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उत्तराखंड में अब खत्म हो जाएगा 161 साल पुराना पटवारी सिस्टम, सरकार ने SC में पेश किया ब्यौरा

उत्तराखंड सरकार पटवारी सिस्टम को खत्म करने जा रही है. देश के एक मात्र राज्य में चल रही राजस्व पुलिस की वर्ष 1861 से चल रही व्यवस्था का अंत हो जाएगा. ऐसे में प्रदेश में सभी आपराधिक मामलों की जांच अब पुलिस करेगी. सभी केस चरणबद्ध तरीके से पुलिस के पास जांच के लिए भेजे जाएंगे. उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामा में यह बात कही है.

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Published : Oct 19, 2022, 2:28 PM IST

Updated : Oct 19, 2022, 4:27 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड सरकार ने SC में हलफनामा दिया, जिसमें कहा गया है कि उत्तराखंड में सभी आपराधिक केसों की जांच अब पुलिस करेगी. सभी केस चरणबद्ध तरीके से पुलिस के पास जांच के लिए भेजे जाएंगे. धामी सरकार HC के 2018 के फैसले को लागू करने जा रही है. उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि वह उन क्षेत्रों को नियमित पुलिस के अधिकार क्षेत्र में लाने के प्रस्ताव पर विचार कर रही है, जो वर्तमान में राजस्व पुलिस के अधीन हैं.

अंकिता भंडारी मामले को लेकर राजस्व पुलिस व्यवस्था की समीक्षा करने के निर्देश की मांग वाली जनहित याचिका के जवाब में राज्य सरकार द्वारा हलफनामा दायर किया गया. राज्य ने कहा है कि प्रस्ताव के लिए वित्तीय निहितार्थ, कैडर की ताकत, बुनियादी ढांचा, अपराध दर, क्षेत्रों की आबादी और पर्यटकों की आमद पर विचार किया जाता है. राज्य के बयान में कहा गया कि पहले चरण में, महिलाओं के खिलाफ अपराध, अपहरण, साइबर अपराध, POCSO आदि सहित सभी जघन्य अपराधों को जिला मजिस्ट्रेट द्वारा तुरंत नियमित पुलिस को सौंप दिया जाएगा.

पढ़ें: उत्तराखंड में अब नहीं दिखेगी 'गांधी पुलिस'! धामी सरकार के इस फैसले से पुलिस को मिलेगा और 'बल'

जिला मजिस्ट्रेट 3 महीने के भीतर प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की पहचान को पूरा करेगा और इन क्षेत्रों को सौंपने की प्रक्रिया उसके बाद 3 महीने के भीतर पूरी की जाएगी. राज्य ने कहा है कि प्रशासन शेष क्षेत्रों के लिए एक विस्तृत ब्लू प्रिंट तैयार करेगा और कैडर की संख्या, आवश्यक बुनियादी ढांचे के साथ-साथ लागत निहितार्थ और वित्त के साधनों के उन्नयन के लिए आवश्यक प्रस्ताव तैयार करेगा.

इस प्रस्ताव को 6 महीने बाद राज्य मंत्रिमंडल के निर्णय के लिए रखा जाएगा. इस बीच, डीएम अपने क्षेत्रों में रिपोर्ट किए गए अपराधों पर कड़ी नजर रखेंगे और नियमित पुलिस द्वारा प्रत्येक मामले को संभालने की आवश्यकता के लिए मूल्यांकन किया जाएगा.

दरअसल, नैनीताल हाई कोर्ट ने वर्ष 2018 में एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए राजस्व पुलिस व्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त करने का आदेश दिया था. हाईकोर्ट ने पूरे प्रदेश में सिविल पुलिसिंग को लागू करने के आदेश दिए थे. इसके खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट गई. सुप्रीम कोर्ट की ओर से हाईकोर्ट के आदेश पर न तो रोक लगाई गई और न ही सरकार को दिशा-निर्देश जारी किया था.

7500 गांव पटवारी पुलिस के दायरे में: उम्मीद है कि अब इन क्षेत्रों में हत्या जैसे गंभीर अपराध फाइलों में दबे नहीं रहेंगे. गंभीर अपराध के मामले पुलिस के पास जाएंगे. आपको बता दें कि वर्तमान में उत्तराखंड देश का इकलौता राज्य है, जहां यह व्यवस्था जीवित है. राज्य के 7,500 गांव पटवारी पुलिस के दायरे में हैं. पहले प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में सिविल पुलिस की जरूरत थी भी नहीं, क्योंकि यहां कभी बड़े स्तर के आपराधिक मामले सामने नहीं आते थे.

