देहरादून: सरकार की ओर से सरकारी स्कूलों (Uttarakhand Government School) में बच्चों का दाखिला बढ़ाने पर जोर दिया जाता रहा है. प्रदेश के कई स्कूलों में बच्चों के पठन-पाठन की समुचित व्यवस्था तक नहीं है. जिसकी तस्वीर समय-समय पर सामने आते रही है. वहीं सरकारी स्कूलों के छात्रों की कम होती संख्या हमेशा से ही शिक्षा विभाग (Uttarakhand Education Department) के लिए बड़ी परेशानी रही है. हालांकि कोरोना काल के दौरान रिवर्स पलायन के चलते सरकारी विद्यालयों में छात्रों की संख्या कुछ बढ़ती हुई दिखाई दी है. लेकिन शिक्षा विभाग अभिभावकों के बीच सरकारी स्कूलों में बेहतर पढ़ाई और व्यवस्थाओं को लेकर विश्वास कायम नहीं कर पा रहा है.
ताजा मामला शिक्षा विभाग में छात्रों तक किताबें नहीं पहुंचा पाने का है. उत्तराखंड के सरकारी विद्यालयों में भी इन दिनों गर्मियों की छुट्टियां चल रही हैं. शिक्षा विभाग की कोशिश होती है कि गर्मियों की छुट्टी से पहले ही विद्यार्थियों को किताबें उपलब्ध करा दी जाएं, ताकि छुट्टियां पड़ने से पहले से ही छात्र नई क्लास की किताबों के लिए तैयारियों में जुट सकें. खास तौर पर गर्मियों की छुट्टियों के दौरान छात्र घरों में भी इन किताबों का अध्ययन कर अपनी तैयारी कर सकते हैं. लेकिन इसे शिक्षा विभाग की लापरवाही ही कहेंगे कि गर्मियों की छुट्टियां पड़ने के बावजूद भी अब तक बड़ी संख्या में छात्रों को किताबें उपलब्ध नहीं हो पाई हैं.
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शायद यही कारण है कि पिछले दिनों महानिदेशक शिक्षा की तरफ से सैकड़ों शिक्षा विभाग के अधिकारी और कर्मचारियों का वेतन भी रोका गया था. दरअसल, शिक्षा विभाग की ऐसी ही कमियां अभिभावकों को सरकारी सिस्टम पर विश्वास करने से रोकती हैं और अभिभावक ना चाहते हुए भी निजी स्कूलों की तरफ खिंचे चले जाते हैं. सरकारी सिस्टम में फ्री किताबों और शिक्षा देने के बावजूद भी अभिभावक जहां पर अपने बच्चों को पढ़ाने से कतराते हैं. साफ है कि सरकारी सिस्टम शिक्षा की वह गुणवत्ता नहीं दे पा रहा जिसके कारण अभिभावक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने की हिम्मत जुटा सकें.
यही कारण है कि निजी स्कूल मोटी फीस लेकर चांदी काट रहे हैं. जानकारी के अनुसार अभी नौवीं से बारहवीं तक के 5% से भी ज्यादा बच्चे किताबों से महरूम हैं. यह हालत तब है जब शिक्षा विभाग अप्रैल महीने में ही 100% किताबों को प्रदेश भर के विद्यालयों में पहुंचा कर बच्चों को वितरित करने का लक्ष्य लेकर चला था. अब परेशानी यह है कि गर्मियों की छुट्टियां पड़ चुकी हैं और प्रत्येक बच्चे के घर तक किताबों को पहुंचाना शिक्षा विभाग के लिए थोड़ा मुश्किल हो रहा है. हालांकि इसके बावजूद भी छात्रों के घरों तक किताबें पहुंचाने के निर्देश दिए गए.
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महानिदेशक शिक्षा (Uttarakhand Director General Education) बंशीधर तिवारी कहते हैं कि उनकी तरफ से अधिकारियों और कर्मचारियों को निर्देशित किया गया है और उम्मीद है कि जल्द से जल्द सभी छात्रों तक किताबें पहुंचा दी जाएंगी. उन्होंने कहा कि अभी कई बच्चे सितंबर तक विद्यालयों में एडमिशन लेंगे लिहाजा इसीलिए किताबों का प्रकाशन करने के लिए भी कहा गया है. शिक्षा विभाग में लेटलतीफी या लापरवाही की यह केवल बानगी है, जबकि महकमे में ऐसी कई कमियां हैं जो विद्यालयों तक छात्रों को नहीं पहुंचने दे रही हैं. हालात यह हैं कि सरकारी विद्यालयों में केवल वही छात्र एडमिशन लेते हैं, जो पारिवारिक रूप से मजबूर हैं और निजी स्कूलों में आर्थिक कमजोरी के कारण दाखिला नहीं ले सकते. इसका मतलब यह है कि उत्तराखंड में सरकारी विद्यालयों की मौजूदगी केवल कमजोर वर्ग को राहत देने भर तक ही है. जबकि शिक्षा की गुणवत्ता निजी स्कूलों के मुकाबले कहीं नहीं टिकती. ऐसा ना होता तो प्रदेश में सक्षम परिवार से जुड़े छात्र भी उन्हें सरकारी विद्यालयों में दिखाई देते.