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बाल विवाह की कुप्रथा से उत्तराखंड भी अछूता नहीं, जानिए वर्तमान स्थिति

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Published : Feb 14, 2021, 4:54 PM IST

देश में बाल विवाह की दर में भले ही कमी आई हो, लेकिन उत्तराखंड में अभी भी यह प्रथा जारी है. राज्य में पिछले दो साल के आंकड़ों पर गौर करें तो यह चौकाने वाले हैं. एक नजर में देवभूमि में बाल विवाह की स्थिति.

Dehradun Latest News
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देहरादून: देश के विभिन्न राज्यों में आज भी लोग विभिन्न कारणों से बाल विवाह की कुप्रथा को आगे बढ़ा रहे हैं. वहीं, इससे पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड भी अछूता नहीं है. हालांकि, उत्तराखंड में बाल विवाह के मामले अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम है. लेकिन गरीबी के साथ ही अन्य विभिन्न कारणों के चलते प्रदेश में भी आज भी बाल विवाह हो रहे हैं.

बाल विवाह की कुप्रथा से उत्तराखंड भी अछूता नहीं.

बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 की धारा 9 में यह साफ किया गया है कि 21 वर्ष से कम आयु के पुरुष या 18 वर्ष से कम आयु की महिला के विवाह को बाल विवाह की श्रेणी में रखा जाएगा. इस अधिनियम के अंतर्गत किए गए अपराध संज्ञेय और गैर जमानती है. साथ ही इस अधिनियम के तहत अवयस्क बालक के विवाह को अमान्य करने का भी प्रावधान है.

बाल विवाह की कुप्रथा के विषय में देहरादून के जिला कार्यक्रम अधिकारी अखिलेश मिश्र बताते हैं कि प्रदेश के सुदूर ग्रामीण इलाकों में आज भी बाल विवाह हो रहे हैं. लेकिन इन्हें काफी हद तक नियंत्रित किया गया है. प्रदेश सरकार की ओर से प्रत्येक जनपद में जिला कार्यक्रम अधिकारी को बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी की जिम्मेदारी सौंपी गई है. ऐसे में जब कभी भी बाल विवाह से जुड़े कोई शिकायत सामने आती है तो तुरंत तत्काल प्रभाव से कार्रवाई कर उस विवाह को रुकवाया जाता है.

पढ़ें- हरिद्वार नाबालिग रेप केस: पीड़ित परिवार से मिले पूर्व सीएम हरीश रावत, दिया ये आश्वासन

बाल विवाह के आंकड़े

जिला2019-202020-21
अल्मोड़ा 0000
बागेश्वर 0209
चमोली 0100
चम्पावत 0001
देहरादून 0102
हरिद्वार 0000
नैनीताल 0004
पौड़ी 0000
पिथौरागढ़ 0101
रुद्रप्रयाग 0000
टिहरी 0100
ऊधम सिंह नगर0200
उत्तरकाशी 0000
कुल 0817

बता दें, बाल विवाह के मामलों में अक्सर दो तरह की स्थितियां सामने आती हैं. एक स्थिति जिसमें बाल विवाह कराया जा रहा होता है. वहीं दूसरी स्थिति जिसमें बाल विवाह हो चुका होता है. ऐसे में अगर बाल विवाह कराया जा रहा हो तो इस स्थिति में मौके पर पहुंचकर बाल विकास विभाग की टीम बाल विवाह करने के पीछे के कारणों का पता लगाकर बालक के परिवारजनों कि काउंसिलिंग करते हैं.

वहीं, दूसरे मामले में अगर जबरन बाल विवाह हो चुका होता है, तो इस स्थिति में बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 की धारा-9 के तहत बालक के परिवारजनों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई अमल में लाई जाती है, जिसमें जुर्माने के साथ ही सीधे जेल भेजने का प्रावधान है.

प्रदेश में बाल विकास विभाग के संज्ञान में आए बाल विवाह के मामले

बता दें, देश के किसी भी अन्य राज्य की तरह ही प्रदेश में होने वाले बाल विवाह के भी कई कारण है. जैसे गरीबी, बेटियों को आर्थिक रूप से कमजोर समझना इत्यादि. इसके साथ ही कई बार बाल विवाह की एक बड़ी वजह सामाजिक दबाव और परंपराएं भी होती हैं.

