिन/पुनर्वास किया गया था.
  • साल 2017-18 में 12 गांवों के 177 परिवारों का विस्थापन/पुनर्वास किया गया था.
  • साल 2018-19 में 06 गांवों के 151 परिवारों का विस्थापन/पुनर्वास किया गया था.
  • साल 2019-20 में 03 गांवों के 270 परिवारों का विस्थापन/पुनर्वास किया गया है.

उत्तराखंड राज्य की भौगोलिक परिस्थितियां अन्य राज्यों से भिन्न है और यही वजह है कि प्रदेश में सीमित संसाधनों में सिमटा हुआ है. प्रदेश के तमाम ऐसे गांव भी है जहां खतरा मंडराता रहता है. ऐसे में इस गांवों का कब विस्थापन हो पायेगा, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

देहरादून: प्रदेश के कई गांव ऐसे हैं जो विस्थापन की बाट जोह रहे हैं. प्रदेश में हर साल भू-स्खलन और अन्य आपदा से ऐसे गांवों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. वहीं इन गांवों को सरकारी तंत्र विस्थापित करने के दावे तो खूब करता है, लेकिन कई साल बीत जाने के बाद भी उन्हें विस्थापित नहीं किया गया है. जिससे लोग अपने हाल पर जीने को मजबूर हैं.

प्रदेश के 395 गांव विस्थापन की बाट जोह रहे.

गौर हो कि मानसून सीजन शुरू होते ही उत्तराखंड के सैकड़ों गांवों को विस्थापित करने का मामला एक बार फिर से चर्चाओं में आ गया है. दरअसल, प्रदेश में कई ऐसे गांव हैं जो खतरे की जद में हैं और मानसून की दस्तक के साथ ही एक बार फिर विस्थापन के मामले को हवा दी है. दरअसल, प्रदेश भर के 12 जिलों में 395 ऐसे गांव हैं जिन्हें विस्थापित किया जाना है. सरकार द्वारा विस्थापन का आश्वासन तो दे दिया गया, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई कार्य नहीं किया गया. इन गांवों के लोग बारिश शुरू होते ही दहशत के साए में जीने को मजबूर हैं.

वहीं मामले की गंभीरता को देखते हुए मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने बताया कि कुछ ग्रामीणों को विस्थापित करने की कवायद चल रही है, जहां खतरा बना हुआ है. उन्होंने बताया कि ऐसे गावों की मैपिंग की गयी है और गांव की वैकल्पिक व्यवस्था के साथ ही ग्रामीणों की सहमति से कुछ गांवों का विस्थापन भी हुआ है. उन गांवों के लिए रोड मैप तैयार किया जा रहा है. उत्तराखंड प्रदेश के 13 जिलों में से 12 जिले ऐसे है जहां के कई गांव खतरे की जद में हैं.

पढ़ें-चैंपियन पर एक्शन के लिए आखिर दिल्ली का मुंह क्यों ताकता रहा बीजेपी प्रदेश संगठन?

आपदा विभाग के आकड़ों की मानें तो जिला हरिद्वार में एक भी गांव ऐसा नहीं है जो खतरे की जद में है. पिथौरागढ़ में सबसे ज्यादा 129 गांव खतरे की जद में हैं. बावजूद इस जिले के सिर्फ 1 गांव को ही विस्थापित किया गया है. साथ ही अगर आकड़ों पर गौर करें तो सबसे ज्यादा पहाड़ी क्षेत्रों में बसे गांव हैं, जो खतरे की जद में हैं. वहीं मैदानी क्षेत्रों में बहुत कम गांव ऐसे है, जिन्हें विस्थापित करना है.


प्रदेश के इतने गांवों का होना है विस्थापन

  • जिला उधमसिंह नगर के 01 गांव का विस्थापन होना है.
  • जिला देहरादून के 02 गावों का विस्थापन होना है.
  • जिला नैनीताल के 06 गांवों का विस्थापन होना है.
  • जिला अल्मोड़ा के 09 गांवों का विस्थापन होना है.
  • जिला चंपावत के 10 गांवों का विस्थापन होना है.
  • जिला रुद्रप्रयाग के 14 गांवों का विस्थापन होना है. लेकिन अभी तक 6 गांवो यानी 60 परिवारों को विस्थापित किया गया है.
  • जिला पौड़ी गढ़वाल के 26 गांवों का विस्थापन होना है.
  • जिला टिहरी गढ़वाल मे भी 33 गांवों का विस्थापन होने था. लेकिन अभी तक मात्र 4 गांव यानी 311 परिवारों का विस्थापन हो पाया है.
  • जिला बागेश्वर के 42 गांव ऐसे है जो खतरे के जद में है. बावजूद इसके भी अभी तक 4 गांव यानी 46 परिवारों का विस्थापन हो पाया है.
  • जिला चमोली के 61 गांवों का विस्थापन होना है, जिसमें से सिर्फ 8 गांव यानी 187 परिवारों का विस्थापन हो पाया है.
  • जिला उत्तरकाशी के 62 गांवों का विस्थापन होना है.
  • जिला पिथौरागढ़ के सबसे ज्यादा 129 गांवों खतरे के जद में है, बावजूद इसके सबसे कम मात्र 1 गांव यानी 5 परिवारों का ही विस्थापन किया गया है.

