देहरादून: साल 1992 से हर साल 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के तौर पर मनाया जाता है. विश्व मानसिक स्वास्थ्य संघ ने मानसिक स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए इस दिन की शुरुआत की थी. आज इस डिप्रेशन की चपेट में युवाओं के साथ-साथ 10 से 15 साल के स्कूली बच्चे भी आ चुके हैं.
डिप्रेशन इंसान के शरीर की वह स्थिति होती है जब जीवन में कोई बदलाव आ जाता है या उस बदलाव को मानसिक तौर पर वह सहन नहीं कर पाता. हमारा मस्तिष्क उस परिस्थिति में थक जाता है और हमें तनाव होने लगता है. हमारे शरीर और मनोवैज्ञानिक कार्यप्रणाली को खराब कर देती है हमारे कई हारमोंस परिवर्तन हो जाते हैं और हम डिप्रेशन में चले जाते हैं.
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मनोचिकित्सकों के मुताबिक, 21वीं सदी में पुरुषों के मुकाबले महिलाएं ज्यादा मानसिक तनाव का शिकार हो रही हैं. पुरुषों और महिलाओं के मानसिक तनाव का अनुपात 30- 70 है. मतलब 100 में से 30 पुरुष और 70 महिलाएं मानसिक तनाव और डिप्रेशन जैसी बीमारियों का शिकार हैं.
मानसिक स्वास्थ्य के विषय में ईटीवी भारत ने देहरादून स्थित दून अस्पताल के मनोचिकित्सक लेफ्टिनेंट कर्नल डॉ. जेएस राणा से बात की. जिसमें उन्होंने बताया कि बदलती जीवनशैली के चलते इन दिनों लोग तरह-तरह की मानसिक बीमारियों का शिकार हो रहे हैं. जिसमें सबसे अधिक संख्या डिप्रेशन के मरीजों की है.
उन्होंने बताया कि विश्वभर में बेहद रफ्तार के साथ डिप्रेशन के मरीजों की संख्या में साल दर साल इजाफा होता जा रहा है. जिसको देखते हुए उन्होंने आशंका जताई कि साल 2020 तक विश्वभर में कैंसर के बाद डिप्रेशन के मरीजों की संख्या सबसे अधिक पाई जाएगी.
मानसिक तनाव /डिप्रेशन के प्रमुख कारण
- अकेलापन.
- पारिवारिक क्लेश.
- जॉब प्रेशर.
- ड्रग्स या किसी भी अन्य नशे की लत.
- मोबाइल फोन का ज्यादा इस्तेमाल करना.
मानसिक रोगी के लक्षण
- तनाव में रहना.
- नींद ना आना.
- हिंसक व्यवहार.
- वास्तविकता का सामना करने से डरना.
- समाज से कटा-कटा रहना.