देहरादून: उत्तराखंड देश के चुनिंदा ऐसे राज्यों में शामिल हो गया है, जहां जनसंख्या के लिहाज से सबसे ज्यादा संक्रमित मिल रहे हैं. इन स्थितियों से निपटने के लिए राज्य सरकार और उनके अधिकारी हर दिन नए आंकड़े देकर तैयारियों के फुलप्रूफ होने का दावा कर रहे हैं. लेकिन हकीकत यह है कि इन दावों से उलट अब भी मरीजों को अस्पतालों से बैरंग लौटना पड़ रहा है. अस्पतालों में न तो आईसीयू बेड खाली हैं और ना ही वेंटिलेटर उपलब्ध हैं.
व्यवस्थाओं पर खड़े हो रहे सवाल
राज्य सरकार की तरफ से वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों को नोडल अधिकारी नामित किया गया है. अस्पतालों में बेड की व्यवस्था से लेकर जरूरी दवाओं की उपलब्धता और कालाबाजारी को रोकने तक में अलग-अलग अधिकारी नोडल बनाए गए हैं. इन्हीं व्यवस्थाओं के तहत स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी और पंकज पांडे हफ्ते में करीब 2 या 3 दिन सरकार की तैयारियों के फुलप्रूफ होने से जुड़े आंकड़े भी पेश करते हैं. आंकड़ों पर सवाल खड़े नहीं किए जा सकते लेकिन इन दावों के बीच एक बात तो शत-प्रतिशत सही है कि सभी मरीजों को अस्पतालों में न तो बेड मिल पा रहे हैं और ना ही जरूरी दवाएं दी जा रही हैं, जो कि व्यवस्थाओं पर सवाल खड़े कर रहे हैं.
पढ़ें- कोविड केयर सेंटर में बना ICU वॉर्ड शुरू, विधायक ने केरल से बुलाए टेक्नीशियन
पॉजिटिविटी रेट में आ रहा अंतर
राज्य में कोरोना संक्रमण की जांच को लेकर आंकड़े बताते हैं कि करीब 32 हजार लोगों की जांच हर दिन राज्य में हो पा रही है. 12 मई के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में 34,893 लोगों की रिपोर्ट आई. इसमें 7,749 लोग पॉजिटिव थे. 27,144 लोग निगेटिव थे. उधर आज की डेट में 20,271 लोग ऐसे हैं जिनके सैंपल तो लिए गए हैं लेकिन रिपोर्ट उन तक नहीं पहुंच पाई है. राज्य में आज की डेट में सैंपल पॉजिटिविटी रेट 6.38 प्रतिशत है. अब इसी आंकड़े को 1 मई से तुलना करें तो 1 मई को 32,568 लोगों की कोरोना रिपोर्ट आई. इसमें 27,075 लोग निगेटिव थे. 5,493 लोग संक्रमित पाए गए. राज्य में 1 मई को 28,557 लोग ऐसे थे जिनके सैंपल ले लिए गए थे. 1 मई को सैंपल पॉजिटिविटी रेट आज की तुलना में बेहद कम था. 1 मई को 4.88% पॉजिटिविटी रेट था.
पढ़ें- कोविड केयर सेंटर में बना ICU वॉर्ड शुरू, विधायक ने केरल से बुलाए टेक्नीशियन
खुद ही जांच करवा रहे ज्यादातर लोग
प्रदेश में कोरोना जांच के लिए या तो ऐसे लक्षणों से पीड़ित लोग खुद सरकारी या निजी लैब में पहुंच रहे हैं, या फिर पॉजिटिव पाए जाने वाले व्यक्ति के संपर्क में आए लोगों की कोरोना जांच हो रही है. इसके अलावा दूसरे प्रदेशों से उत्तराखंड आने वाले लोगों की बॉर्डर पर जांच की जा रही है. साथ ही समय-समय पर फ्रंटलाइन वर्कर्स की भी कोविड-19 जांच की जा रही है. इसके अलावा 1 जिले से दूसरे जिले में जा रहे लोगों की भी जांच हो रही है.
टेस्ट करवाने के तीन-चार दिन बाद मिल रही रिपोर्ट
आम लोग सरकारी लैब के अलावा निजी लैब की तरफ भी रुख कर रहे हैं. इसकी वजह सरकारी अस्पतालों में भारी भीड़ के कारण लोग निजी लैब की तरफ जा रहे हैं. यही नहीं निजी लैब पर कुछ लोगों का ज्यादा भरोसा होने के कारण भी लोग वहां पहुंच रहे हैं, जबकि सोशल डिस्टेंसिंग और बेहतर सुविधाएं देने के कारण भी निजी लैब की ओर लोग रुख कर रहे हैं. सरकारी अस्पताल में टेस्ट कराने वाले लोगों की संख्या भी कम नहीं है. उधर सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि टेस्ट कराने वाले लोगों को उनकी रिपोर्ट तीन या चार दिनों बाद ही मिल रही है.
पढ़ें- CM तीरथ से मिले कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह, सौंपा मांगों का ज्ञापन
स्वास्थ्य सुविधाएं साबित हो रहीं नाकाफी
राज्य सरकार की तरफ से आंकड़े प्रस्तुत करते हुए अप्रैल 2020 और अप्रैल 2021 के साथ ही मई में स्वास्थ्य सुविधाओं में किए गए विकास को लेकर जानकारी दी जा रही है. वैसे तो राज्य सरकार की तरफ से प्रदेश में सभी स्तर पर सुविधाएं बढ़ाई गई हैं, लेकिन यह भी सच है कि यह सुविधाएं नाकाफी साबित हो रही हैं.
5,000 व्यक्तियों पर राज्य में एक चिकित्सक
दावों के तुलनात्मक रूप से जमीनी स्थितियों को देखें तो प्रदेश में अब भी चिकित्सकों की कमी है. आंकड़ों के रूप में देखें तो करीब 5,000 व्यक्तियों पर राज्य में एक चिकित्सक है. प्रदेश में अभी 2,500 चिकित्सक हैं. राज्य में कुल ऑक्सीजन सपोर्टेड बेड की संख्या 5,770 है. आईसीयू बेड 1,353 हैं. इनमें राजधानी देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल और उधम सिंह नगर जिन जिलों में सबसे ज्यादा मरीज हैं, वहां पर सभी बेड करीब करीब फुल हैं.
पढ़ें- उत्तराखंड के मंत्रियों के निशाने पर क्यों हैं पूर्व CM त्रिवेंद्र, जानिए अंदर की कहानी
ऑक्सीजन सपोर्टेड बेड की कमी
ऐसे में देहरादून के दून मेडिकल कॉलेज से ही हर दिन करीब 8 से 10 मरीज आईसीयू बेड या ऑक्सीजन सपोर्टेड बेड की डिमांड पूरी ना होने कारण वापस लौट जाते हैं. राज्य में 135 निजी और सरकारी अस्पताल हैं, इनमें सबसे ज्यादा मैदानी जिलों में हैं. इसके बावजूद मरीजों की मौजूदा संख्या को नहीं संभाला जा पा रहा है.
दाह संस्कार तक के लिए करना पड़ रहा इंतजार
हैरानी की बात यह है कि मौजूदा महामारी में मृत्यु दर बढ़ने के बाद श्मशान घाटों पर भी मृतकों को जगह नहीं मिल पा रही है. इसी महीने मई में देहरादून के दून मेडिकल कॉलेज में मोर्चरी फुल हो गई थी. यहां पर मरने वाले मरीजों के शवों को भी रखने की जगह नहीं थी. श्मशान घाट रायपुर में एक ही समय पर कई चिताएं जल रही थी. स्थिति यह हो गई थी कि टोकन लेकर अपने मरीज के शव के दाह संस्कार करने का इंतजार करना पड़ा.
पढ़ें- उत्तराखंड : 14 मई को खुलेंगे यमुनोत्री धाम के कपाट
मरीजों को नहीं मिल रही कोरोना किट
अस्पतालों में कर्मचारियों की इस कदर कमी है कि मरीजों को ठीक से देखने वाला भी कोई नहीं मिल रहा है. इस दौरान सरकार ने कई संस्थानों को कोविड-19 सेंटर के रूप में स्थापित किया है, लेकिन अस्पतालों में कर्मचारियों की कमी ने व्यवस्थाओं को पटरी पर आने ही नहीं दिया है. राज्य में कोरोना किट के जरिए 90% कोरोना संक्रमित मरीजों को ठीक करने के दावे भी फेल साबित हुए हैं. कई लोगों को टेस्टिंग कराने के बाद भी कोरोना किट नहीं मिल पा रही हैं.
रेमडेसिविर इंजेक्शन और दूसरे स्वास्थ्य उपकरणों की कालाबाजारी
राज्य में महामारी के दौरान बेहद महत्वपूर्ण माने जा रहे इंजेक्शन की कालाबाजारी के मामले भी सामने आए हैं. प्रदेश में अब तक केंद्र सरकार से 20,000 रेमडेसीविर इंजेक्शन मिल चुके हैं. राज्य में इसकी कोई कमी नहीं होने का दावा भी किया गया. मगर हकीकत में अस्पतालों में मरीजों को इंजेक्शन मिल ही नहीं पा रहे हैं. इसकी वजह कालाबाजारी को माना गया है. हाईकोर्ट ने जब आदेश दिए तब सरकार ने ड्रग इस्पेक्टरों की कालाबाजारी को रोकने के लिए ड्यूटी लगाई. उधर पुलिस विभाग ने भी टीम बनाकर कालाबाजारी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की है. इंजेक्शन की कालाबाजारी को लेकर बेहद कम मामले अभी तक मिले हैं.
पढ़ें- कोविड केयर सेंटर में बना ICU वॉर्ड शुरू, विधायक ने केरल से बुलाए टेक्नीशियन
नकली इंजेक्शन बनाने वाली एक कंपनी का भंडाफोड़
फिलहाल नकली इंजेक्शन बनाने वाली एक कंपनी का भंडाफोड़ कर छह लोगों को गिरफ्तार किया गया है. इसके अलावा कोई बड़ा मामला अब तक सामने नहीं आया. इसके बावजूद स्थानीय स्तर पर कालाबाजारी करने वाले 10 से ज्यादा लोगों को अब तक पुलिस मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार कर चुकी है.
हमलावर कांग्रेस
इस मामले पर कांग्रेस के नेता कहते हैं कि सरकार ने पहली लहर के दौरान तैयारियां नहीं की. जिसका खामियाजा लोगों को उठाना पड़ रहा है. सरकार और अधिकारियों के दावे हवा-हवाई दिख रहे हैं. जमीनी हकीकत यह है कि लोगों को ना तो बेड मिल रहे हैं ना ही इंजेक्शन. इतना ही नहीं मरने के बाद दाह संस्कार करने के लिए लोगों को उचित जगह भी समय पर नहीं मिल रही है.