वर्षों खतरे की जद में जीने को मजबूर हजारों परिवारों के विस्थापन को लेकर एक बार फिर राजनीति शुरू हो गई है. भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही पार्टियां विस्थापन को लेकर हामी भरती नजर आ रही है. भाजपा प्रदेश महामंत्री अनिल गोयल ने बताया कि सरकार को अभी 2 साल हुए है, लेकिन सरकार बहुत संवेदनशील है. मौजूदा प्रदेश सरकार सभी मुद्दों को गंभीरता से लेने सरकार है. इन गांवों के बेहतरीन के लिए जो संभव होगा वह सरकार करेगी.

वहीं कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने बताया कि जो गांव खतरे की जद में हैं. उनके विस्थापन के लिए लंबा संघर्ष चल रहा है, कई सरकारें आईं और गईं लेकिन अभी तक विस्थापन की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है. इसलिए सरकार को इसका संज्ञान लेना चाहिए.

पुनर्वास नीति के तहत विस्थापित किए गए गांव और परिवार


उत्तराखंड राज्य के 12 जिलों में से 395 गांव चिन्हित किए गए हैं, जिन गांवों को विस्थापित करना है. पुनर्वास नीति, 2011 के तहत इन गांव को अन्य जगह विस्थापित किया जाना था, लेकिन अभी तक बीते 4 सालों में मात्र 23 गांवो के 609 परिवारों को विस्थापित किया गया है. लिहाजा अभी प्रदेश के 372 गांव ऐसे है जो खतरे की जद में है, और इन गांवों का विस्थापन होना बाकी है.

  • साल 2016-17 में 02 गांवों के 11 परिवारों का विस्थापिन/पुनर्वास किया गया था.
  • साल 2017-18 में 12 गांवों के 177 परिवारों का विस्थापन/पुनर्वास किया गया था.
  • साल 2018-19 में 06 गांवों के 151 परिवारों का विस्थापन/पुनर्वास किया गया था.
  • साल 2019-20 में 03 गांवों के 270 परिवारों का विस्थापन/पुनर्वास किया गया है.

उत्तराखंड राज्य की भौगोलिक परिस्थितियां अन्य राज्यों से भिन्न है और यही वजह है कि प्रदेश में सीमित संसाधनों में सिमटा हुआ है. प्रदेश के तमाम ऐसे गांव भी है जहां खतरा मंडराता रहता है. ऐसे में इस गांवों का कब विस्थापन हो पायेगा, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

Intro:मानसून सीजन शुरू होते ही उत्तराखंड के सैकड़ों गांवों को विस्थापित करने का मामला एक बार फिर से चर्चाओं में आ गया है दरअसल प्रदेश में बसें तमाम ऐसे गांव हैं जो खतरे की जद में है। और उत्तराखंड में मानसून सीजन ने भी दस्तक दे दिया है। जिस वजह से एक बार फिर नदियों, झीलों और संवेदनशील क्षेत्रो में बसें गावो पर खतरा मंडरा रहा है। और इन सभी गांव को सरकारी तंत्र विस्थापित करने के दावे तो खूबकर रहा है बावजूद इसके धरातल पर हकीकत लगभग शून्य ही नजर आ रही है। ऐसे में सरकार के कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े होना लाजमी है। देखिए ईटीवी भारत की ख़ास रिपोर्ट......


Body:-------ग्रामीणों की विस्थापित करने की कवायत चल रही है------

दरअसल प्रदेश भर के 12 जिलों में 395 ऐसे गांव बसें है जिसे विस्थापित किए जाने की बात हो रही हैं, और इन गांवो के लोग बारिश का मौसम शुरू होते ही खौफ में जीने के लिए मजबूर हो जाते हैं। मामले की गंभीरता को देखते हुए मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने बताया कि कुछ ग्रामीणों को विस्थापित करने की कवायद चल रही है, जो गांव या इलाको में किसी भी प्रकार का रिस्क है, ऐसे गावो की मैपिंग की गयी है। साथ ही बताया कि इन गांव के लिए वैकल्पिक व्यवस्था गांव वालो की सहमति से कुछ गांवों का विस्थापन भी हुआ है। और जो गांव बने है उनके लिये रोड मैप तैयार किया जा रहा है। 

बाइट - उत्पल कुमार सिंह, मुख्य सचिव, उत्तराखंड


-----------प्रदेश के 395 गांवों का होना है विस्थापन---------

उत्तराखंड प्रदेश के 13 जिलों में से 12 जिले ऐसे है जहा के कई गांव खतरे की जद में है। आपदा विभाग के आकड़ो की माने तो जिला हरिद्वार में एक भी गांव ऐसा नही है जो ख़तरे के जद में हो तो वही जिला पिथौरागढ़ में सबसे ज्यादा 129 गांव खतरे की जद में है बावजूद इस जिले के सिर्फ 1 गांव को ही विस्थापित किया गया है। साथ ही अगर आकड़ो पर गौर करे तो सबसे ज्यादा पहाड़ी क्षेत्रों में बसे गांव है, जो खतरे की जद में है। तो वही मैदानी क्षेत्रों में बहुत कम ही गांव ऐसे है, जो खतरे की जद में बसे है। 