क्यों कहते हैं गांधी पुलिस: दरअसल राजस्व पुलिस व्यवस्था के अंतर्गत पटवारी के पास अपराधियों से मुकाबले के लिए अस्त्र-शस्त्र के नाम पर महज एक लाठी ही होती है और पुलिस बल के नाम पर एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी. इसीलिए यहां राजस्व पुलिस को गांधी पुलिस भी कहा जाता है.

देहरादून: उत्तराखंड सरकार ने SC में हलफनामा दिया, जिसमें कहा गया है कि उत्तराखंड में सभी आपराधिक केसों की जांच अब पुलिस करेगी. सभी केस चरणबद्ध तरीके से पुलिस के पास जांच के लिए भेजे जाएंगे. धामी सरकार HC के 2018 के फैसले को लागू करने जा रही है. उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि वह उन क्षेत्रों को नियमित पुलिस के अधिकार क्षेत्र में लाने के प्रस्ताव पर विचार कर रही है, जो वर्तमान में राजस्व पुलिस के अधीन हैं.

अंकिता भंडारी मामले को लेकर राजस्व पुलिस व्यवस्था की समीक्षा करने के निर्देश की मांग वाली जनहित याचिका के जवाब में राज्य सरकार द्वारा हलफनामा दायर किया गया. राज्य ने कहा है कि प्रस्ताव के लिए वित्तीय निहितार्थ, कैडर की ताकत, बुनियादी ढांचा, अपराध दर, क्षेत्रों की आबादी और पर्यटकों की आमद पर विचार किया जाता है. राज्य के बयान में कहा गया कि पहले चरण में, महिलाओं के खिलाफ अपराध, अपहरण, साइबर अपराध, POCSO आदि सहित सभी जघन्य अपराधों को जिला मजिस्ट्रेट द्वारा तुरंत नियमित पुलिस को सौंप दिया जाएगा.

पढ़ें: उत्तराखंड में अब नहीं दिखेगी 'गांधी पुलिस'! धामी सरकार के इस फैसले से पुलिस को मिलेगा और 'बल'

जिला मजिस्ट्रेट 3 महीने के भीतर प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की पहचान को पूरा करेगा और इन क्षेत्रों को सौंपने की प्रक्रिया उसके बाद 3 महीने के भीतर पूरी की जाएगी. राज्य ने कहा है कि प्रशासन शेष क्षेत्रों के लिए एक विस्तृत ब्लू प्रिंट तैयार करेगा और कैडर की संख्या, आवश्यक बुनियादी ढांचे के साथ-साथ लागत निहितार्थ और वित्त के साधनों के उन्नयन के लिए आवश्यक प्रस्ताव तैयार करेगा.

इस प्रस्ताव को 6 महीने बाद राज्य मंत्रिमंडल के निर्णय के लिए रखा जाएगा. इस बीच, डीएम अपने क्षेत्रों में रिपोर्ट किए गए अपराधों पर कड़ी नजर रखेंगे और नियमित पुलिस द्वारा प्रत्येक मामले को संभालने की आवश्यकता के लिए मूल्यांकन किया जाएगा.

दरअसल, नैनीताल हाई कोर्ट ने वर्ष 2018 में एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए राजस्व पुलिस व्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त करने का आदेश दिया था. हाईकोर्ट ने पूरे प्रदेश में सिविल पुलिसिंग को लागू करने के आदेश दिए थे. इसके खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट गई. सुप्रीम कोर्ट की ओर से हाईकोर्ट के आदेश पर न तो रोक लगाई गई और न ही सरकार को दिशा-निर्देश जारी किया था.

7500 गांव पटवारी पुलिस के दायरे में: उम्मीद है कि अब इन क्षेत्रों में हत्या जैसे गंभीर अपराध फाइलों में दबे नहीं रहेंगे. गंभीर अपराध के मामले पुलिस के पास जाएंगे. आपको बता दें कि वर्तमान में उत्तराखंड देश का इकलौता राज्य है, जहां यह व्यवस्था जीवित है. राज्य के 7,500 गांव पटवारी पुलिस के दायरे में हैं. पहले प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में सिविल पुलिस की जरूरत थी भी नहीं, क्योंकि यहां कभी बड़े स्तर के आपराधिक मामले सामने नहीं आते थे.

क्यों कहते हैं गांधी पुलिस: दरअसल राजस्व पुलिस व्यवस्था के अंतर्गत पटवारी के पास अपराधियों से मुकाबले के लिए अस्त्र-शस्त्र के नाम पर महज एक लाठी ही होती है और पुलिस बल के नाम पर एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी. इसीलिए यहां राजस्व पुलिस को गांधी पुलिस भी कहा जाता है.

Last Updated : Oct 19, 2022, 4:27 PM IST
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