देहरादूनः मॉनसून सीजन के दौरान हिमालयी राज्यों में आपदा जैसे हालात बनना आम बात है. लेकिन इस मॉनसून सीजन ने तो हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में हाहाकार मचा दिया है. सबसे ज्यादा प्रभाव हिमाचल प्रदेश में हुआ है. हालांकि, उत्तराखंड में भी आपदा के दंश कम नहीं हैं. उत्तराखंड और हिमाचल में भूस्खलन के चलते मचे हाहाकार को लेकर वैज्ञानिक भी चिंतित नजर आ रहे हैं. वैज्ञानिक आपदा की असली वजह को जानने के लिए लगातार कोशिश कर रहे हैं. वैज्ञानिकों की मानें तो दोनों ही राज्यों में लगातार हो रहे भूस्खलन के लिए एक नहीं, बल्कि पांच फैक्टर्स रोल अदा कर रहे हैं.
उत्तराखंड और पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश की विषम भौगोलिक परिस्थितियां लगभग समान हैं. यही वजह है कि मॉनसून सीजन के दौरान दोनों ही राज्यों में आपदा जैसे हालात उत्पन्न हो जाते हैं. खास बात है कि राजस्व का एक बड़ा हिस्सा हर साल आपदा मद में खर्च होता है. लेकिन अभी तक भूस्खलन को रोकने के लिए कोई बेहतर ट्रीटमेंट प्लांट को इंप्लीमेंट नहीं कर पाए हैं. यही कारण है कि भूस्खलन के कारण दोनों ही राज्यों में हर साल सैकड़ों लोगों की जान चली जाती है और राज्यों को हजारों करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ता है. इस सीजन में सबसे ज्यादा नुकसान हिमाचल प्रदेश में देखने को मिला है.
ये 5 फैक्टर हो सकते हैं वजह: देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के डायरेक्टर डॉ. काला चंद साईं ने बताया कि हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में भूस्खलन के लिए एक फैक्टर जिम्मेदार नहीं है, बल्कि तमाम फैक्टर जुड़े हुए हैं. जिसमें, क्लाइमेटिक फैक्टर, एंथ्रोपोजेनिक एक्टिविटी, एनवायरमेंटल डिग्रेडेशन, एक्सेसिव रेनफॉल और नेचुरल एक्टिविटी शामिल हैं. इन सभी फैक्टर्स की वजहों से ही हिमाचल और उत्तराखंड में भूस्खलन की समस्या देखी जा रही है. साथ ही वर्तमान में इन दोनों राज्यों में जो स्थितियां बनी हैं, उसमें इन सभी फैक्टर्स की अहम भूमिका है.
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क्लाइमेटिक फैक्टर (Climatic Factors): देश दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग एक गंभीर समस्या बनती जा रही है. इसी ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ही दुनिया भर में क्लाइमेट चेंज यानी जलवायु परिवर्तन देखा जा रहा है. यही नहीं, भूस्खलन को बढ़ावा देने में जलवायु परिवर्तन की भी एक अहम भूमिका है.
एनवायरनमेंटल डिग्रेडेशन (Environment Degradation): पर्यावरण क्षरण से भी भूस्खलन को काफी बल मिला है. क्योंकि पर्यावरण की उपयोगिता घटती जा रही है. इसके साथ ही लंबे समय से हिमालयी क्षेत्रों में तापमान में बदलाव देखा जा रहा है. जिसके तहत गर्मियों के सीजन में बहुत ज्यादा गर्मी और ठंडियों के मौसम में बहुत ज्यादा ठंड पड़ रही है. इसी कारण पहाड़ी के अंदर फैक्टर डेवलप हो जाते हैं और समय के साथ यह बढ़ता रहता है, जिसके चलते यह भूस्खलन का स्वरूप ले लेता है.
एंथ्रोपोजेनिक एक्टिविटी (Anthropogenic Activities): मानवजनित गतिविधियों को ही एंथ्रोपोजेनिक एक्टिविटी कहा जाता है. दरअसल, पर्वतीय क्षेत्रों में इंसानों द्वारा किए जा रहे अनियंत्रित विकास को भी एक बड़ी वजह माना जा रहा है. इसके तहत संवेदनशील क्षेत्रों में मकान बनाना, किसी पर्वतीय क्षेत्र की भूमि की क्षमता से अधिक दबाव, सड़क/पुल/टनल बनाने के लिए पहाड़ों का कटान समेत अन्य विकास के कार्यों के चलते भी भूस्खलन की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. लेकिन अगर साइंटिफिक वे में प्रकृति के साथ विकास किया जाता है, तो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है.
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एक्सेसिव रेनफॉल (Excessive Rain Fall): दुनिया भर में लगातार हो रहे जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम चक्र में भी बड़ा बदलाव आया है. इसके कारण अत्यधिक भारी बारिश देखने को मिल रही है. हालांकि, अत्यधिक भारी बारिश के चलते भी भूस्खलन की आशंकाएं और अधिक बढ़ जाती हैं. हालांकि, अकेले अत्यधिक बारिश की वजह से भूस्खलन की संभावनाएं नहीं बढ़ती हैं, बल्कि एनवायरमेंटल डिग्रेडेशन, एंथ्रोपोजेनिक एक्टिविटी या फिर नेचुरल एक्टिविटी के सक्रिय होने से भूस्खलन की घटनाएं होने लगती हैं.
नेचुरल एक्टिविटी (Natural Activity): दरअसल, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश, भूकंप के लिहाज से सिस्मिक जोन 4 और 5 में आता है. इस कारण इन क्षेत्रों में छोटे-छोटे भूकंप आते रहते हैं. लिहाजा, ये छोटे-छोटे भूकंप भी पहाड़ों की चट्टानों को कमजोर करते हैं. इस कारण अत्यधिक भारी बारिश से भूस्खलन होने लगता है.
डीपीआर में भूस्खलन के ट्रीटमेंट की व्यवस्था: उत्तराखंड आपदा नियंत्रण सचिव रंजीत सिन्हा का कहना है कि उत्तराखंड में जो लैंडस्लाइड हुए हैं, उसकी स्टडी की जा रही है. ताकि, असली कारणों को जाना जा सके. साथ ही देखा जा रहा है कि जहां लैंडस्लाइड हो रहा है, उसके पास क्या कोई नदी थी या फिर रोड कटिंग के कारण भूस्खलन हुआ है, या फिर कोई हैवी कंस्ट्रक्शन हुआ, जो कि भूस्खलन कारण बना है. उन्होंने बताया कि किसी भी सड़क के निर्माण के डीपीआर में ही भूस्खलन के ट्रीटमेंट की व्यवस्था हो, इसकी रिकमेंडेशन की जाएगी.
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