- जिला उधमसिंह नगर के 01 गावो का होना है विस्थापन।

- जिला देहरादून के 02 गावो का होना है विस्थापन।

- जिला नैनीताल के 06 गावो का होना है विस्थापन।

- जिला अल्मोड़ा के 09 गावो का होना है विस्थापन।

- जिला चंपावत के 10 गावो का होना है विस्थापन।

- जिला रुद्रप्रयाग के 14 गांवों का विस्थापन होना है लेकिन अभी तक 6 गांवो यानी 60 परिवारों को विस्थापित किया गया है।

- जिला पौड़ी गढ़वाल के 26 गांवों का होना है विस्थापन।

- जिला टिहरी गढ़वाल मे भी 33 गांवों का विस्थापन होने था लेकिन अभी तक मात्र 4 गावो यानी 311 परिवारों का विस्थापन हो पाया है।

- जिला बागेश्वर के 42 गांव ऐसे है जो खतरे के जद में है बावजूद इसके भी अभी तक 4 गावो यानी 46 परिवारों का विस्थापन हो पाया है।

- जिला चमोली के 61 गांवों का विस्थापन होना है जिसमे से सिर्फ 8 गावो यानी 187 परिवारों का विस्थापन हो पाया है।

- जिला उत्तरकाशी के 62 गांवों का होना है विस्थापन।

- जिला पिथौरागढ़ के सबसे ज्यादा 129 गांवों खतरे के जद में बसे है बावजूद इसके सबसे कम मात्र 1 गांव यानी 5 परिवारों का ही विस्थापन किया गया है। 


------विस्थापन को लेकर फिर से राजनीतिक सियासत शुरू------

वर्षो से खतरे की जद में जीने को मजबूर हजारों परिवारों के विस्थापन को लेकर एक बार फिर राजनीतिक सियासत शुरू हो गयी है। उत्तराखंड राज्य में बारी-बारी से सत्ता पर काबिज रही भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही पार्टियां अब विस्थापन को लेकर हामी भरती नज़र आ रही है। भाजपा प्रदेश महामंत्री अनिल गोयल ने बताया कि सरकार को अभी 2 साल हुए है लेकिन सरकार बहुत संवेदनशील है, और सभी मुद्दों को गंभीरता से लेने वाली और अच्छा निर्माण लेने वाली सरकार है। इन गांवों के बेहतरीन के लिए जो संभव होगा वह सरकार करेगी। तो वही कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने बताया कि जो खतरे की जद में गाँव है, उनके विस्थापन के लिए लंबा संघर्ष चल रहा है, कई सरकारे आयी और कई सरकारे गयी लेकिन अभी तक विस्थापन की प्रक्रिया पूरी नही हो पाई है, इसलिए सरकार को इसका संज्ञान लेना चाहिए। 

बाइट - अनिल गोयल, प्रदेश महामंत्री, बीजेपी
बाइट - सूर्यकांत धस्माना, प्रदेश उपाध्यक्ष, कांग्रेस


------पुनर्वास नीति, 2011 के तहत विस्थापित किये गए गाँव और परिवार-------

उत्तराखंड राज्य के 12 जिलों में से 395 गांव चिन्हित किए गए हैं जिन गांवों को विस्थापित करना है। पुनर्वास नीति, 2011 के तहत इन गांव को अन्य जगह विस्थापित किया जाना था लेकिन अभी तक बीते 4 सालों में मात्र 23 गांवो के 609 परिवारों को विस्थापित किया गया है। लिहाजा अभी प्रदेश के 372 गांव ऐसे है जो खतरे की जद में है, और इन गांवों का विस्थापन होना बाकी है।

- साल 2016-17 में 02 गांवों के 11 परिवारों का विस्थापिन/पुनर्वास किया गया था। 

- साल 2017-18 में 12 गावो के 177 परिवारों का विस्थापन/पुनर्वास किया गया था।

- साल 2018-19 में 06 गावो के 151 परिवारों का विस्थापन/पुनर्वास किया गया था।

- साल 2019-20 में 03 गावो के 270 परिवारों का विस्थापन/पुनर्वास किया गया है।



Conclusion:उत्तराखंड राज्य की भौगोलिक परिस्थितियां अन्य राज्यो से भिन्न है और यही वजह है कि उत्तराखंड राज्य सीमित संसाधनों में सिमटा हुआ है। प्रदेश की विषम भौगोलिक परिस्थितियां न सिर्फ राज्य के आर्थिकी पर असर डाल रही है बल्कि प्रदेश के तमाम ऐसे गांव भी है जहाँ अमूमन खतरा मंडराता रहता है। ऐसे में इस गावो का कब तक विस्थापन हो पायेगा, ये तो वक़्त ही बताएगा। 
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