देहरादून: भारत 21 अक्टूबर को 62वां 'पुलिस स्मृति दिवस' (Police Commemoration Day 2021) मना रहा है. इस मौके पर सीएम पुष्कर सिंह धामी ने पुलिसकर्मियों को दिवाली का तोहफा देते हुए वर्ष 2001 के आरक्षी पुलिसकर्मियों ग्रेड-पे को 4600 करने की मंजूरी दी है. इस अवसर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा शहीद पुलिसकर्मियों को श्रद्धांजलि देते हुए उनके परिजनों को सम्मान दिया.
मुख्यमंत्री द्वारा महत्वपूर्ण घोषणाएं
- कोविड 19 महामारी के नियंत्रण में सराहनीय कार्य करने वाले पुलिस विभाग के चतुर्थ श्रेणी कर्मी से निरीक्षक (इंस्पेक्टर) स्तर तक सभी कार्मिकों को 10 हजार की प्रोत्साहन राशि दी जाएगी.
- इनामी अपराधियों को गिरफ्तार करने के लिए पुरस्कार धनराशि में वृद्धि करने की घोषणा.अब डीजीपी 20 हजार से बढ़कर 2 लाख तक धनराशि संगीन अपराधियों परिणाम घोषित कर सकते हैं.
- शहीद पुलिसकर्मियों के नाम पर स्कूल और सड़क का नामकरण किया जाएगा.
- पुलिस प्रशिक्षण केंद्रों में अतिथि शिक्षकों को उत्तराखंड प्रशासनिक अकादमी नैनीताल के अनुरूप मानदेय में वृद्धि की जाएगी.
- देहरादून में राज्य पुलिस संग्रहालय मेमोरियल की स्थापना की जाएगी.
- वर्ष 2001 में भर्ती पुलिस जवानों को 4600 ग्रेड पर दिया जाएगा. बाकी प्रकरणों को कैबिनेट उपसमिति और वेतन विसंगति समिति द्वारा समीक्षा कर देखा जाएगा.
एक वर्ष में 377 पुलिस अर्धसैनिक हुए शहीद: पुलिस स्मृति दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि आज विश्व आतंकवाद और कोविड-19 की महामारी जैसी चुनौतियों से जूझ रहा है. इस चुनौती का डटकर सामना किया जा रहा है जिसमें पुलिस फोर्स की महत्वपूर्ण भूमिका सामने आई है. इसको रोना का उत्तराखंड पुलिस के 13 कर्मचारी जवान ड्यूटी के दौरान संक्रमित होकर अपनी जान गंवा चुके हैं.
मुख्यमंत्री यह कहा कि धामी ने कहा कि उत्तराखंड राज्य के अंतरराष्ट्रीय सीमाएं नेपाल चीन और अंतरराज्यीय सीमा हिमाचल प्रदेश उत्तर प्रदेश से मिलती हैं. ऐसे में यह प्रदेश भौगोलिक सामरिक महत्व के दृष्टिगत राष्ट्र की सुरक्षा के लिए अत्यंत संवेदनशील और महत्वपूर्ण है. इसी के दृष्टिगत उत्तराखंड पुलिस के समक्ष कई चुनौतियां सामने आई है, पुलिस ने हर मोर्चे पर अपने सराहनीय सेवा परिचय दिया है.
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62 साल पहले भारत-चीन का वो डरावना मंजर: 20 अक्टूबर 1959 को बल की तीसरी वाहिनी (थर्ड बटालियन) उस दिन पूर्वी लद्दाख के इसी 'हॉट स्प्रिंग्स' सीमा पर निगरानी कर रही थी. जवानों की उस टुकड़ी को तीन भागों में बांटकर गश्त की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. 20 अक्टूबर 1959 को चीन सीमा पर गश्त को निकली उन 3 में से दो टुकडियां तो वापस लौट आईं. तीसरी टुकड़ी वापस नहीं लौटी. वापस न लौटने वाली उस तीसरी टुकड़ी में दो सिपाही और एक पोर्टर शामिल थे. 20 अक्टूबर 1959 को दोपहर से 21 अक्टूबर को सुबह तक जब तीसरी टुकड़ी वापस नहीं लौटी तो अपनी उस खोई हुई टुकड़ी की तलाश के लिए एक और टुकड़ी तैयार की गई.
गायब तीसरी टुकड़ी की तलाश के लिए गठित की गई नई टुकड़ी में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के 20 जवानों को शामिल किया गया. उस तलाशी टीम का नेतृत्व खुद बल के डीसीआईओ (डिप्टी सेंट्रल इंटेलीजेंस ऑफिसर) सब-इंस्पेक्टर करम सिंह कर रहे थे. सुरक्षा के लिहाज से एहतियातन करम सिंह ने अपनी उस विशेष तलाशी टुकड़ी को भी तीन अलग-अलग टुकड़ियों में बांट लिया था. ताकि किसी एक टुकड़ी के मुसीबत में फंसने पर बाकी टुकड़ियां या टुकड़ी मुसीबत में फंसी टुकड़ी के जवानों को मदद कर सकें. खुद घोड़े पर सवार होकर करम सिंह तीनों टुकड़ियों के साथ एक दिन पहले से गायब अपने तीनों जवानों की तलाश में, 21 अक्टूबर 1959 को सीमांत (हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र) क्षेत्र में निकल गए.
करम सिंह तीनों टुकड़ियों के साथ अभी कुछ ही दूरी पर पहुंचे थे कि इसी दौरान सैकड़ों चीनी सैनिकों ने गोलियों-बमों से उन पर हमला कर दिया. हमले के वक्त चूंकि चीनी सैनिक ऊंची पहाड़ी पर छिपे थे. जबकि करम सिंह और उनकी तीनों टीमें निचले हिस्से में हमलावरों के वार की जद में चारों ओर से फंस चुकीं थीं. लिहाजा चीनी सैनिकों के उस हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के 10 बहादुर जवान मोर्चा लेते हुए मौके पर ही शहीद हो गए, जबकि 7 रणबांकुरे बुरी तरह ज़ख्मी हो गए. शहीद 10 जवानों के शवों संग, घायल 7 हिंदुस्तानी जवानों को भी चीनी सैनिक बंधक बनाकर अपने साथ ले गए. हालांकि चीन द्वारा छिपकर किए गए उस कायराना हमले में भी मोर्चा लेते हुए कई हिंदुस्तानी बहादुर जवान खुद को सुरक्षित बचाने में कामयाब रहे थे.
उस घटना के बाद चीन ने 13 नवंबर 1959 को यानी करीब 22-23 दिन बाद हमारे बहादुर शहीद सैनिकों के शव हिंदुस्तान को लौटाए. उन शहीदों का 'हॉट-स्प्रिंग्स' में ही पुलिस सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया. इस सबके बाद जनवरी 1960 के मध्य में हमारे राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों के तमाम आला-पुलिस प्रमुखों के वार्षिक सम्मेलन का आयोजन किया गया.