देहरादून: उत्तराखंड में नई विकास योजनाओं को शुरू करने से पहले राज्य सरकारों को सौ बार सोचना होता है. प्रदेश की खराब आर्थिक स्थिति इसकी बड़ी वजह है. साल दर साल प्रदेश कर्ज के बोझ तले दबा जा रहा है. इसके बाद भी मौजूदा सरकार जनता को 100 यूनिट फ्री बिजली देने का वादा कर चुकी है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि प्रदेश के लिए ये मुफ्त का सौदा कहीं आने वाले दिनों में महंगा तो नहीं पड़ने वाला है. प्रदेश की आर्थिक स्थिति को देखकर लगता तो ऐसा ही है.
उत्तराखंड की 1.30 करोड़ जनसंख्या को मुफ्त की योजनाएं देना दलों के लिए तो राजनीतिक रूप से फायदेमंद हो सकता है. लेकिन अर्थशास्त्री राज्य के लिए इसे बड़ा नुकसान मानते हैं. दरअसल, राज्य स्थापना के बाद 3.5 हजार करोड़ का कर्ज बढ़कर अब 50000 करोड़ के कर्ज तक पहुंच गया है. स्थिति यह है कि सरकार लिए गए कर्ज को चुकाने के लिए भी कर्ज ले रही है.
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सरकार ने इस महीने 700 करोड़ का कर्ज लिया है, जबकि हर महीने करीब 500 करोड़ का कर्ज राज्य को लेना पड़ रहा है. कोरोना काल में प्रदेश की स्थिति और भी ज्यादा खराब हुई है. उत्तराखंड को कोरोना काल में करीब 4000 करोड़ से ज्यादा का नुकसान हो चुका है. स्थिति यह है कि प्रदेश की आर्थिक विकास दर शून्य से 4% तक नीचे गिर चुकी है. इन सभी स्थितियों के बीच प्रदेश में सरकार ने लोगों को 100 यूनिट बिजली फ्री और 200 यूनिट बिजली पर 50% तक की सब्सिडी देने का फैसला लिया है.
ऊर्जा विभाग पर फ्री बिजली का क्या होगा असर: ऊर्जा मंत्री हरक सिंह रावत के 100 यूनिट फ्री बिजली से 210 करोड़ का अतिरिक्त भार सरकार पर आएगा. 200 यूनिट तक 50% की सब्सिडी से करीब इतना ही और बोझ बढ़ेगा. यानी करीब 500 करोड़ तक का सालाना वित्तीय बोझ विभाग और सरकार को झेलना होगा. आम आदमी पार्टी की 300 यूनिट फ्री की घोषणा से करीब 800 करोड़ से ज्यादा का सरकार को वित्तीय नुकसान होगा. मौजूदा समय में ऊर्जा विभाग 200 करोड़ के सालाना नुकसान में चल रहा है. यूपीसीएल को मिलने वाली रॉयल्टी का 12.5% खुद यूपीसीएल के ही इस्तेमाल में खर्च हो जाता है, जबकि राज्य सरकार को इस ऊर्जा विभाग ने 900 करोड़ से ज्यादा कभी नहीं दिए हैं.
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उत्तराखंड 40000 मेगावाट बिजली उत्पादन करने की क्षमता रखता है. जिसमें से अब तक करीब 4000 मेगावाट का ही उत्पादन किया जा रहा है. अगर राज्य सरकार बिजली उत्पादन में तेजी से बढ़ोतरी करती है तो राज्य के राजस्व में बेहतरी लाने के साथ मुफ्त बिजली देने की स्थिति बन सकती है. हालांकि अभी 3993 मेगावाट की परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि अब भी करीब 1000 करोड़ तक का नुकसान बिजली की चोरी के चलते हो रहा है. यानी ऊर्जा विभाग की सबसे बड़ी चुनौती इस वक्त लाइन लॉस को कम करना है.
घाटे में तमाम कॉरपोरेशन: उत्तराखंड सरकार का खजाना इस वक्त पूरी तरह से खाली है. कर्जा भी दिनों दिन बढ़ रहा है. इन हालातों में तमाम निगमों की स्थिति भी खराब प्रबंधन के कारण बेहाल होती रही है. जब बात फ्री योजना की हो तो इसमें उत्तराखंड परिवहन निगम का उदाहरण सबसे जरूरी है. दरअसल, उत्तराखंड परिवहन निगम में खराब प्रबंधन और सरकार की नजरअंदाजगी के अलावा मुफ्त की योजनाओं ने इसका बंटाधार किया है.
