देहरादून: प्रदेश के कई गांव ऐसे हैं जो विस्थापन की बाट जोह रहे हैं. प्रदेश में हर साल भू-स्खलन और अन्य आपदा से ऐसे गांवों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. वहीं इन गांवों को सरकारी तंत्र विस्थापित करने के दावे तो खूब करता है, लेकिन कई साल बीत जाने के बाद भी उन्हें विस्थापित नहीं किया गया है. जिससे लोग अपने हाल पर जीने को मजबूर हैं.
गौर हो कि मानसून सीजन शुरू होते ही उत्तराखंड के सैकड़ों गांवों को विस्थापित करने का मामला एक बार फिर से चर्चाओं में आ गया है. दरअसल, प्रदेश में कई ऐसे गांव हैं जो खतरे की जद में हैं और मानसून की दस्तक के साथ ही एक बार फिर विस्थापन के मामले को हवा दी है. दरअसल, प्रदेश भर के 12 जिलों में 395 ऐसे गांव हैं जिन्हें विस्थापित किया जाना है. सरकार द्वारा विस्थापन का आश्वासन तो दे दिया गया, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई कार्य नहीं किया गया. इन गांवों के लोग बारिश शुरू होते ही दहशत के साए में जीने को मजबूर हैं.
वहीं मामले की गंभीरता को देखते हुए मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने बताया कि कुछ ग्रामीणों को विस्थापित करने की कवायद चल रही है, जहां खतरा बना हुआ है. उन्होंने बताया कि ऐसे गावों की मैपिंग की गयी है और गांव की वैकल्पिक व्यवस्था के साथ ही ग्रामीणों की सहमति से कुछ गांवों का विस्थापन भी हुआ है. उन गांवों के लिए रोड मैप तैयार किया जा रहा है. उत्तराखंड प्रदेश के 13 जिलों में से 12 जिले ऐसे है जहां के कई गांव खतरे की जद में हैं.
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आपदा विभाग के आकड़ों की मानें तो जिला हरिद्वार में एक भी गांव ऐसा नहीं है जो खतरे की जद में है. पिथौरागढ़ में सबसे ज्यादा 129 गांव खतरे की जद में हैं. बावजूद इस जिले के सिर्फ 1 गांव को ही विस्थापित किया गया है. साथ ही अगर आकड़ों पर गौर करें तो सबसे ज्यादा पहाड़ी क्षेत्रों में बसे गांव हैं, जो खतरे की जद में हैं. वहीं मैदानी क्षेत्रों में बहुत कम गांव ऐसे है, जिन्हें विस्थापित करना है.
प्रदेश के इतने गांवों का होना है विस्थापन
- जिला उधमसिंह नगर के 01 गांव का विस्थापन होना है.
- जिला देहरादून के 02 गावों का विस्थापन होना है.
- जिला नैनीताल के 06 गांवों का विस्थापन होना है.
- जिला अल्मोड़ा के 09 गांवों का विस्थापन होना है.
- जिला चंपावत के 10 गांवों का विस्थापन होना है.
- जिला रुद्रप्रयाग के 14 गांवों का विस्थापन होना है. लेकिन अभी तक 6 गांवो यानी 60 परिवारों को विस्थापित किया गया है.
- जिला पौड़ी गढ़वाल के 26 गांवों का विस्थापन होना है.
- जिला टिहरी गढ़वाल मे भी 33 गांवों का विस्थापन होने था. लेकिन अभी तक मात्र 4 गांव यानी 311 परिवारों का विस्थापन हो पाया है.
- जिला बागेश्वर के 42 गांव ऐसे है जो खतरे के जद में है. बावजूद इसके भी अभी तक 4 गांव यानी 46 परिवारों का विस्थापन हो पाया है.
- जिला चमोली के 61 गांवों का विस्थापन होना है, जिसमें से सिर्फ 8 गांव यानी 187 परिवारों का विस्थापन हो पाया है.
- जिला उत्तरकाशी के 62 गांवों का विस्थापन होना है.
- जिला पिथौरागढ़ के सबसे ज्यादा 129 गांवों खतरे के जद में है, बावजूद इसके सबसे कम मात्र 1 गांव यानी 5 परिवारों का ही विस्थापन किया गया है.
वर्षों खतरे की जद में जीने को मजबूर हजारों परिवारों के विस्थापन को लेकर एक बार फिर राजनीति शुरू हो गई है. भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही पार्टियां विस्थापन को लेकर हामी भरती नजर आ रही है. भाजपा प्रदेश महामंत्री अनिल गोयल ने बताया कि सरकार को अभी 2 साल हुए है, लेकिन सरकार बहुत संवेदनशील है. मौजूदा प्रदेश सरकार सभी मुद्दों को गंभीरता से लेने सरकार है. इन गांवों के बेहतरीन के लिए जो संभव होगा वह सरकार करेगी.
वहीं कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने बताया कि जो गांव खतरे की जद में हैं. उनके विस्थापन के लिए लंबा संघर्ष चल रहा है, कई सरकारें आईं और गईं लेकिन अभी तक विस्थापन की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है. इसलिए सरकार को इसका संज्ञान लेना चाहिए.
पुनर्वास नीति के तहत विस्थापित किए गए गांव और परिवार
उत्तराखंड राज्य के 12 जिलों में से 395 गांव चिन्हित किए गए हैं, जिन गांवों को विस्थापित करना है. पुनर्वास नीति, 2011 के तहत इन गांव को अन्य जगह विस्थापित किया जाना था, लेकिन अभी तक बीते 4 सालों में मात्र 23 गांवो के 609 परिवारों को विस्थापित किया गया है. लिहाजा अभी प्रदेश के 372 गांव ऐसे है जो खतरे की जद में है, और इन गांवों का विस्थापन होना बाकी है.
- साल 2016-17 में 02 गांवों के 11 परिवारों का विस्थापिन/पुनर्वास किया गया था.
- साल 2017-18 में 12 गांवों के 177 परिवारों का विस्थापन/पुनर्वास किया गया था.
- साल 2018-19 में 06 गांवों के 151 परिवारों का विस्थापन/पुनर्वास किया गया था.
- साल 2019-20 में 03 गांवों के 270 परिवारों का विस्थापन/पुनर्वास किया गया है.
उत्तराखंड राज्य की भौगोलिक परिस्थितियां अन्य राज्यों से भिन्न है और यही वजह है कि प्रदेश में सीमित संसाधनों में सिमटा हुआ है. प्रदेश के तमाम ऐसे गांव भी है जहां खतरा मंडराता रहता है. ऐसे में इस गांवों का कब विस्थापन हो पायेगा, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा.