देहरादून: 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने के लिए उत्तराखंड सरकार जीरो बजट कृषि पर फोकस कर रही है. इसकी उपयोगिता को समझने के लिए राज्य सरकार ने कृषि विशेषज्ञों को जिम्मेदारी सौंपी है. जीरो बजट कृषि को लेकर गुरुवार को देहरादून में कार्यशाला का आयोजन किया गया. जिसमें मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी मौजूद रहे.
देशभर में शून्य बजट प्राकृतिक कृषि को लेकर अभियान चलाने वाले पद्मश्री सुभाष पालेकर गुरुवार को देहरादून में थे. पालेकर दून में शून्य बजट प्राकृतिक कृषि कार्यशाला में पहुंचे थे, जहां उन्होंने कृषि की इस प्रणाली से जुड़ी जानकारियां विशेषज्ञों को दी.
किसानों की आय दोगुनी करने समेत देश को कार्बन उत्सर्जन से बचाने के लिए शून्य बजट प्राकृतिक कृषि प्रणाली का अहम योगदान होगा. कृषि वैज्ञानिक सुभाष पालेकर के दावों पर यकीन करें तो उत्तराखंड में किसानों की आय बढ़ाने के लिए शून्य बजट प्राकृतिक कृषि एक अहम योगदान अदा कर सकती है.
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यही नहीं सुभाष पालेकर कृषि से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान के लिए भी प्राकृतिक कृषि को वरदान बताते हैं. देहरादून में आयोजित जीरो बजट प्राकृतिक कृषि कार्यशाला में सुभाष पालेकर ने बताया कि रसायनिक खेती लोगों को जहरीले खाद्य पदार्थ देती है और इससे भूमि की उर्वरक शक्ति को भी नुकसान होता है.
जैविक खेती आम लोगों के स्वास्थ्य समेत पर्यावरण के लिए सही नहीं है. ऐसे में उनके द्वारा अविष्कार की गई प्राकृतिक कृषि प्रणाली ही एकमात्र विकल्प है जो उत्पादन में बढ़ोतरी से किसानों की आय बढ़ाने समेत स्वास्थ्य के लिए बेहतर अनाज उत्पादन की क्षमता रखती है. जबकि इस खेती में किसानों द्वारा लगाए जाने वाला बजट न के बराबर होता है. इसमें कीटनाशक पदार्थों की जरूरत नहीं होती है और न ही किसी औषधि की जरूरत पड़ती है.
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10 लाख से ज्यादा किसान अपना चुके हैं प्राकृतिक कृषि को
बताया जाता है कि देशभर में करीब 10 लाख किसान प्राकृतिक कृषि को अपना चुके हैं. इसी दिशा में महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और गुजरात पहले ही नई प्रणाली को अपनाने पर विचार कर रहे हैं. वहीं अब उत्तराखंड में भी इस नई प्रणाली को सीखने के लिए कृषि विशेषज्ञों के साथ मिलकर इस पर मंथन शुरू कर दिया है.
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बताया कि नई प्रणाली के बारे में जितना सुना है वह बेहद उत्साहजनक है. इसी को देखते हुए अब कृषि विशेषज्ञों को इस प्रणाली के बारे में चिंतन मंथन कर उत्तराखंड के परिपेक्ष में इसकी उपयोगिता पर चिंतन करने के लिए निर्देशित किया गया है.