निगम में बुजुर्गों से लेकर युवाओं और महिलाओं तक के सफर को मुक्त करना निगम के लिए मुश्किल भरा फैसला रहा. इससे करीब 500 करोड़ से ज्यादा का नुकसान परिवहन निगम को हो रहा है. 20 करोड़ से ज्यादा की रकम वेतन और पेंशन भी खर्च हो रही है. उत्तराखंड परिवहन निगम करीब 12 करोड़ रुपये सालाना फ्री की योजना में सरकार से प्रतिपूर्ति लेता है. उधर करीब 50 करोड़ रुपये हिल लॉस के रूप में राज्य सरकार को होता है.
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जनता के हित में लेना पड़ता है फैसला: राज्यवासियों को मुफ्त की योजनाओं से आकर्षित करने के प्रयास राज्य सरकारें करती रही हैं. हालांकि राजस्व के रूप में इसका भारी नुकसान होता है. राजनीतिक रूप से इसे बड़ा कम माना जाता है. इस पर राज्य सरकार के शासकीय प्रवक्ता सुबोध उनियाल कहते हैं कि कई बार राजस्व की चिंता किए बिना सरकार को लोगों के हितों में कदम उठाने पड़ते हैं. आर्थिक रूप से भारी दबाव होने के बावजूद भी जनता को प्राथमिकता देते हुए उनकी जरूरतों और मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मुफ्त की योजनाओं को उन तक पहुंचाना होता है.
वहीं, अर्थशास्त्री जेपी मेहता कहते हैं कि सरकार लोगों को राहत देने के लिए उनके आर्थिक स्थितियों को देखते हुए योजनाएं बना सकती है. इसमें लोगों के बिलों को कुछ हद तक कम किया जा सकता है, लेकिन सभी लोगों को फ्री बिजली या योजना का लाभ देना राज्य हित में नहीं है. उत्तराखंड में प्रति व्यक्ति आय 202695 है. इससे समझा जा सकता है कि राज्य में बड़ी संख्या में लोग बिजली का बिल देने में सक्षम हैं. हालांकि, बीपीएल परिवारों को इसमें कुछ राहत दी जा सकती है.
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मुफ्त का सौदा पड़ेगा महंगा: उत्तराखंड का मौजूदा वित्तीय वर्ष में बजट 57000 करोड़ का है. इसमें करीब 30000 करोड़ से ज्यादा का खर्चा कर्मचारियों के वेतन, पेंशन और लिए गए कर्ज के ब्याज में चला जाता है. इस लिहाज से योजनाओं के लिए प्रदेश के पास बजट की भारी कमी रहती है. यही कारण है कि उत्तराखंड सरकार को हमेशा ही मदद के लिए केंद्रीय योजनाओं की ओर देखना पड़ता है. यही नहीं, राज्य को नई योजनाएं बनाने में भी खासी मशक्कत करनी पड़ती है. कई बार अहम योजनाओं का भी बजट की कमी के कारण बंटाधार हो जाता है.
टैक्स के रूप में जनता से होती है वसूली: सरकारें जनता के लिए जो भी योजनाओं बनाती है, उसकी वसूली भी जनता से ही की जाती है. इसके लिए तमाम तरह के टैक्स लगाये जाते हैं. इसके अलावा जनता से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भी पैसा लिया जाता है. टैक्स के अलावा भी सरकार की कमाई के दर्जनों रास्ते हैं. सरकार की जो सेवाएं इस्तेमाल करते हैं उनकी फीस, बिजली, टेलीफोन, गैस जैसे बिल में एक छोटा हिस्सा, तमाम चीजों पर मिलने वाली रॉयल्टी, लाइसेंस फीस, सड़कों, पुलों का टोल टैक्स, वगैरह की फीस से भी सरकार कमाई करती है. जो आप या हम ही भरते हैं.
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साल 2019-20 में प्रदेश को 2136 करोड़ का राजस्व घाटा हुआ था. इस दौरान उत्तराखंड में कुल 11513 करोड़ का राजस्व इकट्ठा किया. इस तरह सालाना राजकोषीय घाटा 7657 करोड़ रहा. साल 2020-21 में 3080 करोड़ का राजस्व घाटा हुआ. सालाना राजकोषीय घाटा 10802 करोड़ रहा. वहीं, इस साल करीब 15 हजार करोड़ राजस्व मिलने की उम्मीद है.