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3 मई को होगा वीर शहीद केसरी चंद मेले का आयोजन, CM धामी होंगे शामिल

देश की आजादी के लिए मुख्य भूमिका निभाने वाले अमर शहीद वीर केसरी चंद को श्रद्धांजलि देने के लिए चकराता के रामताल गार्डन में 3 मई को वीर शहीद केसरी चंद मेले का आयोजन किया जाएगा.

वीर शहीद केसरी चंद मेले का आयोजन
वीर शहीद केसरी चंद मेले का आयोजन
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Published : Apr 26, 2022, 9:59 PM IST

विकासनगर: जौनसार बावर के चकराता के रामताल गार्डन में 3 मई को वीर शहीद केसरी चंद मेले का आयोजन होगा. सीएम पुष्कर सिंह धामी भी इस मेले में शामिल होंगे. कोरोना संक्रमण के चलते पिछले दो साल से मेला स्थगित था. मेले में हजारों लोग अपने वीर सपूत को नमन करने आते हैं.

उत्तराखंड वीरो की भूमि मानी जाती है यहां अनेक शूरवीरों ने देश के लिए अपना बलिदान दिया है. इसी क्रम में देश की आजादी के लिए मुख्य भूमिका निभाने वाले अमर शहीद वीर केसरी चंद का जन्म 1 नवंबर 1920 को जौनसार के क्यावा गांव में हुआ था उनकी प्रारंभिक शिक्षा विकास नगर में हुई थी इसके बाद उन्होंने डीएवी कॉलेज देहरादून में अपनी पढ़ाई जारी रखी बचपन से ही केसरी चंद

शहीद केसरी चंद का इतिहास: भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हजारों की संख्या में देशभक्तों ने अपने त्याग और बलिदान से इतिहास में अपना स्थान बनाया है. उत्तराखंड राज्य का भी स्वतंत्रता संग्राम में स्वर्णिम इतिहास रहा है. नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी द्वारा जब आजाद हिंद फौज की स्थापना की गई तो उत्तराखंड के अधिसंख्य रणबांकुरों ने इस सेना की सदस्यता लेकर देश की रक्षा करने की ठानी. जौनसार बावर के वीर सपूत शहीद केसरी चंद ने स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देकर उत्तराखंड का नाम राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास में स्वर्ण शब्दों में अंकित कर दिया.

वीर केसरी चंद का कैसा रहा बचपन और शिक्षा: अमर शहीद वीर केसरी चंद का जन्म 1 नवंबर 1920 को जौनसार बावर के क्यावा गांव में पंडित शिवदत्त के घर पर हुआ था. इनकी प्रारंभिक शिक्षा विकासनगर में हुई. 1938 में डीएवी कॉलेज देहरादून से हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण कर इसी कॉलेज में इंटरमीडिएट की भी पढ़ाई जारी रखी. केसरी चंद बचपन से ही निर्भीक और साहसी थे. खेलकूद में भी इनकी विशेष रुचि थी. इस कारण वह टोली नायक रहा करते थे. नेतृत्व का गुण और देशप्रेम की भावना इनमें कूट-कूट कर भरी हुई थी. देश में स्वतंत्रता आंदोलन की सुगबुगाहट के चलते केसरी चंद पढ़ाई के साथ-साथ कांग्रेस की सभा और कार्यक्रमों में भी भाग लेते रहते थे.

पढ़ें: शहीद केसरी चंद मेला स्थगित, 24 की उम्र में ही चढ़ गए थे फांसी

इंटर की पढ़ाई पूरी करने के बाद केसरी चंद 10 अप्रैल 1941 को रॉयल इंडिया आर्मी सर्विस कोर में नायब सूबेदार के पद पर भर्ती हो गए. उन दिनों द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था कि इस टीचर को 29 अक्टूबर 1941 को मलाया के युद्ध के मोर्चे पर तैनात किया गया. जहां पर जापानी फौज द्वारा उन्हें बंदी बना लिया गया. नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी के नारे 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' से प्रभावित होकर केसरी चंद आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए. उनके भीतर अदम्य साहस, अद्भुत पराक्रम, जोखिम उठाने की क्षमता, संकल्प शक्ति का ज्वार देखकर आजाद हिंद फौज में जोखिम भरे कार्य सौंपे गए. केसरी ने उन्हें कुशलता से संपादित किया.

जब वीर केसरी चंद को ब्रिटिश फौज ने पकड़: इंफाल के मोर्चे पर एक पुल उड़ाने के प्रयास में ब्रिटिश फौज ने इन्हें पकड़ लिया. उन्हेंं बंदी बनाकर दिल्ली के जिला जेल भेज दिया गया. वहां पर ब्रिटिश राज्य और सम्राट के विरुद्ध षड़यंत्र के अपराध में मृत्युदंड की सजा दी गई. मात्र 24 वर्ष 6 माह की अल्पायु में अमर बलिदानी 3 मई 1945 को आतताई ब्रिटिश सरकार के आगे घुटने ना टेककर हंसते-हंसते भारत माता की जय और जय हिंद का उद्घोष करते हुए फांसी के फंदे पर झूल गए.