बहरहाल, कुल मिलाकर देखें तो बाल विवाह एक ऐसा अपराध है जिससे कई जिंदगियां बर्बाद हो जाती हैं. विभिन्न सामाजिक कारणों के चलते माता-पिता अपने बच्चों का बाल विवाह तो कर देते हैं लेकिन ऐसा कर कहीं न कहीं वह अपने बच्चों का बचपन जरूर छीन लेते हैं.

देहरादून: देश के विभिन्न राज्यों में आज भी लोग विभिन्न कारणों से बाल विवाह की कुप्रथा को आगे बढ़ा रहे हैं. वहीं, इससे पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड भी अछूता नहीं है. हालांकि, उत्तराखंड में बाल विवाह के मामले अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम है. लेकिन गरीबी के साथ ही अन्य विभिन्न कारणों के चलते प्रदेश में भी आज भी बाल विवाह हो रहे हैं.

बाल विवाह की कुप्रथा से उत्तराखंड भी अछूता नहीं.

बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 की धारा 9 में यह साफ किया गया है कि 21 वर्ष से कम आयु के पुरुष या 18 वर्ष से कम आयु की महिला के विवाह को बाल विवाह की श्रेणी में रखा जाएगा. इस अधिनियम के अंतर्गत किए गए अपराध संज्ञेय और गैर जमानती है. साथ ही इस अधिनियम के तहत अवयस्क बालक के विवाह को अमान्य करने का भी प्रावधान है.

बाल विवाह की कुप्रथा के विषय में देहरादून के जिला कार्यक्रम अधिकारी अखिलेश मिश्र बताते हैं कि प्रदेश के सुदूर ग्रामीण इलाकों में आज भी बाल विवाह हो रहे हैं. लेकिन इन्हें काफी हद तक नियंत्रित किया गया है. प्रदेश सरकार की ओर से प्रत्येक जनपद में जिला कार्यक्रम अधिकारी को बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी की जिम्मेदारी सौंपी गई है. ऐसे में जब कभी भी बाल विवाह से जुड़े कोई शिकायत सामने आती है तो तुरंत तत्काल प्रभाव से कार्रवाई कर उस विवाह को रुकवाया जाता है.

पढ़ें- हरिद्वार नाबालिग रेप केस: पीड़ित परिवार से मिले पूर्व सीएम हरीश रावत, दिया ये आश्वासन

बाल विवाह के आंकड़े

जिला2019-202020-21
अल्मोड़ा 0000
बागेश्वर 0209
चमोली 0100
चम्पावत 0001
देहरादून 0102
हरिद्वार 0000
नैनीताल 0004
पौड़ी 0000
पिथौरागढ़ 0101
रुद्रप्रयाग 0000
टिहरी 0100
ऊधम सिंह नगर0200
उत्तरकाशी 0000
कुल 0817

बता दें, बाल विवाह के मामलों में अक्सर दो तरह की स्थितियां सामने आती हैं. एक स्थिति जिसमें बाल विवाह कराया जा रहा होता है. वहीं दूसरी स्थिति जिसमें बाल विवाह हो चुका होता है. ऐसे में अगर बाल विवाह कराया जा रहा हो तो इस स्थिति में मौके पर पहुंचकर बाल विकास विभाग की टीम बाल विवाह करने के पीछे के कारणों का पता लगाकर बालक के परिवारजनों कि काउंसिलिंग करते हैं.

वहीं, दूसरे मामले में अगर जबरन बाल विवाह हो चुका होता है, तो इस स्थिति में बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 की धारा-9 के तहत बालक के परिवारजनों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई अमल में लाई जाती है, जिसमें जुर्माने के साथ ही सीधे जेल भेजने का प्रावधान है.

प्रदेश में बाल विकास विभाग के संज्ञान में आए बाल विवाह के मामले

बता दें, देश के किसी भी अन्य राज्य की तरह ही प्रदेश में होने वाले बाल विवाह के भी कई कारण है. जैसे गरीबी, बेटियों को आर्थिक रूप से कमजोर समझना इत्यादि. इसके साथ ही कई बार बाल विवाह की एक बड़ी वजह सामाजिक दबाव और परंपराएं भी होती हैं.

बहरहाल, कुल मिलाकर देखें तो बाल विवाह एक ऐसा अपराध है जिससे कई जिंदगियां बर्बाद हो जाती हैं. विभिन्न सामाजिक कारणों के चलते माता-पिता अपने बच्चों का बाल विवाह तो कर देते हैं लेकिन ऐसा कर कहीं न कहीं वह अपने बच्चों का बचपन जरूर छीन लेते हैं.

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