विकासनगर: जौनसार बावर के चकराता के रामताल गार्डन में 3 मई को वीर शहीद केसरी चंद मेले का आयोजन होगा. सीएम पुष्कर सिंह धामी भी इस मेले में शामिल होंगे. कोरोना संक्रमण के चलते पिछले दो साल से मेला स्थगित था. मेले में हजारों लोग अपने वीर सपूत को नमन करने आते हैं.

उत्तराखंड वीरो की भूमि मानी जाती है यहां अनेक शूरवीरों ने देश के लिए अपना बलिदान दिया है. इसी क्रम में देश की आजादी के लिए मुख्य भूमिका निभाने वाले अमर शहीद वीर केसरी चंद का जन्म 1 नवंबर 1920 को जौनसार के क्यावा गांव में हुआ था उनकी प्रारंभिक शिक्षा विकास नगर में हुई थी इसके बाद उन्होंने डीएवी कॉलेज देहरादून में अपनी पढ़ाई जारी रखी बचपन से ही केसरी चंद

शहीद केसरी चंद का इतिहास: भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हजारों की संख्या में देशभक्तों ने अपने त्याग और बलिदान से इतिहास में अपना स्थान बनाया है. उत्तराखंड राज्य का भी स्वतंत्रता संग्राम में स्वर्णिम इतिहास रहा है. नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी द्वारा जब आजाद हिंद फौज की स्थापना की गई तो उत्तराखंड के अधिसंख्य रणबांकुरों ने इस सेना की सदस्यता लेकर देश की रक्षा करने की ठानी. जौनसार बावर के वीर सपूत शहीद केसरी चंद ने स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देकर उत्तराखंड का नाम राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास में स्वर्ण शब्दों में अंकित कर दिया.

वीर केसरी चंद का कैसा रहा बचपन और शिक्षा: अमर शहीद वीर केसरी चंद का जन्म 1 नवंबर 1920 को जौनसार बावर के क्यावा गांव में पंडित शिवदत्त के घर पर हुआ था. इनकी प्रारंभिक शिक्षा विकासनगर में हुई. 1938 में डीएवी कॉलेज देहरादून से हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण कर इसी कॉलेज में इंटरमीडिएट की भी पढ़ाई जारी रखी. केसरी चंद बचपन से ही निर्भीक और साहसी थे. खेलकूद में भी इनकी विशेष रुचि थी. इस कारण वह टोली नायक रहा करते थे. नेतृत्व का गुण और देशप्रेम की भावना इनमें कूट-कूट कर भरी हुई थी. देश में स्वतंत्रता आंदोलन की सुगबुगाहट के चलते केसरी चंद पढ़ाई के साथ-साथ कांग्रेस की सभा और कार्यक्रमों में भी भाग लेते रहते थे.

पढ़ें: शहीद केसरी चंद मेला स्थगित, 24 की उम्र में ही चढ़ गए थे फांसी

इंटर की पढ़ाई पूरी करने के बाद केसरी चंद 10 अप्रैल 1941 को रॉयल इंडिया आर्मी सर्विस कोर में नायब सूबेदार के पद पर भर्ती हो गए. उन दिनों द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था कि इस टीचर को 29 अक्टूबर 1941 को मलाया के युद्ध के मोर्चे पर तैनात किया गया. जहां पर जापानी फौज द्वारा उन्हें बंदी बना लिया गया. नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी के नारे 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' से प्रभावित होकर केसरी चंद आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए. उनके भीतर अदम्य साहस, अद्भुत पराक्रम, जोखिम उठाने की क्षमता, संकल्प शक्ति का ज्वार देखकर आजाद हिंद फौज में जोखिम भरे कार्य सौंपे गए. केसरी ने उन्हें कुशलता से संपादित किया.

जब वीर केसरी चंद को ब्रिटिश फौज ने पकड़: इंफाल के मोर्चे पर एक पुल उड़ाने के प्रयास में ब्रिटिश फौज ने इन्हें पकड़ लिया. उन्हेंं बंदी बनाकर दिल्ली के जिला जेल भेज दिया गया. वहां पर ब्रिटिश राज्य और सम्राट के विरुद्ध षड़यंत्र के अपराध में मृत्युदंड की सजा दी गई. मात्र 24 वर्ष 6 माह की अल्पायु में अमर बलिदानी 3 मई 1945 को आतताई ब्रिटिश सरकार के आगे घुटने ना टेककर हंसते-हंसते भारत माता की जय और जय हिंद का उद्घोष करते हुए फांसी के फंदे पर झूल गए.

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